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दूसरे दौर के मतदान में होगी मांझी की 'अग्नि परीक्षा'

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अनिल जैन

गया , गुरुवार, 15 अक्टूबर 2015 (18:46 IST)
गया। बिहार विधानसभा चुनाव के लिए 16 अक्टूबर को दूसरे दौर में छह जिलों- गया, औरंगाबाद, रोहतास, अरवल, जहानाबाद और कैमूर जिले की 32 सीटों पर मतदान होना है। इनमें वे दो सीटें भी शामिल हैं जिन पर जीतनराम मांझी चुनाव लड़ रहे हैं। दक्षिण बिहार की इन सीटों पर मांझी एक महत्वपूर्ण फैक्टर है। नीतीश कुमार से बगावत कर भाजपा से दोस्ती गांठने वाले मांझी ने मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद पूरे प्रदेश का दौरा कर खुद को राज्य की राजनीति में महादलित समुदाय के आइकॉन के तौर पर पेश किया है।
भाजपा को मतदान वाली इन 32 सीटों पर मांझी से बहुत उम्मीदें हैं। मांझी के भी सामने न सिर्फ अपनी दोनों सीटों पर चुनाव जीतने की चुनौती है बल्कि उन पर अपने गठबंधन को भी ज्यादा से ज्यादा सीटें जिताने का दबाव है, क्योंकि खुद को अपने गठबंधन के साझेदार लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान से बड़ा महादलित नेता साबित जो करना है। मगर सवाल है कि यह फैक्टर कितना कमाल दिखा पाएगा?
 
दूसरे चरण में जिन सीटों पर मतदान होना है उन पर मांझी अपना खासा प्रभाव रखने का दावा करते हैं। इनमें सात सीटें सुरक्षित है। खुद मांझी भी दो सीटों पर लड़ रहे हैं- मखदुमपुर और इमामगंज से। मखदुमपुर उनकी पुरानी सीट है, जबकि इमामगंज के मैदान में वे इसलिए कूदे हैं कि वहां से विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी जनता दल यू के उम्मीदवार हैं। चौधरी से मांझी की पुरानी अदावत है। 
 
महादलितों के आइकॉन के रूप में राजग के अन्य प्रत्याशियों के लिए भी प्रचार का दबाव झेल रहे मांझी को चुनाव मैदान में अपने वे बयान भी अब भारी पड़ रहे हैं जो मुख्यमंत्री रहते हुए और महादलितों को गोलबंद करने के अभियान के दौरान उन्होंने अगड़ी जातियों के खिलाफ दिए थे। उनके वे ही बयान अब विरोधियों के हथियार बने हुए हैं। इलाके के हिसाब से उनके विरोधी जनता को उनके बयानों की याद दिला रहे हैं।
 
दो सीटों से खुद चुनाव लड़ रहे मांझी ने अपने बड़े बेटे संतोष सुमन को कुटुंबा से उतारा है। खुद की दोनों सीटों के अलावा पुत्र समेत अपनी पार्टी की सातों सीटों पर किला फतह करना बड़ी चुनौती है। दूसरे चरण में राजग की बढ़त या घटत पर ही मांझी का राजनीति भविष्य निर्भर करेगा।

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