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ऋतुपर्णो घोष : भारतीय सिनेमा को समृद्ध करने वाले फिल्मकार

हमें फॉलो करें ऋतुपर्णो घोष : भारतीय सिनेमा को समृद्ध करने वाले फिल्मकार
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ऋतुपर्णो घोष उन निर्देशकों में से थे जो फिल्म को एक कला मानते थे। व्यवसाय या बॉक्स ऑफिस को ध्यान में रखकर उन्होंने कभी फिल्में नहीं बनाईं। उनकी अपनी सोच थी, शैली थी और अपने मिजाज के अनुरूप ही ‍वे फिल्में बनाते थे। बहुत कम समय में उन्होंने अपनी पहचान बना ली। सारे स्टार्स उनके साथ काम करने के लिए तुरंत राजी हो जाते थे क्योंकि उनकी फिल्मों में काम करना गर्व की बात थी। रिश्तों की जटिलता और लीक से हट कर विषय उनकी फिल्मों की खासियत होते थे। बांग्ला उनकी मातृभाषा थी और इस भाषा में वे सहज महसूस करते थे, इसलिए ज्यादातर फिल्में उन्होंने बांग्ला में बनाईं। फिल्म फेस्टिवल में सिनेमा देखने वाले दर्शक और ऑफबीट फिल्मों के शौकीन ऋतुदा की फिल्मों का बेसब्री से इंतजार करते थे।

हिरेर अंगति (1994) से ऋतुपर्णो ने अपना फिल्मी सफर शुरू किया। अपनी पहली ‍ही फिल्म से उन्होंने दर्शकों का ध्यान खींचा। इसी वर्ष उनकी दूसरी फिल्म उनीशे एप्रिल रिलीज हुई और इसे बेस्ट फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। यह फिल्म प्रख्यात फिल्म निर्देशक इंगमार बर्गमन की ‘ऑटम सोनाटा’ से प्रेरित थी। इस फिल्म में ऋतुपर्णो ने मां-बेटी के तनावपूर्ण रिश्तों को बारीकी से रेखांकित किया।

एक कामकाजी महिला अपने प्रोफेशनल करियर में सफल है, लेकिन अपनी पारिवारिक जिंदगी में वह असफल रहती है। इसका असर उसकी बेटी पर होता है और बेटी अपनी मां से इस बात को लेकर नाराज है कि वह अपने प्रोफेशन को ज्यादा महत्व देती है। इस फिल्म में अपर्णा सेन, देबश्री राय और प्रसन्नजीत चटर्जी ने अभिनय किया था। इस फिल्म को सिने प्रेमियों ने खूब सराहा।

इसके बाद ऋतुपर्णो घोष की फिल्मों को राष्ट्रीय पुरस्कार मिलना आम बात हो गई। कभी कलाकारों को, कभी लेखकों तो कभी फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिलता। 1999 में ऋतुपर्णो द्वारा निर्देशित फिल्म बारीवाली के लिए किरण खेर ने बेस्ट एक्ट्रेस का राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल किया। बारीवाली एक ऐसी महिला की कहानी है जिसका होने वाले पति की शादी के एक दिन पहले मौत हो जाती है और इसके बाद वह एकांकी जीवन बिताती है।

उत्सव (2000), तितली (2002), शुभो महुर्त (2003) जैसी ‍बांग्ला भाषा में बनी फिल्मों ने ऋतुपर्णो की ख्याति को बढ़ाया। इसके बाद ऋतुपर्णो ने ऐश्वर्या राय को लेकर ‘चोखेर बाली (2003) बनाई। यह फिल्म रवीन्द्रनाथ टैगोर के उपन्यास पर आधारित थी। इस फिल्म में महिला किरदारों को बखूबी पेश किया गया।

ऋतुपर्णो ने इसके बाद अपनी पहली हिंदी फिल्म ‘रेनकोट’ (2004) बनाई। रेनकोट ऐसे दो प्रेमियों की कहानी है जो वर्षों बाद बरसात की एक रात मिलते हैं। इस फिल्म को ऐश्वर्या राय के करियर की श्रेष्ठ फिल्मों में से एक माना जाता है। अजय देवगन ने भी इस फिल्म में शानदार अभिनय किया है। उनकी दूसरी हिंदी फिल्म ‘सनग्लास’ थी, जो 2012 में रिलीज हुई।

अंतरमहल (2005), दोसर (2006), द लास्ट लीअर (2007), शोभ चरित्रो काल्पोनिक (2008), अबोहोमन (2010), नौकाडूबी (2010) और चित्रांगदा (2012) जैसी फिल्में ऋतुपर्णो का कद एक निर्देशक के रूप में ऊंचा करती हैं। उन्होंने बंगाली निर्देशक की उस परंपरा को आगे बढ़ाया जिन्होंने भारतीय सिनेमा को अनेक यादगार फिल्में दीं।

31 अगस्त 1963 को जन्मे ऋतुपर्णो को सिनेमा का माहौल बचपन से ही मिला। उनके पिता डॉक्यूमेंट्री फिल्म मेकर थे। कोलकाता में पढ़ाई के बाद उन्होंने विज्ञापन की दुनिया से अपना करियर शुरू किया और जल्दी ही फिल्मों की और मुड़ गए। अपने आधुनिक विचारों को उन्होंने फिल्मों के जरिये पेश किया और जल्दी ही अपनी पहचान एक ऐसे फिल्ममेकर के रूप में बना ली जिसने सिनेमा को समृद्ध किया।

मात्र 49 वर्ष की आयु में 30 मई 2013 को ऋतुपर्णो का इस दुनिया से चले जाना एक दु:खद घटना है। उनके इतनी जल्दी जाने से सिने प्रेमी ऋतु की कुछ बेहतरीन फिल्मों से वंचित रह गए।

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