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बॉम्बे वेलवेट फ्लॉप होने के 5 कारण

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समय ताम्रकर

बॉम्बे वेलवेट को अनुराग कश्यप की 'आग' बताया जा रहा है। आग यानी रामगोपाल वर्मा द्वारा बनाई गई फिल्म 'रामगोपाल वर्मा की आग' जो शोले का घटिया रीमेक थी। 'हिम्मतवाला' को साजिद खान की आग बताया गया। बॉलीवुड में मायूसी छाई हुई है क्योंकि 'बॉम्बे वेलवेट' इतनी बुरी तरह पिटी है कि पूरा फिल्म उद्योग थरथरा गया है। फिल्म से जुड़े लोगों को बहुत बड़ा घाटा उठाना पड़ेगा। आखिर यह फिल्म क्यों पिटी? पेश है इसके पांच कारण। 
कारण नंबर एक : कमजोर स्क्रिप्ट 
बार-बार कहा जाता है कि किसी भी फिल्म की सफलता के लिए स्क्रिप्ट का दमदार होना बहुत जरूरी है। भले ही पांच करोड़ रुपये की फिल्म बनाई जाए, लेकिन स्क्रिप्ट दमदार है तो फिल्म चल निकलेगी। करोड़ों रुपये की लागत से तैयार फिल्में कमजोर स्क्रिप्ट के कारण फ्लॉप होती आई हैं, चाहे द बर्निंग ट्रेन हो, रूप की रानी चोरों का राजा हो या फिर रामगोपाल वर्मा की आग हो। बावजूद इसके सबक अब तक सीखा नहीं गया है। बॉम्बे वेलवेट में कई बेसिक बातों की ओर ध्यान नहीं दिया गया। मिसाल के तौर पर फिल्म में मौजूद एक किरदार को ब्लैकमेल करने के लिए करण जौहर अपनी पत्नी को उसके बेडरूम में भेजता है और दोनों की अंतरंग तस्वीरें ले ली जाती है। इन तस्वीरों के बल पर करण उसे ब्लैकमेल करता है, लेकिन उसे इस बात का डर नहीं है कि वह आदमी भी इन तस्वीरों के जरिये करण को ब्लैकमेल कर सकता है क्योंकि फोटो में करण की बीवी भी नजर आ रही है। 
 
इसी तरह फिल्म में दिखाया गया है कि अनुष्का के किरदार की मौत हो गई है, जबकि असल में रणबीर ने उसे बचा लिया है। अगले ही दिन अनुष्का को रणबीर, जुड़वां बहन के रूप में पेश कर देता है। ये ट्रेक निहायद ही बेहूदा है। बॉम्बे पर कब्जा करने के लिए षड्यंत्र रचे जाते हैं, लेकिन ये बातें किसी के पल्ले ही नहीं पड़ती। इन कमियों के चलते दर्शक जल्दी ही फिल्म में रूचि खो बैठते हैं। 

कारण नंबर दो : बड़बोले अनुराग कश्यप 
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अनुराग कश्यप फिल्म की कमजोर कड़ी साबित हुए। अब तक उन्होंने सुपरहिट फिल्म नहीं बनाई है, लेकिन उन्हें 110 करोड़ रुपये की फिल्म बनाने की जिम्मा दे दिया गया। स्टार्स का साथ मिल गया। देखने में आया है कि कम बजट में सार्थक फिल्म रचने वाले निर्देशक सुपरस्टार्स का साथ मिलते ही बहक जाता है। यही अनुराग के साथ हुआ। वे ढंग की फिल्म नहीं बना पाए। मीडिया में उन्हें हमेशा बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है। उनसे बेहतर फिल्में शुजीत सरकार (विकी डोनर, मद्रास कैफे, पीकू) ने बनाई है, लेकिन वे सुर्खियों में नहीं रहते। जबकि अनुराग कश्यप अपने आपको ऐसा पेश करते हैं मानो वे बॉलीवुड का चेहरा बदलने का माद्दा रखते हो। बड़बोलेपन का खामियाजा साजिद खान भुगत चुके हैं और अब अनुराग भुगत रहे हैं। बढ़-चढ़ कर बयानबाजी करने वाले लोगों के निशाने पर आ जाते हैं। जहां बॉम्बे वेलवेट में अनुराग कमजोर साबित हुए उनकी खिल्ली उड़ा दी गई। इन बातों को परे रख कर 'बॉम्बे वेलवेट' की बात की जाए तो अनुराग आत्म-मुग्ध नजर आए। स्क्रिप्ट पर सेट और उनका प्रस्तुतिकरण भारी पड़ा। अनुराग शायद इसी सोच में फिल्म बनाते रहे कि वे महान रचना रच रहे हैं। अनुराग अच्छे तकनीशियन हैं और यह बात 'बॉम्बे वेलवेट' में भी नजर आती है, लेकिन पूरी फिल्म उस खूबसूरत शरीर की तरह है जिसमें जान नहीं है।

