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अपनी दिलचस्पी की चीज़ें खोजिए, बचपन एक जश्न बन जाएगा: इरफान खान

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, शनिवार, 26 नवंबर 2016 (12:19 IST)
- शकील अख़्तर

नई दिल्ली। 'बचपन जश्न तब बनता है, जब एक बच्चा अपनी दिलचस्पी की चीज़ें खुद में खोजकर उसे करने लगता है।' मशहूर एक्टर इरफ़ान ख़ान ने बच्चों से यह बात पहले इंटरनेशनल फेस्टिवल 'जश्न-ए-बचपन' में कही। दिल्ली के नेशनल ऑफ स्कूल ड्रामा (एनएसडी) के कैम्पस में आयोजित देश-विदेश के बाल कलाकारों का यह 13वां आयोजन 'डायनासौर' नाटक के मंचन के साथ समाप्त हो गया। 'थिएटर इन एजुकेशन' यानी 'टाई' कंपनी के इस बड़े आयोजन में 14 से 25 नवंबर तक 27 नाटक खेले गए तथा इसमें देश-विदेश के 550 बाल कलाकारों ने हिस्सा लिया।

 
इरफ़ान को देखकर खुश हुए बच्चे
समापन समारोह में संस्कृति मंत्रालय के एडिशनल सेक्रेटरी कुमार संजय कृष्णा और ज्वॉइंट सेक्रेटरी प्रणव खुल्लर के साथ 'टाई' कंपनी के प्रमुख अब्दुल लतीफ़ खटाना ने भी अपनी बात रखी, लेकिन हज़ारों की संख्या में मौजूद बच्चों की सबसे ज़्यादा दिलचस्पी अपने प्रिय एक्टर इरफ़ान ख़ान को करीब से देखने और सुनने की थी। इरफ़ान ख़ान को देखते ही बच्चे खुशी से झूम उठे। इरफ़ान ख़ान ने भी सीटी बजाकर बच्चों का गर्मजोशी से स्वागत किया।
 
बच्चों से बात करते हुए इरफ़ान ने कहा कि 'कोई भी चीज़ जब पूरी दिलचस्पी के साथ की जाती है तब जिंदगी को एक रास्ता मिलता है, इंसान अपना मकाम हासिल करता है इसलिए मेरा आपसे कहना है कि बचपन को एक जश्न मानिए, अपनी दिलचस्पी की चीज़ खोजिए, आपका जीवन भी इस फेस्टिवल की तरह एक जश्न बन जाएगा।'
 
इरफ़ान ने एनएसडी के 'थिएटर इन एजुकेशन' कार्यक्रम की सराहना की। उन्होंने कहा कि 'आप बच्चे सौभाग्यशाली हैं जिन्हें थिएटर के ज़रिए हंसते-खेलते अपनी दिलचस्पियों के बारे में जानने-समझने, सीखने का मौका मिल रहा है। हमारे वक्त ऐसा नहीं था, तब हमारा पढ़ाई में मन नहीं लगता था लेकिन ऐसे एजुकेशनल कार्यक्रम नहीं थे कि हम अपनी रुचियों के बारे में जान पाते।'

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इरफ़ान लें एक्टिंग की क्लास
इससे पहले अपने संबोधन में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के डायरेक्टर वामन केंद्रे ने एनएसडी में नाट्यकला की शिक्षा हासिल कर चुके इरफ़ान ख़ान के अभिनय सफ़र की तारीफ की। उम्मीद जताई कि इरफ़ान एनएसडी के स्टूडेंट्स एक टीचर के रूप में पढ़ाने आएंगे। स्टूडेंट्स की क्लास लेंगे। वामन केंद्रे ने कहा कि यह पहला अंतरराष्ट्रीय फेस्टिवल था। नोटबंदी की वजह से शुरू में लग रहा था कि शायद इस आयोजन को उम्मीद के मुताबिक दर्शक नहीं मिलेंगे लेकिन दर्शकों की नाटकों के प्रति रुचि बढ़-चढ़कर दिखी। तकरीबन सभी नाटक हाउसफुल रहे।
 
अब बाल संगम भी बनेगा इंटरनेशनल
वामन केंद्रे ने कहा कि इस बार 'जश्न-ए-बचपन' इंटरनेशनल हुआ है, अगले साल 'बाल संगम' भी इंटरनेशनल हो जाएगा। दोनों ही समारोह एक के बाद एक आयोजित होते हैं। बाल संगम लोककला के क्षेत्र में काम कर रहे बच्चों का समारोह होता है। उन्होंने ये भी कहा कि बच्चों के लिए नाटकों की कमी को देखते हुए नाट्य लेखकों की एक वर्कशॉप की जाएगी और 'थिएटर इन एजुकेशन' यानी 'टाई' कंपनी के नाटकों के आने वाले साल में 2 वॉल्यूम भी प्रकाशित किए जाएंगे।
 
'टाई' कंपनी के विस्तार की ज़रूरत
'टाई' के प्रमुख अब्दुल लतीफ़ खटाना ने बच्चों से कहा कि उत्सव में होने वाले नाटक सिर्फ दर्शकों के लिए नहीं होते हैं, असल में इन नाटकों की तैयारी, मंचन और फिर इन पर चर्चा से सभी कलाकारों को बहुत कुछ सीखने मिलता है। नाटक पेश करने वाले ग्रुप के खेले गए नाटक के पीछे के मकसद का पता चलता है। 
 
उन्होंने कहा कि 'टाई' कंपनी अब तक सिर्फ 12 टीचर्स और 8 तकनीकी सहयोगियों की मदद से सालभर कई बड़े आयोजन करती है। 12 कलाकार ही टीचर, डायरेक्टर, ऑर्गनाइज़र की भूमिका निभाते हैं। एक ही कंपनी के बूते कई कंपनियों के काम हैं। अब वक्त आ गया है कि कंपनी का विस्तार हो। इसमें टीचर्स और आयोजकों की अलग से टीमें बनें ताकि बच्चों के संस्कार का यह काम और बेहतर ढंग से आगे बढ़ सके।

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27 नाटकों का लगा मेला
'जश्न-ए-बचपन' में इस बार देश-विदेश के करीब 550 बाल कलाकारों ने हिस्सा लिया। असम, मणिपुर, त्रिपुरा, प. बंगाल, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल के बच्चों ने 21 नाटकों का मंचन किया, वहीं तुर्की, स्विट्जरलैंड, इसराइल, श्रीलंका, फ्रांस के 6 नाटकों का मंचन हुआ। इनमें से कई नाटकों को जबरदस्त सराहना मिली। गारबेज मॉन्स्टर, चोरी करना गुनाह है, द आर्ट ऑफ फ्युजू ऑर हाऊ टू रन अवे, लांग शॉर्ट ट्विस्टेड, लाफिंग ड्रीम्ज़, जंगल बुक टू, धरा की कहानी, प्ले, काबुलीवाला, किस्से सूझ-बूझ के, जुलाई, रंग-रंगीला गिट्टू गिरकिट, डायनासौर जैसे नाटकों को बच्चों ने पसंद किया। 
 
पारंपरिक तरीकों के बदले नए रंग प्रयोग सामने लाए गए। आज के बच्चों की सोच और आज के हालात के मुताबिक नई कहानियां पेश की गईं। एक खुशनुमा और बेहतर दुनिया के लिए बच्चों को संस्कारित करने का प्रयास किया गया।

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