Surdas jayanti 2024: सन्त कवि सूरदास (1478-1581 ई.पू.) का जन्म मथुरा के रुनकता नाम के गांव में सन् में हुआ था। गोस्वामी हरिराय के 'भाव प्रकाश' के अनुसार सूरदास का जन्म दिल्ली के पास सीही नाम के गाँव में एक अत्यन्त निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। 12 मई 2024 को उनकी जयंती मनाई जाएगी। सूरदासजी जन्म से ही अंधे थे और वे श्रीकृष्ण के अनन्न भक्त थे।
1. सूरदासजी जन्म से ही अंधे थे या नहीं इसमें मतभेद है। कुछ विदवानों का मानना है कि वे अंधे नहीं थे। जनश्रुति के अनुसार माना जाता है कि सूरदासजी जन्म से अंधे नहीं थे। वे कविताएं और गीत लिखा करते थे। एक दिन वे नदी किनारे गीत लिख रहे थे कि तभी उनकी नजर एक नवयुवती पर पड़ी। उसे देखकर वह आकर्षित हो गए और उसे निहारने लगे। कुछ देर बाद उस युवती की नजर सूरदाजी पर पड़ी तो वह उनके पास आकर बोलने लगी, आप मदन मोहन जी होना ना? इस पर सूरदासजी बोले हां, परंतु तुम कैसे मेरा नाम जानती हो। इस पर वह बोली आप गीत गाते हैं और लिखते भी हैं इसीलिए आपको सभी जानते हैं।
सूरदाजी बोले हां मैं गीत लिख रहा था तो अचानक आप पर नजर पड़ी तो मेरा गीत लिखना बंद हो गया, क्योंकि आप है ही इतनी सुंदर की मेरा कार्य रुक गया। यह सुनकर वह युवती शरमा गई। फिर यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा। उस सुन्दर युवती का चेहरा उनके सामने से नहीं जा रहा था और एक दिन वह मंदिर में बैठे थे तभी वह एक युवती आई और मदन मोहन उनके पीछे-पीछे चल दिए। जब वह उसके घर पहुंचे तो उस युवती के पति ने दरवाजा खोला तथा पूरे आदर सम्मान के साथ उन्हें अंदर बिठाया। यह देख और सम्मान पाकर सूरदासजी को बहुत पछतावा हुआ। तब उन्होंने दो जलती हुई सिलाइयां मांगी तथा उसे अपनी आंख में डाल दी। इस तरह मदन मोहन बने महान कवि सूरदास।
2. प्रारंभ में सूरदासजी मथुरा के बीच गऊघाट पर आकर रहने लगे थे। वहीं में दैन्य भाव से विनय के पद गाकर गुजर बसर करते थे। कहते हैं कि वे जन्म से सारस्वत ब्राह्मण परिवार में जन्में थे। सूरदास के पिता रामदास भी गायक थे इसीलिए सूरदास भी गायक बने। अधिकतर विद्वान मानते हैं कि सूरदास का जन्म सीही नाम गांव में हुआ और वे बाद में गऊघाट पर आकर रहने लगे थे। वहीं उनकी वल्लभाचार्य से भेंट हुई। जनश्रुति के अनुसार उनके बचपन का नाम मदनमोहन था। बल्लभाचार्य जब आगरा-मथुरा रोड पर यमुना के किनारे-किनारे वृंदावन की ओर आ रहे थे तभी उन्हें एक अंधा व्यक्ति दिखाई पड़ा जो बिलख रहा था। वल्लभ ने कहा तुम रिरिया क्यों रहे हो? कृष्ण लीला का गायन क्यों नहीं करते? सूरदास ने कहा- मैं अंधा मैं क्या जानूं लीला क्या होती है? तब वल्लभ ने सूरदास के माथे पर हाथ रखा। विवरण मिलता है कि पांच हजार वर्ष पूर्व के ब्रज में चली श्रीकृष्ण की सभी लीला कथाएं सूरदास की बंद आंखों के आकाश पर तैर गईं। गऊघाट में गुरुदीक्षा प्राप्त करने के पश्चात सूरदास ने 'भागवत' के आधार पर कृष्ण की लीलाओं का गायन करना प्रारंभ कर दिया। अब वल्लभ उन्हें वृंदावन ले लाए और श्रीनाथ मंदिर में होने वाली आरती के क्षणों में हर दिन एक नया पद रचकर गाने का सुझाव दिया।
