Cannes Film Festival: कान फिल्म फेस्टिवल में कोविड के पहले वाले दौर में लम्बी लम्बी लाइन और उनमें पनपी दोस्ती के अनगिनत किस्से हैं, लेकिन महामारी ने इन लाइन को कम करने की, भीड़ को काम रखने की जरूरत बढ़ा दी। इस वजह से ऑनलाइन टिकट बुकिंग शुरू की गई है।
फेस्टिवल तो 16 मई को शुरू हुआ है लेकिन फेस्टिवल में फिल्म देखने की चाहत रखने वाले 12 तारीख से अलसुबह उठ कर अपनी किस्मत आज़मा रहे हैं। कुछ लोगों को आसानी और फटाफट टिकट बुक करने की तरकीब मिल गई है और कुछ अभी तक हैरान हो रहे हैं।
जिस दिन स्पेनिश फिल्म डायरेक्टर पेड्रो अल्माडोवार की आधे घंटे की फिल्म की टिकट मिलना शुरू होने वाले थे उस दिन इस कदर भीड़ हुई कि वेबसाइट ही क्रैश हो गई। और उस दिन से लेकर 17 मई तक एक भोली उम्मीद यही थी कि कोई बात नहीं टिकट नहीं मिली तो क्या हुआ, हम दो घंटे पहले लाइन में लग जाएंगे और कुछ न कुछ तो हो ही जाएगा।
खैर अगर यह बात हमारे दिमाग में आई थी तो औरों के भी आई ही होगी, इस बात पर हमने ध्यान देना ज़रूरी नहीं समझा। और जब प्लान के मुताबिक दो घंटे पहले पहुंचे तो जाना कि एक हुजूम एक घंटा पहले से कतार में है। लाइन चीन की दीवार की तरह लंबी और लंबी होती ही चली गई।
इतने लोगों की एक डायरेक्टर और उसकी फिल्म के पीछे दीवानगी देख कर आसमान का दिल भर आया और जो पानी छलका कि पूछिए ही मत। लेकिन मजाल है कि कोई टस से मस भी हुआ हो। लेकिन इतनी तपस्या का कोई फल नहीं मिला। सिक्योरिटी टीम ने आकर खबर दे दी हॉल भर गया है और सब लोग वापस जाएं। इस ग़दर के बाद पता चला कि बहुत से ऐसे लोग भी रह गए जिनके पास टिकट थे लेकिन अंदर जगह नहीं बची थी।
खैर यह कान फिल्म फेस्टिवल है जहां एक जगह न मिले तो दूसरे दरवाजे खुले ही रहते है और इसी के चलते माइकल डगलस के इंटरव्यू में जाने का मौका मिल गया। यहां माइकल ने अपनी जिंदगी, अपनी फिल्मों और इतने लंबे फिल्मी सफर पर खुल कर बातें की। लेकिन पहले दिन की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुई। इसके बाद रात साढ़े दस बजे की फिल्म 'होम कमिंग' थी जो रात ग्यारह बजकर दस मिनिट तक शुरू नहीं हुई थी।
इसकी वजह पहले वाली फिल्म और उसके क्रू से बातचीत लंबी चल गई। इतना ही नहीं लोगों ने बताया की दोपहर में उनकी एक फिल्म में प्रोजेक्शन की गड़बड़ी की वजह से 20 मिनिट की देरी हुई। फेस्टिवल डेलिगेट /डायरेक्टर थिएरी फ्रेमाउ ने कहा था कि इस साल उन्होंने दस हजार एप्लीकेशन कैंसिल की ताकि प्रेस और मीडिया के लोगों को फिल्में देखने में मुश्किल न हो।
लेकिन जिस तरह से भीड़ बढ़ रही है उसके हिसाब से नई जगहों को बनाना या खोजना होगा जहां फिल्में दिखाई जा सकें। कान फिल्म फेस्टिवल और उसकी फिल्मों के लिए प्यार ही है जो इतनी भीड़ जमा होती है लेकिन इस तरह से थकान और दुःख भरे दिन लोगों के उत्साह को काम करते हैं।
Edited By : Ankit Piplodiya