सलीम जावेद ने सत्तर के दशक में एंग्रीयंग मैन का किरदार रचा था। उस दौर में लोग कालाबाजारी, बेरोजगारी और सिस्टम में फैले भ्रष्टाचार से बेहद परेशान थे। एंग्रीयंग मैन फिल्मों में कानून अपने हाथ में लेकर भ्रष्ट लोगों को सबक सिखाता था। सिनेमाहॉल में बैठी जनता को यह नायक अपने जैसा लगा और वह फिल्म में ही सही, लेकिन अन्याय के खिलाफ लड़ रहे नायक को देख कर खुश हो लेती थी। अमिताभ बच्चन ने एंग्रीयंग मैन का किरदार पूरे जोशो-खरोश और ऊर्जा के साथ निभाया था।
जवान का किरदार भी एंग्रीयंग मैन की तरह ही है। अमिताभ बच्चन अभिनीत 'आखिरी रास्ता' और कमल हासन अभिनीत 'इंडियन' को मिलाकर 'जवान' तैयार की गई है। 80 के दशक की कई और फिल्में भी आपको 'जवान' देखते समय याद आएगी।
जवान का हीरो गुस्से से भरा हुआ है क्योंकि बेकसूर लोगों को जेल में डाल दिया गया है या उनके साथ अन्याय हो रहा है जबकि भ्रष्ट लोग खुलेआम घूमते हुए जीवन का मजा ले रहे हैं। अस्पताल में ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं होने कई बच्चों की जान चली जाती है और दोष बेकसूर डॉक्टर पर डाल दिया जाता है। ऐसी एक घटना सही में हुई है और दिमाग पर जोर डालेंगे तो याद आ जाएगी।
आम लोग बातचीत करते हैं कि चंद रुपये बैंक से लोन लेने के बाद नहीं चुका पाते हैं तो बैंक वाले इतना पीछे पड़ जाते हैं कि किसान आत्महत्या कर लेते हैं। वहीं कुछ उद्योगपति अरबों रुपये का लोन नहीं चुका पाने के बावजूद ऐशो-आराम से घूमते हैं और उनका कुछ बिगड़ता नहीं। इसी आम बात को 'जवान' में उठाया गया है।
हथियार खरीदने में भ्रष्टाचार का मुद्दा भी फिल्म में दिखाया गया है। पैसों से वोट खरीदने की तरकीबें और ईवीएम मशीन को लेकर भी बात की गई है।
शाहरुख खान का एक मोनोलॉग भी है जिसमें वे आम आदमी को वोट की कीमत समझाते हैं। वे कहते हैं जात-पात-धर्म के आधार पर वोट मत दीजिए। जब आप एक पेन खरीदने जाते हैं तो कई सवाल करते हैं, लेकिन वोट मांगने आए उम्मीदवार से सवाल करते हैं कि वह हमारी बेहतरी के लिए क्या करेगा?
इन मुद्दों पर एक नहीं कई फिल्में बनी है। गंभीर फिल्में भी बनी हैं, लेकिन वे ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंची है। 'जवान' एक मसाला फिल्म है जो एक्शन की लहर पर सवार है। गाने और रोमांस हैं। थोड़ी कॉमेडी भी है। और इन सबके बीच इन मुद्दों को छुआ गया है। मनोरंजन की मीठी चाशनी के बीच दर्शक कड़वी गोली खा लेते हैं। इसलिए जवान को दर्शक हाथों-हाथ ले रहे हैं। आम दर्शक ज्यादा से ज्यादा बात समझ आए उस अंदाज में फिल्म का प्रस्तुतिकरण रखा है।
शाहरुख के दोनों किरदार पसंद किए जा रहे हैं। भले ही अन्याय करने वालों को सबक सिखाने का उनका रास्ता गलत है, लेकिन इसके अलावा उनके पास कोई विकल्प भी नहीं है। यही बात दर्शकों को अपील कर रही है।
एक बात और, इस बार शाहरुख की फिल्म के रिलीज के पहले उनके खिलाफ नफरत वाले मैसेज नहीं देखे गए। फिल्म का बहिेष्कार की अपील नहीं की गई। किसी की भावनाएं आहत नहीं हुई। 'पठान' की सफलता ने सबकी बोलती बंद करा दी थी इसलिए नफरत फैलाने वाली गैंग ने 'जवान' के समय चुप रहने में ही भलाई समझी।