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पासवान को अपनी जमीन खिसकने का अंदेशा!

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अनिल जैन

पटना , शनिवार, 17 अक्टूबर 2015 (19:33 IST)
पटना। लोक जनशक्ति पार्टी लोजपा के सुप्रीमो रामविलास पासवान परेशान हैं। उनकी यह परेशानी चुनाव के दूसरे चरण के दौरान विभिन्न रैलियों में साफ झलकी और उसका सिलसिला तीसरे चरण के दौरान भी जारी है। इन रैलियों में वे नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव को एक पलड़े में रखते हुए कह रहे हैं कि ये दोनों चोर-डाकू हैं।
 
नीतीश कुमार पर भ्रष्टाचार-बेईमानी के आरोप उनके धुर विरोधी भी नहीं लगा पा रहे हैं। नीतीश भी अपनी किसी सभा में पासवान पर हमला नहीं कर रहे हैं। पासवान पर हमले का जिम्मा लालू यादव ने संभाला हुआ है। सो, पासवान ने नीतीश के खिलाफ आक्रामक तेवर दिखाए तो इसके पीछे कहीं न कहीं पहले चरण के मतदान की खबरें हैं, जिनसे पासवान का जायका बिगड़ा हुआ है।
 
वैसे तो एक्जिट पोल पर पाबंदी है, इसलिए किसी मीडिया समूह ने मतदान के बाद का आकलन नहीं बताया, लेकिन जमीनी रिपोर्ट में समस्तीपुर और खगड़िया में पासवान के उम्मीदवारों की हालत पतली समझी जा रही है। अलौली सीट पर उनके भाई पशुपति पारस और कल्याणपुर सीट पर भतीजे प्रिंस राज की स्थिति विकट बनी है। पासवान को पहले से इसका अंदाजा था, तभी प्रचार बंद होने से पहले उन्होंने समस्तीपुर में अपने भाइयों की ओर से लोगों से माफी मांगी।
 
उन्होंने कहा कि अगर उनके भाइयों से कोई गलती हुई है तो लोग उन्हें माफ कर दें। पासवान ने कहा कि गलती हुई है तो उन्हें दो थप्पड़ मार लें, लेकिन घर के बच्चों को घर से निकाला तो नहीं जाता है। उनका यह भाषण उनके अपने गढ़ में उनकी पार्टी की स्थिति बयान करने के लिए काफी है।
 
गौरतलब है कि पासवान की पार्टी के चार सांसदों के इलाके में पहले चरण में वोट डाले गए हैं। इन चारों सांसदों की अपने क्षेत्र मे रिपोर्ट अच्छी नहीं है। चिराग पासवान और रामचंद्र पासवान दोनों अपने इलाके में लोगों से दूर रहते है। मुंगेर की सांसद वीणा देवी को लोगों से मतलब नहीं है। उनका कामकाज उनके पति सूरजभान देखते हैं। उन्हें भी लोगों से मिलने की फुरसत नहीं है।
 
चौथे सांसद चौधरी मेहबूब अली कैसर है, जो कांग्रेस छोड़कर लोजपा मे शामिल हुए थे। उनसे वैसे ही लोजपा के पुराने लोग खार खाते हैं। लिहाजा ऐसा लग रहा है कि पिछले 16 महीने मे लोजपा सांसदों के खिलाफ जो एंटी इन्कंबैंसी हुई है, वह विधानसभा के उनके उम्मीदवारों के लिए घातक साबित हो रही है। लोजपा के टिकट बांटने में भी धांधली की खबरें थीं। बाहर से आए कई नेताओं को पार्टी के टिकट मिले, इससे निचले स्तर पर पार्टी के नेताओं, कार्यकर्ताओं में नाराजगी है।
 
फिर सीटों के बंटवारे के समय ही पासवान का हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के नेता जीतन राम मांझी के साथ टकराव हो गया। एक-दूसरे को ज्यादा महत्व मिलने की बात पर दोनों नेता उलझे। उसके बाद मांझी के पांच उम्मीदवारों को हराने की बात करके लोजपा नेताओं ने उनके कोर वोट को नाराज किया। इससे अंदेशा है कि दोनों के कोर वोट एक-दूसरे को शायद ही ट्रांसफर हुए हो।
 
चुनाव पूर्व विभिन्न सर्वेक्षणों ने लोजपा को 41 मे से दो-तीन सीटें मिलने का अनुमान जताकर भी पासवान की परेशानी बढ़ाई है। इन सारे कारणों का मिला-जुला असर यह है कि रामविलास पासवान परेशान दिखाई दे रहे हैं। अन्यथा कोई कारण नहीं है कि वे लालू प्रसाद के साथ-साथ नीतीश को भी उसी अंदाज में निशाना बनाएं और उनको चोर-डाकू कहें। यह अगर उनकी हताशा नही हैं तब भी पहले चरण की निराशा जरूर है।

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