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आज की भाजपा

रक्त स्वेद के तर्पण से बनी है

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कैलाश विजयवर्गी
अपनी युवावस्था में वे सभी कद-काठी और सौष्ठव में ग्रीक देवताओं को भी मात देते नजर आते थे। मैं अकेला नहीं था, मेरी तरह उन दिनों हर नवयुवक जिसे देश से प्रेम था जनसंघ और उसके नेताओं को अपना आदर्श मानता था। राष्ट्र को देवता की तरह आराध्य मानना, समर्पण, सक्रियता और संकल्प के साथ स्वानुशासन की राजनीति हर उस युवक को आकर्षित करती है जो घर से ऐसे ही संस्कार लेकर बाहर निकलता रहा है। मैं यह मानता हूँ कि परमेश्वर ने मुझे जन्मजात संघ और जनसंघ के लिए ही बनाया था। इसलिए एक भाजपा कार्यकर्ता होने के नाते मैं वही कर रहा हूँ जिसके लिए ईश्वर ने मुझे बनाया है।

बीते पलों को याद करते हुए कहा जाता है क्या भूलूँ, क्या याद करूँ। यह वाक्य बड़े आदमी को ही शोभा देता है। मुझे तो वह सब कुछ स्मरण आता है, जिसके घटने के कारण ही आज भाजपा एक अजेय राजनीतिक शक्ति बनी है। जिन व्यक्तियों के कारण हम राजनीतिक मंच पर सितारों की तरह चमक रहे हैं। संघ, जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के हर छोटे-बड़े कार्यकर्ता का त्याग, बलिदान, रक्त स्वेद का तर्पण और अभाव के साथ कुंठाएँ भी याद हैं।

उन सबकी स्मृतियों को प्रणाम करते हुए जब हम यह कहते हैं कि 17, 18 और 19 फरवरी को हम इंदौर के राजनीतिक इतिहास का सबसे बड़ा आयोजन कर रहे हैं, तब सहज ही याद आता है कि भारतीय जनसंघ की मध्यप्रदेश में स्थापना की पहली बैठक भी इसी इंदौर में हुई थी। इस बैठक में बड़नगर के दादा साहब दवे (बद्रीलालजी) अध्यक्ष, मनोहर रावजी मोघे महामंत्री और पं. रामनारायणजी शास्त्री कोषाध्यक्ष मनोनीत हुए थे।

स्व.कुशाभाऊ ठाकरे मध्य भारत के दक्षिणी हिस्से इंदौर, उज्जैन, रतलाम, धार, खरगोन, खंडवा इत्यादि के और स्व. माणिकचन्द्रजी वाजपेयी (मामाजी) उत्तरी हिस्से के संगठन मंत्री बने थे। मैं ईश्वर का ऋणी हूँ और यह कहते हुए गौरवान्वित हूँ कि इन दोनों ने मेरे व्यक्तिगत, सामाजिक और राजनीतिक जीवन को दिशा दी है। ये दोनों ही व्यक्ति राष्ट्र भक्त कार्यकर्ता बनाने की संस्था ही हुआ करते थे। मुरैना से झाबुआ तक और भोपाल से खंडवा या धार तक इन दोनों ने इतने प्रवास किए थे कि रस्सी से छूटकर घूमने वाला भौंरा भी इतने चक्कर न लगाता हो।

उनके प्रवास की इस अधिकता पर शायद यह वाक्य स्व. परम पूज्य गुरुजी (मा.स. गोलवलकर) ने कहा था। भोपाल में उद्धव देवजी मेहता, नानाजी (नारायणप्रसादजी गुप्ता), सरदारमलजी लालवानी, महीपालजी, वडनेरकरजी, इंदौर में किशोरीलालजी गोयल, पं. श्रीवल्लभ शर्मा, सत्यभानजी सिंघल, उत्सवचन्द पोरवाल, गोकुलदासजी भूतड़ा, नारायणराव धर्म, निर्भयसिंह पटेल, धन्नालाल पटेल, राणा रामप्रसाद यादव, जगदीशप्रसादजी वैदिक, जयंतीलालजी संघवी (काका), नारायणदास मेहताणी, वासुदेवराव लोखंडे, टीएन सिंह, मधुकर चंदवासकर और हरूमलजी रिझवानी सहित सैकड़ों नामी और अनाम कार्यकर्ताओं ने राजनीति के राष्ट्रवादी विचार को स्थापित करने में अपना जीवन लगभग खपा दिया था।

