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बेफिक्रे, मेरी दूसरी पहली फिल्म: आदित्य चोपड़ा

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21 वर्ष के करियर में आदित्य चोपड़ा अपनी चौथी फिल्म 'बेफिक्रे' बतौर निर्देशक ला रहे हैं। यह फिल्म आदित्य ने आज के युवाओं के अनुरूप बनाई है और साथ ही अपनी फिल्म मेकिंग की स्टाइल में भी बदलाव लाया है। यह फिल्म उनके मिजाज से भिन्न नजर आ रही है। आइए जानते हैं क्या कहते हैं आदित्य अपनी फिल्म के बारे में : 

 
जब मैंने दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे की शूटिंग शुरू की थी तब मेरी उम्र 23 वर्ष थी। मैं युवा और निडर था। मैं कुछ नहीं जानता था,  इसलिए मैं सोचता था कि मैं सब कुछ जानता हूं। मुझे लग रहा था कि मैं अब तक की सर्वश्रेष्ठ फिल्म बना रहा हूं। यह भगवान की कृपा थी कि सर्वश्रेष्ठ फिल्म न होने के बावजूद इस फिल्म को इतनी सफलता मिली जितने कि हकदार यह नहीं थी। डीडीएलजे को प्रदर्शित हुए 21 वर्ष हो गए तब से मैंने कई फिल्में बतौर निर्माता बनाईं, एक स्टुडियो स्थापित किया, कुछ फिल्में लिखीं और निर्देशित कीं। इनसे मैंने कई बातें सीखीं, ज्ञान और अनुभव को बढ़ाया। ज्ञान आने के साथ-साथ एक किस्म का डर भी आता है। असफलता का डर, अपेक्षाओं पर खरा न उतर पाने का डर। जब आप बहुत ज्यादा जानने लगते हैं तब अधिक सावधान हो जाते हैं, जिसके कारण आपकी निडरता खत्म हो जाती है जो बहुत जरूरी होती है। मुझे लगा कि यह समय है अपने आपको रिबूट करने का। 
 
यदि मैं इस समय 23 वर्ष का होता तो किस तरह की फिल्म बनाता? मैं सोचता हूं कि डीडीएलजे जैसी फिल्म तो नहीं बनता क्योंकि 23 वर्षों में युवाओं का नजरिया बहुत बदल गया है। उस दौर का 23 वर्षीय युवक और आज के 23 वर्षीय युवक समान नहीं है। यदि आज राज, सिमरन को कहे कि सिमरन मैं तुम्हें तभी ले जाऊंगा जब तुम्हारे बाबूजी मुझे अनुमति देंगे तो सिमरन पलट कर कहेगी- 'डूड, मैं जा रही हूं, जब तुम्हारा मेरे डैड से पैच-अप हो जाए तो मुझे ढूंढ लेना।' दुनिया अब बदल चुकी है। प्यार की परिभाषा बदल चुकी है। सबसे महत्वपूर्ण बात, महिलाएं बदल चुकी हैं। आज, वे पुरुषों की बराबरी (वास्तव में पुरुषों से शक्तिशाली) पर हैं। इसने प्यार के नियमों को हमेशा के लिए बदल दिया है। 
 
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मैं चाहता था कि ऐसा महसूस करूं मानो अपनी पहली फिल्म बना रहा हूं। इसके लिए जरूरी था कि मैं अपने आसपास ऐसे लोगों को चुनूं जिन्हें मैं नहीं जानता। चूंकि 'बेफिक्रे' पेरिस में सेट है, इसलिए मैंने फ्रेंच क्रू को चुना। मेरे सभी महत्वपूर्ण तकनीशियन, सिनेमाटोग्राफर, प्रोडक्शन डिज़ाइनर, कॉस्ट्यूम डिजाइनर, फ्रेंच थे। चूंकि उनके लिए मैं एक अनजान शख्स था, इसलिए वे मेरी पिछली सफलताओं से बिलकुल प्रभावित नहीं थे। वे मुझसे सामान्य निर्देशक की तरह व्यवहार कर रहे थे। वे मुझे और मेरे काम करने के तरीके के बारे में भी नहीं जानते थे तो मैं एक बार फिर सिनेमा का विद्यार्थी बन गया। अन्य महत्वपूर्ण निर्णय मेरा अपने लेखन को लेकर था। आज तक मैंने जितना लिखा उसके तीन आधार स्तंभ हैं- नाटकीय संघर्ष, जबरदस्त भावनाएँ और तीव्र रोमांस। मैंने इन तीनों स्तंभों को तोड़ने का फैसला यह सोचकर किया कि क्या मैं इनके बिना टिक पाता हूं। यह डरावना जरूर है, लेकिन इसमें बेफिक्री भी है। 
 
आज मैं 45 का हूं, और एक बार फिर बेफिक्र हूं। निडर हूं। अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर आया हूं और युवाओं की तरह बैचेन हूं। मैं जो जानता था उन्हें भूला चुका हूं और यह जानने की कोशिश कर रहा हूं कि क्या आज के युवाओं के बीच मैं प्रासंगिक हूं। पिछले 21 वर्षों में मैंने मात्र तीन फिल्में निर्देशित की हैं और हर बार लोगों ने मुझे प्यार देकर फिल्मों को सफल बनाया है। मुझे लगता है कि इस बार भी उनका प्यार मिलेगा। मैं अपनी बात यह कह कर समाप्त करना चाहता हूं 'मैं अपनी फिल्म के अनुरूप बेफिक्र हूं, लेकिन थोड़ा डरा हुआ भी हूं।' 


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