कारण नंबर तीन : 110 करोड़ का बजट
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फिल्म का बजट प्रचार सहित 110 करोड़ रुपये है, जिसमें विभिन्न राइट्स के जरिये 40 करोड़ रुपये आए हैं। बची हुई रकम की वसूली के लिए फिल्म को भारत के सिनेमाघरों से 140 करोड़ रुपये का व्यवसाय करना होगा, जो बेहद मुश्किल है। ये इतना बड़ा आंकड़ा है कि अजय देवगन/ अक्षय कुमार जैसे स्टार्स की फिल्मों को यहां तक पहुंचने में पसीने छूट जाते हैं। ऐसे में रणबीर के लिए यह बहुत ही मुश्किल काम है। वैसे भी रणबीर का करियर ठंडा चल रहा है। हैरत होती है कि निर्माताओं ने इतना पैसा लगाना मंजूर कैसे कर लिया। सारा पैसा फिल्म को 60 के दशक के लुक और फील देने में चला गया। भला सेट देखने के लिए कोई टिकट खरीदता है क्या? 

कारण नंबर चार : यूनिवर्सल अपील नहीं 
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यदि आप महंगे बजट की फिल्म बना रहे हैं तो इसमें यूनिवर्सल अपील होना चाहिए। फिल्म आम से लेकर क्लास दर्शक तक तो पसंद आना चाहिए। मुंबई से लेकर तो ठेठ छोटे शहर में बैठे इंसान को फिल्म अपील करना चाहिए। ये बात 'बॉम्बे वेलवेट' में नदारद है। एक बहुत छोटे-से सेक्शन को छोड़ दिया जाए तो न यह आम दर्शक को पसंद आई और न ही खास दर्शक को। आम दर्शक के ‍लायक मसाले इसमें नहीं हैं और न ही ऐसे फिल्म में ऐसे उतार-चढ़ाव हैं जो 'क्लास सेक्शन' को अपील कर पाए। 

कारण नंबर पांच : एक्टिंग के नाम पर सिगरेट और शराब पीते रहे किरदार
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कई बार कमजोर स्क्रिप्ट को बढ़िया एक्टिंग बचा ले जाती है, लेकिन फिल्म के मुख्य किरदार रणबीर कपूर और अनुष्का शर्मा अभिनय को वे ऊंचाइयां नहीं दे पाए जो स्क्रिप्ट की डिमांड थी। रणबीर ने ऐसा किरदार निभाया है जो जुनूनी है और किसी भी तरीके से वह कम समय में अधिक पैसा कमाना चाहता है। लेकिन रणबीर इस किरदार को त्रीवता के साथ पेश नहीं कर पाए। दूसरी ओर अनुष्का और उनकी केमिस्ट्री बेहद ठंडी रही जबकि सेकंड हाफ में फिल्म उनकी प्रेम कहानी पर शिफ्ट हो जाती है। अनुष्का शर्मा का किरदार ऐसा लिखा गया है कि वे खुद कन्फ्यूज हो गईं। फिल्म में ज्यादातर कलाकार सिगरेट के धुएं के छल्ले उड़ाते और शराब गटकते ही नजर आए। 

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