पटना। बिहार विधानसभा चुनाव में ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट (GDSF) बनाकर गेमचेंजर या किंगमेकर बनने का ख्वाब पालने वाले फ्रंट के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के अरमानों पर न सिर्फ जनता ने पानी फेर दिया बल्कि उनकी पार्टी को खाता तक नहीं खोलने दिया।
इस बार के विधानसभा चुनाव में 'किंगमेकर' बनने का ख्वाब पाले छोटे-छोटे दलों से बेमेल गठजोड़ करने वाले दिग्गजों ने नए गठबंधन जीडीएसएफ का गठन किया। रालोसपा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने 'गेमचेंजर' के दावे के साथ मायावती की बसपा, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुस्लिमीन (AIMIM) तथा तीन अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर तीसरा मोर्चा जीडीएसएफ बनाया था।
जातीय समीकरण के फॉर्मूले पर बेमेल चुनावी गठजोड़ करने वाले क्षेत्रीय दलों के दिग्गज खुद को 'गेमचेंजर' के तौर पर पेश कर रहे थे, लेकिन परिणाम सामने आते ही उनका कोई असर नहीं दिखा। चुनाव परिणाम ने स्पष्ट कर दिया है कि लोक लुभावन नीतियों से जनता को लुभाने के दिन अब लद गए हैं। आम जनता न तो क्षेत्रीय दलों के अवसरवादी एवं बेमेल गठजोड़ का तरजीह दे रही है और न ही उनकी लोकलुभावन नीतियों को तवज्जो दे रही है। यही वजह है कि इस बार चुनाव में छोटे-छोटे दलों के बेमेल गठजोड़ करने वाले दिग्गजों को जनता ने उनकी राजनीतिक हैसियत बता दी।
चुनावी नतीजे से साफ हो गया कि यह फ्रंट मुकाबले में कहीं नहीं टिका। जीडीएसएफ के मुखिया उपेंद्र कुशवाहा ने इस नए मोर्चे का गठन तब किया जब महागठबंधन और राजग दोनों गठबंधन में उन्हें जगह नहीं मिली। इसलिए, जनता ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया। इनके घोषणा-पत्रों में बड़े-बड़े वादे और इरादे दिखाए गए, लेकिन लोकलुभावन नीतियों को जनता ने किस कदर नकारा है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण मुख्यमंत्री पद का चेहरा उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा बनी। जनता ने रालोसपा की राजनीतिक हैसियत बताते हुए उसका सूपड़ा साफ कर दिया।
कुशवाहा ने प्रचार अभियान में 'कमाई, दवाई, पढ़ाई और कार्रवाई' का नारा जमकर उछाला था। इस बार चुनाव में रालोसपा ने 99 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए थे, लेकिन सभी सीट पर उसके सूरमा ढेर हो गए। वहीं, बसपा प्रमुख मायावती ने अपने शासन में उत्तर प्रदेश में किए विकास कार्यों का हवाला देकर 78 सीटों पर वोटरों को लुभाने की कोशिश की थी, लेकिन उसे केवल एक सीट पर ही जीत हासिल हो पाई।
सीमांचल एवं कोसी में ओवैसी ने रोजी-रोजगार और राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (एनआरसी) का मुद्दा उछाला था, हालांकि उसने पांच सीट पर जीत हासिल कर तीसरे मोर्चे की कुछ हद तक लाज बचा ली। गठबंधन में शामिल अन्य तीन दल भी कागजी शेर साबित हुए और जनता ने उन्हें ढेर कर दिया।
गौरतलब है कि वर्ष 2015 के चुनाव में रालोसपा ने राजग में शामिल होकर 23 सीटों पर चुनाव लड़़ा था। रोलसपा ने 2 सीट चेनारी और हरलाखी में जीत हासिल की थी। चेनारी (सुरक्षित) सीट से रालोसपा के टिकट पर ललन पासवान ने कांग्रेस उम्मीदवार मंगल राम को 9781 मतों के अंतर से पराजित किया था, लेकिन बदलते राजनीतिक परिस्थितियों में पासवान इस बार पाला बदलकर जदयू में शामिल हो गए।
कांग्रेस के मुरारी प्रसाद गौतम ने जदयू प्रत्याशी ललन पासवान को 18003 मतों के अंतर से परास्त कर दिया। इस चुनाव में भाजपा के सांसद छेदी पासवान के भतीजे चंद्रशेखर पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की ओर से चुनाव लड़ा और वह तीसरे नंबर पर रहे। हरलाखी सीट से बसंत कुमार ने चुनाव जीता था। बसंत कुमार का निधन हो गया है। (वार्ता)