धार के स्व.वसंतराव प्रधान, केसरीमलजी जैन (सेनापति), खत्रीजी (प्रेमप्रकाशजी के पिता), खरगोन के रामचन्द्र विठ्ठल बड़े, उज्जैन के हुकुमचन्द्रजी कछवाय, राधेश्यामजी उपाध्याय, स्व. हरिभाऊजी जोशी, भार्गव वकील साहब कृष्णमुरारी गुप्ता, बाबूलालजी जैन, जावरा के डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडे, मंदसौर के गजा महाराज (स्व. बसंतीलालजी शर्मा), वीरेन्द्र कुमारजी सकलेचा, सुंदरलालजी पटवा, विमलकुमारजी चौरड़िया, खुमानसिंहजी शिवाजी ने जनसंघ और भाजपा को अपने स्वयं के रक्त से ही सींचकर बड़ा किया है। हमें उनके राजनीतिक पितृत्व पर गौरव है।

मेरी उम्र के सैकड़ों कार्यकर्ता ऋणी हैं स्व. गोविंदजी सारंग, शालिग्रामजी तोमर और सुरेशजी सोनी के, क्योंकि इन्हीं ने हमें सार्वजनिक जीवन के लिए अपनी नर्सरी में तैयार किया है। सत्तर के दशक में विभिन्न स्थानों में हुए शिविर और उन शिविरों में चुने गए कार्यकर्ता बड़े आदर से स्मरण करते हैं कि बगैर राजनीतिक चर्चाओं के भी उन्हें किस तरह राजनीति का प्रशिक्षण दिया गया। सुरेशजी सोनी निरंतर उन चुनिंदा कार्यकर्ताओं को तराशते रहे व आज भी उनका मार्गदर्शन करते हैं। तब के चुने गए सभी कार्यकर्ता आज प्रदेश के शीर्षस्थ नेतृत्व का हिस्सा हैं।

मध्यप्रदेश में जनसंघ और भाजपा को स्व. कुशाभाऊ ठाकरे, स्व. माणिकचन्द्र वाजपेयी, स्व. मोरू भैया गद्रे और स्व. प्यारेलालजी खंडेलवाल ने दधीचि की तरह अपनी स्वयं की हड्डियों से मजबूत किया है व अब तो यह अजेय राजनीतिक दल बन चुका है। इनके स्मरण बिना आज का उत्सव या महोत्सव अधूरा ही रहेगा।

चुनावी जय-पराजय अपनी जगह है। भारतीय जनसंघ के नेता 1967 तक आसपास के समाज, घरों और विद्यार्थी समुदाय में ही सम्मान पाते रहे, शायद समाज में गहरी पैठ के लिए उन्हें यह जरूरी लगता हो। जीत का बड़ा सिलसिला 1967 से शुरू हुआ और सभाओं में लाखों लोग आने लगे। अटलबिहारी वाजपेयी सर्वकालिक श्रेष्ठ वक्ता हैं। लेकिन, हमारा मालवा निमाड़ स्व. जगन्नाथराव जोशी पर दीवानगी की हद तक फिदा रहा। उनकी सभाएँ कई बार अटलजी की सभाओं से बड़ी होती थी। अपनी बालबुद्धि से एक बार मैंने अपने एक अग्रज नेता से इसका कारण पूछा। उनका उत्तर भी मजेदार था कि राम लक्ष्मण में से किसी को लक्ष्मण ज्यादा पसंद आए तो रामजी क्या करें?

उत्सव की इस बेला में मैं, कृष्णमुरारी मोघे और श्रीपति खिरवड़कर सहित उन सभी को प्रणाम करता हूँ जिन्होंने आपातकाल के दौरान जेल से बाहर रहकर आजादी की दूसरी लड़ाई में अपनी जान पूरे 19 महीने जोखिम में रखी।

अप्रैल 2010 में भाजपा 30 वर्ष की हो जाएगी। अपनी 30वीं वर्षगाँठ के दो महीने पहले इंदौर में वह यह साबित करेगी कि भारत की सबसे बड़ी, सर्व संग्रही, सर्व स्वीकृत, सर्वमान्य और सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक दल कहलाने का उसका दावा स्वाभाविक है।
(लेखक मप्र के वाणिज्य, उद्योग एवं रोजगार, सूचना प्रौद्योगिकी, विज्ञान एवं टेक्नालॉजी, सार्वजनिक उपक्रम, उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण और ग्रामोद्योग विभागों के मंत्री हैं।)

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