3. संत सूरदासजी की भविष्यवाणी:-
संत सूरदासजी के नाम से यह पद या कविता वायरल हो रही है-
रे मन धीरज क्यों न धरे,
सम्वत दो हजार के ऊपर ऐसा जोग परे।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण,
चहु दिशा काल फ़िरे।
अकाल मृत्यु जग माही व्यापै,
प्रजा बहुत मरे।
सवर्ण फूल वन पृथ्वी फुले,
धर्म की बैल बढ़े।
सहस्र वर्ष लग सतयुग व्यापै,
सुख की दया फिरे।
काल जाल से वही बचे,
जो गुरु ध्यान धरे,
सूरदास यह हरि की लीला,
टारे नाहि टरै।।
रे मन धीरज क्यों न धरे
एक सहस्र, नौ सौ के ऊपर
ऐसो योग परे।
शुक्ल पक्ष जय नाम संवत्सर
छट सोमवार परे।
हलधर पूत पवार घर उपजे, देहरी क्षेत्र धरे।
मलेच्छ राज्य की सगरी सेना, आप ही आप मरे।
सूर सबहि अनहौनी होई है, जग में अकाल परे।
हिन्दू, मुगल तुरक सब नाशै, कीट पंतंग जरे।
मेघनाद रावण का बेटा, सो पुनि जन्म धरे।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्खिन, चहु दिशि राज करे।
संवत 2 हजार के उपर छप्पन वर्ष चढ़े।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्खिन, चहु दिशि काल फिरे।
अकाल मृत्यु जग माहीं ब्यापै, परजा बहुत मरे।
दुष्ट दुष्ट को ऐसा काटे, जैसे कीट जरे।
माघ मास संवत्सर व्यापे, सावन ग्रहण परे।
उड़ि विमान अंबर में जावे, गृह गृह युद्ध करे
मारुत विष में फैंके जग, माहि परजा बहुत मरे।
द्वादश कोस शिखा को जाकी, कंठ सू तेज धरे।
सौ पे शुन्न शुन्न भीतर, आगे योग परे।
सहस्र वर्ष लों सतयुग बीते, धर्म की बेल चढ़े।
स्वर्ण फूल पृथ्वी पर फूले पुनि जग दशा फिरे।
सूरदास होनी सो होई, काहे को सोच करे।
4. सूरदास अपने पूर्व जन्म में श्री कृष्ण के काल में भी भी थे। तब वे अंधे थे और श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन करते रहते थे। वे उस जन्म में भी एक गायक और कवि थे। श्रीकृष्ण के जन्म के समय वे गर्ग मुनी के आश्रम में गए थे। वहां उन्होंने कृष्णावतार के बारे में जानना चाहता था। गर्ग मुनि आशीर्वाद देकर कहते हैं बिराजिये कविराज। कहिये क्या आज्ञा है? यह सुनकर वह अंधा गायक आंखों में आंसू भरकर कहता है प्रभु आप स्वयं ही ब्रह्माजी के पुत्र हैं। इसलिए आपको सर्वसमर्थ जानकर एक प्रार्थना लेकर आया हूं। आगे अंधा गायक कहता है मुझे केवल श्रीकृष्ण के दर्शन मात्र के लिए थोड़ी देर के लिए ही सही आंखें प्रदान कर दीजिए। जिनसे मैं उन्हें एक बार देख लूं। फिर भले ही आप मुझे नेत्रहिन कर दीजिए। यह सुनकर गर्ग मुनि कहते हैं कि आपको आंखें प्रदान करना कोई मुश्किल काम नहीं। परंतु एक बात का उत्तर दीजिए आपके मन के अंतरमन में अभी तक उनके दर्शन नहीं हुए? तब आंखें बंद करके वह श्रीकृष्ण को अपने अंतरमन में देखते हैं और कहते हैं कि मेरे मन ने एक आलौकिक बालक को शीशु अवस्था से लेकर बड़े होते हुए देखा है। क्या यह वही है? तब गर्ग मुनि कहते हैं कि हां ये वही है। यह सुनकर वह अंधे बाबा प्रसन्न हो जाते हैं।