Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

Cannes film festival: Occupied City और The Zone of Interest जैसी फिल्मों की सख्त जरूरत है

हमें फॉलो करें Cannes film festival: Occupied City और The Zone of Interest जैसी फिल्मों की सख्त जरूरत है

प्रज्ञा मिश्रा

, मंगलवार, 23 मई 2023 (12:34 IST)
Photo: Social Media
जर्मन फिल्म डायरेक्टर विम वेंडर्स (जिनकी दो फिल्में इस साल official selection में हैं और एक तो अवॉर्ड की दावेदार भी है) ने कहा कि हमें (कलाकारों को) पलट कर अपने इतिहास और उसके युद्ध को उसकी बुराई को देखना आना चाहिए क्योंकि जब हम बुरे दौर की आँखों में आँखें डाल कर देख सकते हैं, जब हम इन घटनाओं को न सिर्फ अपना लेते हैं बल्कि दूसरे कलाकारों के साथ इन्हें दोहरा भी सकते हैं, तब ही हम अपने आज को और आने वाले कल को बेहतर समझ पाते हैं, यह बहुत तकलीफ देने वाली प्रक्रिया है और कभी कभी गलत भी हो सकती है लेकिन मेरे ख्याल से यही बेहतर तरीका है। 
 
पिछले दशक में ही दूसरे विश्व युद्ध पर बनी अनगिनत फिल्में आई हैं और इस साल भी कान फिल्म फेस्टिवल में दो फिल्में हैं, ब्रिटिश डायरेक्टर स्टीव मक्क्वीन की डॉक्यूमेंट्री फिल्म "occupied city " मौजूदा एम्स्टर्डम में फिल्माई गई है, लेकिन वो कहानी कहती है उस दौर की जब घरों से यहूदियों को निकाला जा रहा था, उन्हें घर, शहर, देश और बाद में अपनी ज़िन्दगी, छोड़ने को मजबूर किया गया। 
 
एम्स्टर्डम शहर में नाज़ी सरकार के तले लोगों की ज़िन्दगी कहानी है यह फिल्म। चार घंटे की इस डॉक्यूमेंट्री में कई ऐसे सीन हैं जो दिल दहला देते हैं, जैसे पुराने एम्स्टर्डम में जहाँ यहूदियों को जेल में रखा जाता है और उनसे यह कहलवाया जाता है कि "मैं यहूदी हूँ मुझे जान से मार दीजिए, यह मेरी ही गलती है।" आज के एम्स्टर्डम में वहां खुली जगह है और नज़दीक में ही हार्ड रॉक कैफ़े है। अगर एम्स्टर्डम की कुछ यादें हों तो यह देखना मुश्किल पड़ता है। 
 
ब्रिटिश डायरेक्टर जोनाथन ग्लेज़र ने लेखक मार्टिन अमिस की किताब ज़ोन ऑफ़ इंटरेस्ट पर इसी नाम से फिल्म बनाई है और यह कॉम्पीटीशन सेक्शन में है। फिल्म की कहानी है औश्वित्ज़ concentration कैंप के कमांडेंट और उसके परिवार की। 
 
फिल्म दिखाती है कि किस तरह औश्वित्ज़ कैंप की बाउंड्री वॉल के दूसरी तरफ कमांडेंट का परिवार रहता है, उनकी ज़िन्दगी पर इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि दीवार के उस तरफ से चीखने चिल्लाने और गोलियों की आवाज़ आ रही है लेकिन उन्हें इस बात से फर्क पड़ता है कि जिस नदी में वो नहाने जाते हैं वहां कैंप में मारे गए लोगों की लाशों की राख पानी में मिल गई है। फिल्म में कैंप के अंदर का एक ही सीन नहीं है लेकिन उनकी बातें ही रूह कँपा देने के लिए काफी हैं।
 
इंग्लिश का phrase है "banality ऑफ़ evil " जिसका सीधा सीधा अनुवाद होता है "बुराई की तुच्छता " ... फिल्म भी यही दिखा रही है कि इन लोगों ने बुराई को कितने कम दर्जे में समेट दिया है कि अब उससे उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता।
 
यह दिखाती है कि इंसान कितना क्रूर हो सकता है और फिर भी खुद को सही मान सकता है। ख़ौफ़नाक बात तो यह है कि यह इंसानों के इंसानों पर ज़ुल्म की कहानी है। और अगर यह ख्याल आए कि हम तो कभी ऐसा नहीं होने देंगे तो फिर से खुद के अंदर झाँकने की ज़रुरत है।
 
दरअसल यह फिल्में इतिहास का सबक नहीं हैं बल्कि इतिहास का अनुभव हैं और आज के दौर में ऐसी बातों की, ऐसी फिल्मों की सख्त ज़रुरत है जो इंसान को कहीं न कहीं इंसान बनाये रखें।

रूस के यूक्रेन पर हमले के खिलाफ आवाज़
फ्रांस में हालिया दौर में हर कोने में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, ऐसे में कान फिल्म फेस्टिवल के शुरू होने से पहले ही यह खबर आ गयी थी कि फेस्टिवल वाले इलाके में कोई भी प्रदर्शन करना मना है। लेकिन सरकार के नियमों को सर माथे पर बिठा लें ऐसी तो यह जनता नहीं है।

रविवार की देर रात रेड कारपेट पर एक लड़की यूक्रेन के झंडे के रंगों वाले कपडे पहने आई, जैसे ही उसने चार सीढ़ियां चढ़ी उसने अपने ऊपर लाल रंग डाल लिया, उसे तुरंत ही सिक्योरिटी गार्ड्स ने सीढ़ियों से हटाया और उस इलाके से ही हटा दिया। यह सब इतनी जल्दी में हुआ कि आस पास मौजूद लोगों को समझ भी नहीं आया। लेकिन वो लड़की अपनी बात कहने में कामयाब हो गई। 
 
यह तो पता नहीं चला कि वो कौन थी लेकिन यह साफ़ है कि वो रूस के यूक्रेन पर हमले के खिलाफ अपने तरह से आवाज़ उठा रही थी।  अभी यह भी पता नहीं चला है कि क्या उस लड़की पर कोई केस होगा?  
 
कान फिल्म फेस्टिवल का रेड कारपेट हर साल किसी न किसी विरोध प्रदर्शन का गवाह है, यहाँ टॉपलेस प्रदर्शनकारी कभी भी आ सकते हैं, पिछले साल भी एक लड़की ने इस हमले के खिलाफ अपने कपडे उतार दिए थे।
 
पिछले साल की ही बात है जब महिलाओं के मर्डर के खिलाफ और इस मुद्दे को दुनिया के सामने लाने के लिए महिलाएं इन रेड कारपेट की सीढ़ियों पर बैनर और धुआं छोड़ती मशालों को लेकर खड़ी हुई थीं।  मई 2021 से मई 2022 तक फ्रांस में 129 महिलाओं की हत्या हुई जो बहुत ही चौंकाने वाला है। ..  

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

क्यू टीवी के शो 'काली- द सुपरशक्ति' ने जीता बच्चों और बड़ों का दिल