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पेट की चिंता के साथ ही चुनावी ताप भी कम नहीं

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अनिल जैन

राजगीर (नालंदा)। बिहार को राजनीतिक रूप से सबसे जागरूक प्रदेश यूं ही नहीं कहा जाता है। आम दिनों में भी यहां सड़क किनारे चाय के ठीये हो या खाने के ढाबे- हर जगह देश-दुनिया की राजनीति और अन्य घटनाओं वहां जुटे लोग खूब बहस करते हैं। ऐसी बहसें सिर्फ पढ़े-लिखे लोगों के बीच ही नहीं होती बल्कि कम पढ़े-लिखे या बेपढ़े लोग भी ऐसी बहसों में खूब बढ़-चढ़ कर शिरकत करते हैं। और जब मौका चुनाव का हो तो फिर इस बहसबाजी के कहने ही क्या! ऐसी ही एक बहस का नजारा नालंदा जिले में स्थित ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की पर्यटन नगरी राजगीर में देखने को मिला।
 
शाम ढलने को है। राजगीर में एक कुंड के पास कुछ लोग बैठे हैं। कुछ ही दूरी पर टमटमवाले जमा हैं जो आपस में अपनी आमदनी के बारे में बतिया रहे हैं, पर कोई सच नहीं बता रहा है। महेश अपने एक साथी से कहते हैं, 'ससुरे नेतवन की तरह बोल रहा है।' ठहाका गूंजता है। बात आमदनी से होते हुए चुनाव, नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार पर पहुंच जाती है। 
 
टुन्नालाल कहते हैं, 'लालू जी को मत भूलो, उनके पास भी कम भोट नहीं हैं।' किनारे खड़े रामप्रवेश इस बहस में प्रवेश करते हैं। उनकी बात दंग करने वाली है। सभी उनको ध्यान से सुनते हैं। रामप्रवेश की उम्र वहां जमा अन्य लोगों से थोड़ी ज्यादा है। इस नाते सब उनको भइया कहकर पुकारते हैं। रामप्रवेश कहते हैं, 'दोनों बिहारी नेताओं के मिल जाने से उनकी ताकत बढ़ गई है, लेकिन मोदी जी को भी कम मत आंको।
 
शाम गहराने के साथ ही कुंड के आसपास सन्नाटा पसरने लगता है। कुछ ठेले-खोमचे वाले अब भी अपने धंधे में व्यस्त हैं। पानी-पूरी और चाट की महक फैल रही है। बीच-बीच में टूरिस्ट गाड़ियां भी सर्र-सर्र निकल रही हैं। टमटम वाले लौटने की जल्दी में हैं। वे सभी राजगीर के आसपास के रहने वाले हैं। महेश चर्चा का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, 'त इ चुनाव में की होतवौ?' भइया यानी रामप्रवेश कहते हैं, 'मेहरी से जाके पूछ लेलकौ। जे कहे, उही केलकवौ।' दीनानाथ टोकते हैं, 'अहो भइया, अप्पन बूढ़े बाबा के एह बार की होतै?'
 
बूढ़े बाबा यानी राजगीर के विधायक और भाजपा उम्मीदवार सत्यनारायण आर्य। रामप्रवेश टमटम को हांकते हुए कहते हैं, 'हम की कहतवौ। दरोगा जी भी घूम रहे हैं।' (दरोगा जी यानी जनता दल यू के उम्मीदवार रवि ज्योति, जो कि राजनीति में आने से पहले पुलिस इंस्पेक्टर रह चुके हैं।) रामप्रवेश घोड़े की पूंछ दबाते हैं। मुंह से आवाज निकालते हैं। घोड़े को जैसे उस आवाज का ही इंतजार रहता है। वह सरपट चल पड़ता है।
 
होटल चलाने वाले रामकिशुन गिरियक के रहने वाले हैं। राजगीर में ही रहना होता है। वे नाराजगी जताते हुए कहते हैं, 'इन टमटमवालों से आप क्या बतिया रहे थे? वे अच्छे लोग नहीं हैं। दिन में आते तो देखते, कैसे टूरिस्ट को बैठाने के लिए झंझट करते हैं।' पास ही खड़े विनय एकदम बोल पढ़ते हैं, 'इसमें गलत क्या है? हर आदमी अपना ग्राहक खोजता है। तुम अपने होटल में ग्राहक को बैठाने के लिए सड़क तक चले जाते हो कि नहीं?' विनय की बात में दम है। वे कहते हैं, 'सब गरीबे का निवाला छीनने पर पड़ा रहता है।' रामकिशुन कहते हैं, 'चले आए गरीब की चिंता करने। नेता लोग है न।' इस बार किसकी हवा है, यह पूछने पर रामकिशुन कहते हैं, 'हवा-बयार के बारे में हम क्या बताएं, वोट के दिन देखा जाएगा। उस समय जो मन में आएगा, उसी के नाम का बटन दबा देंगे।'
        
मनोज भी वहीं होटल चलाते हैं। उनसे चुनाव पर बातचीत का सिलसिला शुरू करने पर वे टालने के अंदाज में कहते हैं, 'हम क्या बताएं, हम तो अपने धंधे में फंसे रहते हैं।' उनके धंधे के बारे में बात करने पर वे कहते हैं, 'क्या चलेगा, देख रहे हैं, अभिए सुनसान हो गया है। अक्टूबर से फरवरी तक सीजन रहता है। उसके बाद भूले-भटके इक्का-दुक्का लोग आते रहते हैं।'
 
मनोज के दादा राजस्थान से यहां आए थे। तब से उनका परिवार यहीं का होकर रह गया। वे कहते हैं, 'परसों ही दारोगा जी आए थे। इन्हीं दोनों के बीच मुकाबला है।' कौन दोनों? मनोज कहते हैं, 'आर्य जी और रवि ज्योति जी के बीच।' किसका पलड़ा भारी लगता है, यह पूछने पर वे कहते हैं, 'हम ये कइसे बता सकते है। मोदी जी कह रहे हैं कि बदलाव होना चाहिए। आर्य जी 40 साल से विधायक हैं। तो बदलाव होना चाहिए कि नहीं!' उनका यह घुमावदार राजनीतिक जवाब वाकई लाजवाब कर देने वाला था।
 

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