क्रिकेटर मोहम्मद अज़हरुद्दीन के जीवन से प्रेरित 'अज़हर' को दर्शकों ने नकार दिया है। बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म औंधे मुंह गिरी है। फिल्म के निर्माताओं को नुकसान नहीं हुआ है क्योंकि उन्होंने वितरकों को फिल्म बेच दी थी। बेचारे वितरक इस फिल्म को खरीद कर डूब गए हैं। दोष लेखक, निर्माता और निर्देशक का है जिन्होंने ढंग की फिल्म नहीं बनाई। चर्चा करते हैं उन पांच कारणों की जिनके कारण यह फिल्म अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी।
पहला कारण : अज़हर के बारे में कम जानकारी
अज़हर ने अपना आखिरी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच वर्ष 2000 में खेला था। यानी कि 16 वर्ष पहले। सिनेमा देखने वालों में ज्यादातर दर्शक 25 वर्ष से कम उम्र के होते हैं। वे अज़हर के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं। फिल्म में अज़हरुद्दीन को इस तरह पेश किया गया है मानो दर्शक सब जानते हों। जिन्होंने अज़हर को खेलते देखा है या क्रिकेट के गहरे जानकार हैं वे फिल्म को समझ पाते हैं, लेकिन जिन्हें अज़हर के बारे में अल्प जानकारी है, फिल्म उन्हें समझ नहीं आती। फिल्म का प्रस्तुतिकरण सरल होना चाहिए था।
दूसरा कारण : बायोपिक या मसाला
फिल्म की शुरुआत में स्पष्ट कर दिया गया कि यह बायोपिक न होकर अज़हर के जीवन की कुछ घटनाओं से प्रेरित है, लिहाजा कई लोगों की उम्मीद वहीं खत्म हो जाती हैं। मनोरंजन के लिए फिल्म बनाई गई है, लेकिन यह प्रयास विफल रहा है। फिल्म पूरी तरह से 'मैच फिक्सिंग कांड' पर आधारित है। लंबा समय फिल्म पर इस बात पर ही खर्च किया गया है और अज़हर के अन्य पहलुओं की उपेक्षा की गई है।
तीसरा कारण : स्क्रिप्ट बनी खलनायक
फिल्म की स्क्रिप्ट सबसे बड़ी खलनायक है। फिल्म में अज़हर को रिश्वत लेते हुए दिखाया गया है। लंबे समय तक दर्शक यही समझते हैं कि अज़हर ने गलत किया है और वे अज़हरुद्दीन के किरदार से हमदर्दी नहीं रखते हैं। उन्हें वह विलेन लगता है। बहुत देर बाद पता चलता है कि अज़हर ने यह रकम इसलिए ली थी कि ताकि फिक्सर किसी दूसरे क्रिकेटर को अपने जाल में न फंसा ले। अज़हर वह रकम लौटा देता है, लेकिन यह दिखाने में बहुत देर कर दी।
चौथा कारण : गलत निर्देशक का चुनाव
टोनी डिसूजा नामक निर्देशक का चुनाव पूरी तरह गलत है। 'ब्लू' और 'बॉस' जैसा हादसा वे रच चुके हैं। इन दोनों फिल्मों में उन्हें बड़े सितारे और भव्य बजट मिला, लेकिन टोनी ने फिल्में इतनी घटिया बनाईं कि बॉक्स ऑफिस पर ये फिल्में औंधे मुंह गिरीं। इस तरह के निर्देशक को बायोपिक देना बहुत जोखिम भरा काम था और टोनी फिर विफल रहें। उनका प्रस्तुतिकरण कन्फ्यूजन पैदा करता है और फिल्म समझने में आम दर्शक को तकलीफ होती है।
पांचवां कारण : अभिनेताओं ने किया कबाड़ा
कई बार अच्छे अभिनेता खराब फिल्म को संभाल लेते हैं, परंतु अज़हर के कलाकारों ने खराब एक्टिंग कर गरीबी में आटा गीला कर दिया। इमरान हाशमी ने कॉलर खड़ी कर ली और चाल-ढाल अपना कर सोच लिया कि अज़हर बन गए, लेकिन अपने अभिनय से वे निराश करते हैं। कपिल देव, रवि शास्त्री, नवजोत सिद्धू आदि की भूमिका निभाने वाले जोकरों की तरह नजर आएं। उन्होंने बेहद खराब अभिनय कर निराश किया।