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मन्ना डे : तू प्यार का सागर है

जन्मदिवस पर विशेष

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समय ताम्रकर

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कुछ लोगों को प्रतिभाशाली होने के बावजूद वो मान-सम्मान या श्रेय नहीं मिलता, जिसके कि वे हकदार होते हैं। हिंदी फिल्म संगीत में इस दृष्टि से देखा जाए तो मन्ना डे का नाम सबसे पहले आता है।

मन्ना ने जिस दौर में गीत गाए, उस दौर में हर संगीतकार का कोई न कोई प्रिय गायक था, जो फिल्म के अधिकांश गीत उससे गवाता था। मन्ना डे की प्रतिभा के सभी कायल थे, लेकिन साइड हीरो, कॉमेडियन, भिखारी, साधु पर कोई गीत फिल्माना हो तो मन्ना डे को याद किया जाता था। मन्ना डे ठहरे सीधे-सरल आदमी। जो गाना मिलता उसे गा देते। ये उनकी प्रतिभा का कमाल है कि उन गीतों को भी लोकप्रियता मिली।

1 मई 1919 को कलकता में जन्मे मन्ना डे 90 वर्ष के हो रहे हैं। इस समय वे अपनी जिंदगी की शाम बेंगलुरु में अपनी बेटी शुमिता के यहाँ ‍बिता रहे हैं। उनकी प्रतिभा का उचित सम्मान नहीं हुआ है, फिर भी उन्हें किसी से कोई शिकायत नहीं है।

मन्ना डे का पूरा नाम प्रबोधचन्द्र डे है। संगीत में मन्ना डे की रुचि अपने चाचा केसी डे की वजह से पैदा हुई, जिनसे उन्होंने गायन सीखा। 23 वर्ष की उम्र में मन्ना डे अपने चाचा के साथ मुंबई आए और उनके सहायक बन गए। इसके बाद सचिन देव बर्मन के सहायक के रूप में भी उन्होंने काम किया। उस्ताद अब्दुल रहमान खान और उस्ताद अमन अली खान से उन्होंने शास्त्रीय संगीत सीखा।

‘तमन्ना’ (1943) के जरिये हिंदी फिल्मों में मन्ना डे ने अपना सफर शुरू किया और धीरे-धीरे मन्ना डे की पहचान बन गई। किसी कैम्प में शामिल न होने की वजह से बड़ी फिल्मों में उन्हें इक्का-दुक्का गाने के अवसर मिले और बी-सी ग्रेड फिल्मों में वे गाते रहे।

ये रात भीगी-भीगी (श्री 420), कस्मे वादे प्यार वफा सब (उपकार), लागा चुनरी में दाग (दिल ही तो है), जिंदगी कैसी है पहली हाय (आनंद), प्यार हुआ इकरार हुआ (श्री 420), ऐ मेरी जोहरां जबी (वक्त), ऐ मेरे प्यारे वतन (काबुलीवाला), पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई (मेरी सूरत तेरी आँखें), इक चतुर नार करके सिंगार (पड़ोसन), तू प्यार का सागर है (सीमा) जैसे कई सदाबहार गीत मन्ना डे ने गाए हैं। उन्होंने कई फिल्मों में संगीत भी दिया है।

श्रेष्ठ गायक का राष्ट्रीय पुरस्कार (दो बार), पद्मश्री, लता मंगेशकर पुरस्कार जैसे कई सम्मान उन्हें मिले हैं।

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