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बजट, बॉक्स ऑफिस और फिल्म

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समय ताम्रकर

'बजट' बहुत महत्वपूर्ण है। देश के लिए भी, घर के लिए भी और सिनेमा के लिए भी। घर के बजट में कमाई के आधार पर खर्च और बचत तय की जाती है। देश के बजट में भी संतुलन बनाने की कोशिश की जाती है, लेकिन आमतौर पर हर सरकार घाटे का बजट ही पेश करती है। फिल्म का भी बजट तय किया जाता है कि कितना खर्चा होगा और कैसे रकम वसूल होगी। वर्षों पहले तो निर्माता फिल्म रिलीज कर देता था और संगीत के राइट्स तथा सिनेमाघरों में टिकट की बिक्री से ही उसे रकम वसूल करना होती थी। अब कई तरह के राइट्स बेचकर मुनाफा कमाया जा सकता है।
 
फिल्म का बजट उसकी स्टारकास्ट और किस प्रकार की कहानी है उसके आधार पर तय होता है। ज्यादातर निर्माताओं से यहीं चूक हो जाती है और उनकी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर घाटे का सौदा साबित होती है। ताजा उदाहरण लेते हैं। कुछ दिनों पहले 'फितूर' रिलीज हुई थी। इसे सत्तर करोड़ रुपये में बनाया गया। अब आदित्य राय कपूर जैसे कलाकार पर इतनी बड़ी रकम लगाना आश्चर्य की बात है। आदित्य राय कपूर ऐसे सितारे तो है नहीं कि उनके नाम पर दर्शक खींचे चले आएं, लिहाजा फिल्म को ओपनिंग लगने का तो सवाल ही नहीं उठता जबकि शुरुआती तीन दिन किसी भी फिल्म की सफलता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। 
 
फितूर के विभिन्न राइट्स बेचने पर भी इसे सिनेमाघरों से सौ करोड़ रुपये का कलेक्शन करना होता, तब जाकर लागत निकल पाती। यदि 'फितूर' दर्शकों को पसंद भी आती तो भी इतना कलेक्शन करना इसके लिए असंभव था क्योंकि कहानी में यूनिवर्सल अपील नहीं थी। यह एक खास दर्शक वर्ग के लिए बनाई गई थी। इसलिए फिल्म का बजट तय करते समय यह भी ध्यान रखना पड़ता है कि यह किस दर्शक वर्ग के लिए बनाई जा रही है। 
दूसरा उदाहरण भी ताजा फिल्म का ही है। फिल्म का नाम है 'सनम रे', जो 'फितूर' के सामने प्रदर्शित हुई थी। इस फिल्म का निर्माण टी-सीरिज ने किया जो बजट का खासा ध्यान रखते हैं। पब्लिसिटी सहित फिल्म की लागत 20.50 करोड़ रुपये में पड़ी। 
 
फिल्म को विभिन्न राइट्स के जरिये 16.50 करोड़ रुपये रिलीज के पहले ही मिल गए। तीन दिन में भारत से फिल्म ने 17.05 करोड़ रुपये का कलेक्शन किया जिससे वितरक का शेयर बना 7.67 करोड़ रुपये। कुल हुए 24.17 करोड़ रुपये। तीसरे दिन ही फिल्म से 3.67 करोड़ रुपये मुनाफा हो गया और यह कमाई लगभग पांच से सात करोड़ तक पहुंच गई। 
 
इस फिल्म में पुलकित सम्राट हीरो हैं जिनकी भी स्टार वैल्यू नहीं है, लेकिन कम बजट में फिल्म का निर्माण होने से फायदा हुआ। यह फिल्म मात्र 28 से तीस करोड़ रुपये का कलेक्शन कर हिट हो गई तो दूसरी ओर 'बैंग बैंग' जैसी फिल्में भी है जिन्होंने पौने दो सौ करोड़ रुपये से ज्यादा का कलेक्शन किया पर लागत नहीं निकली क्योंकि बजट बहुत ज्यादा था। 
 
महेश भट्ट भी बजट का खासा ध्यान रखते हैं इसलिए उनकी ज्यादातर फिल्में सफल रहती हैं। कम बजट की फिल्मों में जोखिम भी कम रहता है। यूं तो ‍बहुत ज्यादा एक्शन या स्पेशल इफेक्ट्स न हो तो फिल्म निर्माण में बहुत ज्यादा लागत नहीं लगती है, लेकिन बजट को सितारे बिगाड़ देते हैं। ये सितारे इतनी ज्यादा रकम वसूलते हैं कि बजट का 60 से 70 प्रतिशत हीरो, हीरोइन और निर्देशक की फीस में ही खर्च हो जाता है। रणबीर-दीपिका की 'तमाशा' में यही हुआ था और फिल्म पिट गई थी। 
 
कई सितारे मुनाफे में हिस्सा लेने लग गए हैं और यह नीति उचित भी है। कम ‍फीस लेकर वे काम करते हैं और फिल्म के हिट होने पर लाभ में उनकी भागीदारी होती है। हाल ही में अक्षय कुमार ने इस नीति पर चलते हुए 'एअरलिफ्ट' से 55 करोड़ रुपये से ज्यादा कमाए। निर्माता से भी ज्यादा पैसा उनके खाते में गया। 
 
कई ‍बार बजट कुछ अन्य कारणों से भी गड़बड़ा जाता है। शूटिंग तय शेड्यूल से ज्यादा चलती है। सितारे डेट्स नहीं देते। मौसम खराब हो जाता है। दुर्घटना घट जाती है। फिल्म जब तक तैयार होती है तब तक सितारे की स्टार वैल्यू में गिरावट आ जाती है। संतुलित बजट भी फिल्म की कामयाबी की गारंटी नहीं है। फिल्म का चलना या न चलना दर्शकों पर निर्भर है, इसीलिए फिल्म निर्माण को सर्वाधिक जोखिम वाला बिजनेस माना जाता है। 

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