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भगत सिंह की जयंती आज, जानें वीर सपूत की 5 अनसुनी बातें

हमें फॉलो करें भगत सिंह की जयंती आज, जानें वीर सपूत की 5 अनसुनी बातें

WD Feature Desk

, शनिवार, 28 सितम्बर 2024 (09:35 IST)
Highlights 
 
• भगत सिंह की जयंती कब है।
• शहीद भगत सिंह के जीवन से जुड़ी खास बातें।
• भगत सिंह का जन्म और मृत्यु कब हुई। 
 
About Bhagat Singh भगत सिंह जयंती 2024 : आज भारत के महान क्रांतिकारी तथा स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह की जयंती है। उनका जन्म 27 या 28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उनका जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ जिसकी 5 पीढ़ियों ने क्रांति की ज्वाला का उदघोष किया था। यह बात उस समय की है जब उनके चाचा अजीत सिंह और श्‍वान सिंह भारत के आजादी में अपना सहयोग दे रहे थे तथा ये दोनों ही करतार सिंह सराभा द्वारा संचालित गदर पार्टी के सदस्‍य थे। अत: भगत सिंह पर इन दोनों का गहरा प्रभाव पड़ा था। इसलिए वे बचपन से ही अंग्रेजों से घृणा करने लगे थे।
 
भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से भी अत्यधिक प्रभावित थे। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड का भगत सिंह के बालमन पर बड़ा गहरा प्रभाव हुआ। तथा लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़ वे सन् 1920 में महात्‍मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे अहिंसा आंदोलन में भाग लेने लगे, जिसमें गांधी जी विदेशी समानों का बहिष्कार कर रहे थे। मात्र 14 वर्ष की आयु में ही भगत सिंह ने सरकारी स्‍कूलों की पुस्‍तकें और कपड़े जला दिए। इसके बाद ही उनके पोस्‍टर गांवों में छपने लगे। 
 
भगत सिंह किस लिए प्रसिद्ध है : सन् 1921 में जब चौरा-चौरा हत्‍याकांड के बाद गांधीजी ने किसानों का साथ नहीं दिया तो भगत सिंह पर उसका गहरा प्रभाव पड़ा। उसके बाद चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्‍व में गठित हुई गदर दल के हिस्‍सा बन गए। उन्‍होंने चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। 9 अगस्त, 1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए चली 8 नंबर डाउन पैसेंजर से काकोरी नामक छोटे से स्टेशन पर सरकारी खजाने को लूट लिया गया। यह घटना काकोरी कांड नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है। इस घटना को अंजाम भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद और प्रमुख क्रांतिकारियों ने साथ मिलकर अंजाम दिया था। 
 
काकोरी कांड के बारे में जानें : काकोरी कांड के बाद अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के क्रांतिकारियों की धरपकड़ तेज कर दी और जगह-जगह अपने एजेंट्स बहाल कर दिए। भगत सिंह और सुखदेव लाहौर पहुंच गए। वहां उनके चाचा सरदार किशन सिंह ने एक खटाल खोल दिया और कहा कि अब यहीं रहो और दूध का कारोबार करो। वे भगत सिंह की शादी कराना चाहते थे और एक बार लड़की वालों को भी लेकर पहुंचे थे। भगतसिंह कागज-पेंसिल लेकर दूध का हिसाब करते, पर कभी हिसाब सही मिलता नहीं। सुखदेव खुद ढेर सारा दूध पी जाते और दूसरों को भी मुफ्त पिलाते। उन्हें फिल्में देखना और रसगुल्ले खाना काफी पसंद था। वे राजगुरु और यशपाल के साथ जब भी मौका मिलता था, फिल्म देखने चले जाते थेल इस पर चंद्रशेखर आजाद बहुत गुस्सा होते थे। चार्ली चैप्लिन की फिल्में बहुत पसंद थीं। 
 
क्रांतिकारी भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अफसर जेपी सांडर्स को मारा था। इसमें चंद्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी। क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने अलीपुर रोड दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिये बम और पर्चे भी फेंके थे।
 
भगत सिंह की जीवनी : वे देशभक्त होने के साथ ही एक दार्शनिक, चिंतक, लेखक, अध्ययनशीरल विचारक, पत्रकार और कलम के धनी थे। उन्होंने 23 वर्ष की छोटी-सी आयु में फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का विषद अध्ययन किया था। हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिंतक और विचारक भगतसिंह भारत में समाजवाद के पहले व्याख्याता थे। 
 
भगत सिंह अच्छे वक्ता, पाठक और लेखक भी थे। उन्होंने 'अकाली' और 'कीर्ति' दो अखबारों का संपादन भी किया। भगत सिंह करीब जेल में 2 साल रहे। इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहे। जेल में रहते हुए उनका अध्ययन बराबर जारी रहा। उस दौरान उनके लिखे गए लेख व परिवार को लिखे गए पत्र आज भी उनके विचारों के दर्पण हैं।

उन्होंने अपने लेखों में कई तरह से पूंजीपतियों को अपना शत्रु बताया है। उन्होंने लिखा कि मजदूरों का शोषण करने वाला चाहें एक भारतीय ही क्यों न हो, वह उनका शत्रु है। उन्होंने जेल में अंग्रेज़ी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था 'मैं नास्तिक क्यों हूं'? जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की। उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिए थे। 
 
भगत सिंह की मृत्यु : फांसी पर जाने से पहले भगत सिंह 'बिस्मिल' की जीवनी पढ़ रहे थे, जो सिंध/ वर्तमान पाकिस्तान का एक सूबा के एक प्रकाशक भजन लाल बुकसेलर ने आर्ट प्रेस, सिंध से छापी थी। तब भगत सिंह तथा उनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई। भगत सिंह महात्‍मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन और भारतीय नेशनल कॉन्फ्रेंस के पहले सदस्‍य थे। आजादी के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले भगत सिंह हर हिन्दुस्तानी के दिल में बसते हैं।

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