निर्माता के नायक और खलनायक
पहली "हेराफेरी" यानी परेश रावल, सुनील शेट्टी और अक्षय कुमार वाली हेराफेरी अच्छी थी। दूसरी वाली "फिर हेराफेरी" ठीक-ठाक सी थी। पहली वाली के धक्के में ये भी चल गई वर्ना तो बोर और उटपटाँग ही थी। अब तीसरी बार यदि वही तिकड़ी सामने आती, तो दर्शक शायद झाँसे में नहीं आते, बल्कि दर्शक इस तिकड़ी से बोर हो चुके थे। कभी-कभी कुछ बुरा इसलिए हो जाता है कि अच्छा होने वाला रहता है। निर्माता फिरोज नाडियाडवाला ने ठीक ही किया कि भारी-भरकम फीस की माँग कर रहे अक्षय को तीसरी हेराफेरी से हटा दिया और न केवल उन्हें हटाया बल्कि पूरी टीम ही चेंज कर दी। अक्षय कुमार जैसा निर्माता से भरपूर रकम लेने वाला दूसरा हीरो शायद ही कोई हो। आमिर खान जैसा सदा सुपरहिट रहने वाला हीरो भी अपने पारिश्रमिक को लेकर बहुत लचीला है। अक्षय कुमार आमिर के पासंग भी नहीं हैं। पता नहीं क्यों उन्होंने अपने भाव इतने ऊँचे रख दिए हैं कि उन्हें लेकर बनाई जाने वाली फिल्म अच्छी चलने के बावजूद निर्माण से जुड़े लोग घाटे में रहते हैं। उनकी फ्लॉप फिल्मों को हटा दिया जाए तो "सिंग इज किंग" जैसी सफल फिल्म के वितरकों को कई जगह घाटा हुआ था। अभी बीच में खबर आई थी कि अक्षय एक फिल्म का सत्तर करोड़ माँग रहे हैं। अगर इससे आधी राशि भी दी जाती है, तो वाकई बहुत ज्यादा है। इसके अलावा वे मुंबई टेरीटरी में फिल्म वितरण के अधिकार भी माँग लेते हैं। यानी फिल्म को होनी वाली कुल आवक का बीस प्रतिशत। याद रहे लाभ का बीस प्रतिशत नहीं, कुल आवक का बीस प्रतिशत। इसके बरखिलाफ आमिर को इससे फर्क नहीं पड़ता कि पैसा कितना दिया जा रहा है। वे देखते हैं कि निर्देशक कौन है और वो फिल्म बनाने के लिए कितना उत्साहित है। जब सारी चीजें उन्हें जँच जाती है, तो फिर वे ठीक-ठाक सी रकम लेकर काम में जी-जान से भिड़ जाते हैं। आमिर का कहना है कि फिल्म की विधा तभी जिंदा रहेगी, जब इससे जुड़ा हर आदमी कमाए। निर्माता को अगर लाभ नहीं होगा, तो वो क्यों धन लगाएगा? आमिर का तरीका जियो और जीनो दो का है। अक्षय का ऐसा नहीं है। वे चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा उन्हें मिले, बाकी जाएँ भाड़ में। हालाँकि उन्होंने कई फ्लॉप क्या सुपर फ्लॉप फिल्में दी हैं, जिनमें से हाल की कुछ ये हैं - खट्टा-मीठा, चाँदनी चौक टू चाइना, आठ गुणित छः तस्वीर, ब्ल्यू...। ठीक-ठाक सी फिल्में हैं हाउसफुल, कमबख्त इश्क...। फिरोज नाडियाडवाला ने महसूस कर लिया कि हेराफेरी के तीसरे सिक्वल में अक्षय अपरिहार्य नहीं हैं। नाना पाटेकर और संजय दत्त का कॉमिक सेंस भी गजब का है। "वेलकम" में नाना ने बेहतरीन रोल किया है। संजय दत्त ने दोनों मुन्नाभाइयों में जान डाली है। मुमकिन है तीसरी हेराफेरी से अभिषेक बच्चन के करियर को भी एक दिशा मिल जाए। अनीस बज्मी तीसरी का निर्देशन करेंगे और लिखेंगे भी वही। यानी दर्शकों को एक तरह की ताजगी मिलने वाली है। ये सभी कलाकार भी पैसे को लेकर बहुत सख्त नहीं हैं। अतीत में ऐसे बहुत से सुपर सितारा हुए हैं जिन्होंने खस्ताहाल निर्माता की फिल्म मुफ्त में करके उसे एक बार फिर स्थापित कर दिया है। अक्षय कुमार जैसे काइयाँ आदमी से हम इसकी अपेक्षा नहीं कर सकते। वे तो उन्हीं के कारण कड़के हुए निर्माता को भी घास न डालें। कलाकार को इतना भी निर्मम नहीं होना चाहिए।