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बिहार में मोदी की अति सक्रियता से भाजपा में चिंता

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अनिल जैन

पटना , गुरुवार, 15 अक्टूबर 2015 (18:41 IST)
पटना। बिहार विधानसभा के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जरूरत से ज्यादा सभाओं को लेकर भारतीय जनता पार्टी के बिहारी नेता चिंतित और परेशान हैं। वजह यह है कि विपक्षी पार्टियां इसे मुद्दा बना रही है। पहले सूबे में मोदी की 22 रैलियों का कार्यक्रम बना था लेकिन बाद तय हुआ कि हर जिला मुख्यालय पर उनकी रैली आयोजित की जाए। यानी लगभग 40 रैलियां। इसी कार्यक्रम के मुताबिक मोदी अब हर दूसरे-तीसरे दिन बिहार का दौरा कर रहे हैं और तीन से चार रैलियों को संबोधित कर रहे हैं। 
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी हर सभा में मोदी की इन ताबड़तोड़ रैलियों का जिक्र कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि नरेंद्र मोदी को अपनी पार्टी के बाकी नेताओं पर भरोसा नहीं है, इसीलिए वे बिहार में ऐसे आ रहे हैं, जैसे उनको ही यहां का मुख्यमंत्री बनना हो। नीतीश यह भी कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री की बिहार में इस कदर सक्रियता से ऐसा लगता है कि मानो उनके पास और कोई काम ही नहीं है।
 
जनता दल (यू), राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के दूसरे नेता भी अपनी सभाओं में तंज कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री नगर निगम चुनावों में भी इसी तरह प्रचार के लिए आएंगे। मोदी की ज्यादा रैलियों को लेकर भाजपा नेताओं को कई तरह की चिंता है। पहली चिंता यह है कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद दोनों इस बहाने बाहरी बनाम बिहारी की लड़ाई बनाने में कामयाब होते दिख रहे हैं। वे बार-बार कह रहे है कि कोई बिहारी ही बिहार का मुख्यमंत्री होगा।
 
भाजपा के कई बिहारी नेताओं का मानना है कि नरेंद्र मोदी और उनके साथ ही अमित शाह का ज्यादा सक्रिय होना भाजपा के लिए नुकसानदेह भी हो सकता है। लेकिन अमित शाह ऐसा नहीं मानते। उनका कहना है, 'मोदी प्रधानमंत्री होने के साथ ही पार्टी के सर्वोच्च नेता भी हैं और मैं पार्टी का अध्यक्ष हूं। इस नाते किसी भी चुनाव में पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के ज्यादा से ज्यादा दौरे कर पार्टी का प्रचार करना हमारा दायित्व है।'
 
लेकिन भाजपा नेताओं की दूसरी चिंता मोदी के ओवरएक्सपोजर की है। लोकसभा में उनका जादू इसलिए चला था कि लोगों में उनको लेकर उत्सुकता थी। लोग उन्हें कम जानते थे और लोगों के दिमाग पर गुजरात मॉडल का असर छाया हुआ था। लेकिन अब अगर वे बिहार में 40 सभाएं करते हैं और हर जिले में जाते हैं तो इससे उनका करिश्मा कम भी हो सकता है। एक सीमा के बाद लोगों की उत्सुकता खत्म भी हो सकती है। दिल्ली के चुनाव में ऐसा हो चुका है। 
 
बिहार भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी के मुताबिक प्रधानमंत्री अपनी सभाओं में अपने कार्यालय के नौकरशाहों द्वारा बिहार के बारे में उपलब्ध कराई जा रही जा रही आधी-अधूरी जानकारियों के आधार पर भाषण करते हैं और नीतीश कुमार अपनी सभाओं में रोज उनकी बातों का तथ्यों के साथ जवाब देकर उनका उपहास उड़ाते हैं। इससे भाजपा की स्थिति कमजोर ही होती है। भाजपा नेताओं को मोदी के भाषणों के दोहराव से भी चिंता हो रही है। उनके मुकाबले नीतीश कुमार छोटी सभाएं कर रहे हैं और लोगों से स्थानीय मुद्दों पर संवाद कर रहे हैं।

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