काला धन लगभग हर क्षेत्र में है। फिल्में भी इससे अछूती नहीं है। सत्तर से लेकर नब्बे के दशक में अधिकतर फिल्मों में काला धन लगाया जाता था। खासतौर पर अंडरवर्ल्ड के डॉन फिल्म बनाने के लिए पैसे देते थे। इन फिल्मों में उनकी पसंद के कलाकार चुने जाते थे। इस बहाने वे अपने पसंदीदा कलाकारों के साथ समय व्यतीत कर लेते थे।
काले धन वालों को फिल्मों का ग्लैमर हमेशा से आकर्षित करता आया है। वे अपने इस धन के जरिये फिल्म बनाते थे। उन्हें नुकसान की चिंता नहीं रहती थी। दो-तीन फिल्मों के बाद उनका शौक पूरा हो जाता था और वे ग्लैमर वर्ल्ड से दूर हो जाते थे। उनकी जगह कोई नया व्यक्ति ले लेता है। ग्लैमर वर्ल्ड की चकाचौंध से नए लोग धन की पोटली लेकर आते रहते हैं। इसी कारण फिल्म उद्योग को 'सदा सुहागन' कहा जाता है।
एक बार कोयले की खदान के मालिक ने एक बी-ग्रेड फिल्म बनाने वाले निर्देशक को सौ करोड़ रुपये फिल्म बनाने के लिए दे दिए। उसके लिए इस निर्देशक ने कई फिल्में बनाईं जिनमें से ज्यादातर फ्लॉप रहीं। सौ करोड़ रुपये की रकम बहुत बड़ी है, लेकिन कोयले की खदान वाले के लिए यह काली रकम बेहद मामूली थी। इस बहाने उसका फिल्मी सितारों के साथ उठना-बैठना हो गया। अपने परिचितों और रिश्तेदारों को भी उसने कलाकारों से मिलवा दिया। पार्टियों में बुलाया। अपने शौक की कीमत उसने चुकाई।
पहले नामी निर्माता, वितरकों से पैसा लेकर अपनी फिल्म पूरी करते थे। वितरक जोड़-तोड़ कर पैसा पहुंचाते थे, जिसका कोई हिसाब नहीं होता था। कारपोरेट जगत के आने से काले धन में काफी कमी आई। ये लोग चेक से भुगतान करने लगे, हालांकि पूरा पैमेंट चेक से नहीं दिया जाता था। बॉलीवुड के कई सितारों के बारे में कहा गया कि वे आधी रकम काली और आधी सफेद लेते थे, लेकिन छोटी फिल्मों में ब्लैक मनी का सिलसिला अभी भी जारी है।
दरअसल फिल्म बनाते समय बहुत ज्यादा पैसा लगता है। ऊंची ब्याज दर पर पैसे उधार लिए जाते हैं। साहूकार सिनेमा वालों से सबसे ज्यादा ब्याज वसूलते हैं क्योंकि फिल्म बनाना बेहद जोखिम भरा काम है। इधर की टोपी उधर घुमाने के लिए काले धन की बहुत जरूरत फिल्म वालों को पड़ती है। खासतौर पर छोटे बजट की फिल्म बनाने वाले निर्माताओं को इस समस्या से जूझना पड़ता है।
फिल्म को बनाने के दौरान भ्रष्टाचार भी खूब होता है। एक प्रसिद्ध निर्देशक को शूटिंग के लिए बांस की जरूरत थी। उन्होंने यह बात अपने प्रोडक्शन कंट्रोलर को बताई। ज्यादातर निर्माता-निर्देशक और फिल्मी सितारे जमीन से कटे होते हैं। उन्हें आटे-दाल का भाव पता नहीं होता है। यही सोचकर उस प्रोडक्शन कंट्रोलर ने बांस के दाम दस गुना कर निर्देशक को बता दिए। उस निर्देशक को बांस का सही दाम पता था। उन्होंने प्रोडक्शन कंट्रोलर को तुरंत हटा दिया। फिल्म निर्देशक राजकुमार संतोषी फिल्म से जुड़ी हर चीज खुद खरीदना पसंद करते हैं।
सितारों की नित-नई मांग भी निर्माता पर भारी पड़ती है। सितारों की ड्रेस डिजाइन करने के बदले ड्रेस डिजाइनर अकल्पनीय धन कूटते हैं। इस तरह से सितारे भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं।
एक हजार और पांच सौ रुपये के नोट अचानक बंद कर देने से बॉलीवुड पर भी गहरा असर पड़ेगा। फिल्म प्रोडक्शन का काम बेहद धीमा हो सकता है। कारपोरेट्स के आर्थिक सहयोग से बन रही फिल्मों का निर्माण बिना किसी बाधा के जारी रहेगा, लेकिन दूसरे निर्माताओं की फिल्मों के बनने में रूकावट पैदा हो जाएगी। एक साथ इतना धन लाना उनके लिए मुमकिन नहीं है। फाइनेंस करने वालों के हाथ भी तंग हो जाएंगे। लिहाजा कई छोटे बजट की फिल्में रूक या बंद हो सकती है। इसका असर फिल्म से जुड़े लोगों पर भी पड़ेगा।