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माइकल जैक्सन ने चुकाई कामयाबी की कीमत

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विख्यात पॉप स्टार माइकल जैक्सन को भी अन्य सितारों की तरह शोहरत और कामयाबी की मंजिल हासिल करने के लिए बडी कीमत चुकानी पडी थी।

स्टेज पर बिजली-सी चपलता के साथ डांस करने वाले जैक्सन ने इतनी बार कॉस्मेटिक सर्जरी कराई थी कि उनकी नाक की हड्डी तक नहीं बची थी। त्वचा का रंग बदलने के प्रयोग के कारण उन्हें धूप में निकलने की मनाही थी। जैक्सन पिछले कुछ वर्षों में कुछ ही मौकों पर सार्वजनिक तौर पर दिखाई दिए थे। उस दौरान उनके शरीर का अधिकांश हिस्सा यहाँ तक कि चेहरा भी ढँका रहता था।

अंतिम समय में तो जैक्सन हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गए थे। उनके शरीर पर जगह-जगह सुइयों के निशान ही दिखाई देते थे और भोजन के रूप में वे सिर्फ दर्द निवारक गोलियाँ लेते थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वे खुद के भ्रम और संदेह के किले में कैद होकर रह गए थे, जहाँ यातना देने वाला और उसे सहने वाला व्यक्ति एक ही होता है।

मुम्बई फिल्म उद्योग के चकाचौंध भरे ग्लैमर वर्ल्ड में अक्सर एक बात कही जाती है कि रील लाइफ यानी परदे की जिन्दगी और रीयल लाइफ यानी वास्तविक जिन्दगी में बहुत फर्क होता है। कड़े संघर्ष के बाद कलाकार को सितारों की दुनिया में जब कामयाबी मिलती है तो उसके मन के जगत में भी बहुत परिवर्तन होते हैं। रील लाइफ और रीयल लाइफ का यही अंतर शायद जैक्सन और शाइनी आहूजा की त्रासद कहानियों को जन्म देता है।

वरिष्ठ फिल्म समीक्षक सुनील मिश्र कहते हैं कि फिल्म उद्योग में आज भी गुजरे जमाने के कई ऐसे सितारे हैं जिनकी कहानी जैक्सन से जुदा नहीं है। इस दुनिया में सफलता रातोरात जीने का अंदाज बदल देती है। फुटपाथ पर सोने और वड़ा-पाव खाकर दिन गुजारने का संघर्ष हवा होते ही कामयाबी अपने साथ जिस चमक-दमक को लाती है, वह सितारा बन चुके व्यक्ति के मनोमस्तिष्क को बदल देती है।

नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर एक फिल्म निर्माता ने कहा ‘हमारे लिए फिल्म बनाना व्यवसाय है, लेकिन फिल्मों में किरदार निभाने वाले अभिनेता अक्सर यथार्थ और कल्पना के फर्क को भूल जाते हैं। शायद यही वजह है कि इस दुनिया में हर कामयाब सितारा अपनी यातनाओं की सलीब अपने ही कंधों पर ढोने के लिए मजबूर है।

एक अन्य फिल्म निर्माता बताते हैं कि गुजरे जमाने की एक अदाकारा आज भी उस दौर के हैंगओवर से उबर नहीं पाई हैं। जब भी वे गाडी से निकलती हैं तो ड्राइवर को यह हिदायत देना नहीं भूलतीं कि कार के शीशे नहीं खोलना वरना भीड़ उन्हें घेर लेगी।

श्री मिश्र का कहना है कि यथार्थ से दूर अपने चारों तरफ कल्पना की दुनिया गढ़ लेने के कारण ये सितारे अक्सर खुद को शराब के प्यालों में गर्क कर देते हैं और अवसाद और मनोरोग से घिर जाते हैं। मीना कुमारी और परवीन बाबी जैसी अभिनेत्रियों की जिन्दगी इसी वजह से यातना का सफर बन गई थी।

मिश्र ने कहा कि गुजरे जमाने का यह नास्टेल्जिया (अतीत की पीडा बन चुकी याद) वर्तमान को बेहद तकलीफदेह बना देता है। कोई भी सितारा बूढ़ा नहीं दिखना चाहता, भले ही इसके लिए उसे शरीर को छलनी कर देने वाली कॉस्मेटिक सर्जरी से भी क्यों न गुजरना पड़े।

उन्होंने बताया कि फिल्म उद्योग में ऐसे कई सितारे हैं, जो अजीबोगरीब अंदाज में जिन्दगी जीने के लिए जाने जाते हैं। अपने संवादों पर दर्शकों की वाहवाही लूटने वाले एक अभिनेता ने अपने पारिवारिक सदस्यों से कह रखा था कि जब उनकी मृत्यु हो तो उनकी अंतिम यात्रा में केवल परिवार के चुनिंदा सदस्य ही शामिल हों।

यह सच है कि सितारा बनने की कीमत चुकानी पड़ती है, लेकिन सवाल यह उठता है कि यह कैसी कामयाबी है जो खुद अपने ही शरीर को गलाने और जलाने की तरफ मोड़ देती है। अक्सर ऐसी खबरें आती हैं कि फलां सितारे ने शिकार किया या उसने अपनी आयातित गाडी से फुटपाथ पर सोने वाले लोगों को कुचल दिया। क्या इन सितारों को समाज के नियमों या कानून का डर नहीं होता या वे ऐसी मानसिक स्थिति में पहुँच जाते हैं जहाँ उन्हें लगता है कि सब कुछ जायज है। वास्तव में जिन्दगी जीने के लिए प्राकृतिक और सामाजिक नियम, कायदे और कानून हैं। जो भी उन्हें तोड़ता है उसे कुदरत और कानून से मिलने वाली सजा भुगतनी ही पड़ती है।

(वार्ता)


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