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'बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे' लिखने वाले फैज अहमद फैज की याद में जावेद अख्तर उतार आए पाकिस्तान की हेकड़ी

हमें फॉलो करें 'बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे' लिखने वाले फैज अहमद फैज की याद में जावेद अख्तर उतार आए पाकिस्तान की हेकड़ी

नवीन जैन

, गुरुवार, 23 फ़रवरी 2023 (16:13 IST)
फिल्मी पटकथा लेखक, गीतकार, शायर और चिंतक जावेद अख्तर ने एक बार फिर सबूत दे दिया कि सबसे पहले वे एक जांबाज हिंदुस्तानी या भारतीय हैं, उसके बाद कुछ और। जब से सोशल मीडिया मुखर हुआ है, जावेद साहब कई बार विवादों में भी आते रहे हैं। कारण शायद तात्कालिक उत्तेजना हुआ करता था, लेकिन जान लें वे उन जानिसार अख़्तर के बेटे हैं, जो घोर वामपंथी होने के बावजूद अटूट देश भक्त थे। कहा जाता रहा है कि बाप-बेटे में लंबे समय तक बोलचाल नहीं रही, लेकिन जब जानिसार दुनिया से रुखसत होने को हुए, तो उनकी मिजाज पुरसी के लिए आए जावेद साहब को उन्होंने एक पुर्जे पर लिख कर दिया कि तुम हमें हरदम याद करोगे, लेकिन हमारे मर जाने के बाद। देखिए, पिता का कहा सही निकला। जावेद अख़्तर पाकिस्तान के लाहौर में जाकर उस देश के मुंह पर उसे लताड़ आए कि भारत में हुए 26/11 के हमले के आरोपी आपके देश में आज भी खुले घूम रहे हैं। उन्होंने इशारों-इशारों में मंतव्य भी स्पष्ट कर दिया कि उक्त हमलावर इजिप्ट (मिस्र) या नार्वे से नहीं आए थे। आगे उन्होंने कहा कि जब भारत 2008 के आतंकी हमले की बात करता है तो पाकिस्तान के लोग अपमानित महसूस नहीं किया करें। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में मेंहदी अली, नुसरत फतेह अली जैसे कलाकरों का तो गर्म जोशी से स्वागत किया जाता है, लेकिन पाकिस्तान में कभी लता मंगेशकर का लाइव शो आयोजित नहीं किया गया।
 
जानना रोचक है कि पाकिस्तान की ओर से अक्सर बयान आते रहे हैं कि भारत के पास ऐसी दो ही चीजें हैं जो पाकिस्तान के पास नहीं है,  एक ताजमहल और दूसरी, लता मंगेशकर। यह भी क्या खूब संयोग है कि लता मंगेशकर पाकिस्तान की मल्लिका-ए-तरनुन्म नूरजहां को अपनी बड़ी बहन मानती थीं। इस संयोग को सलाम कीजिए कि जिन मशहूर अभिनेत्री और समाजसेवी शबाना आजमी से जावेद अख्तर ने दूसरा विवाह किया है, उनके पिता प्रसिद्ध शायर कैफ़ी आजमी की शायरी, देश और मानव प्रेम की अमर धरोहर है। फिल्म 'हकीकत' में उनके लिखे सभी नौ हिट गीत इसका बेमिसाल प्रमाण हैं। जावेद अख़्तर ने फिल्म 'बॉर्डर' और 'वीर जारा' में इसी कायदे के गीत लिखकर अपनी दोतरफा रवायत को आगे बढ़ाया। 
 
जावेद जब कैफ़ी आज़मी साहब के पास जब अपनी शायरी पर चर्चा करने जाते थे, उसी दौरान शबाना आज़मी आजमी से उनकी आंखें चार हुई थी। हालांकि उस समय वे स्क्रिप्ट राइटर हनी ईरानी से शादी शुदा होकर दो बच्चों के पिता भी थे। उनके बेटे फरहान अख्तर ने भी कुछ अच्छी फिल्में दी हैं। बेटी का नाम जोया है। वह भी फिल्म निर्देशित करती हैं। अपनी पहली किताब 'तरकश' में जावेद अख्तर ने लिखा है कि शबाना उस दुनिया की रहने वाली हैं, जिस दुनिया में मैं रहता हूं। हाल में जावेद अख़्तर के जावेद अख़्तर बनने पर एक किताब 'जादूनामा' आई है। ऐसी ही एक और फिल्मी पुस्तक 'मुगल-ए-आजम' कुछ साल पहले आई थी। इसे भी अजीब संयोग कह लीजिए कि उक्त दोनों किताबें एक ही प्रकाशक ने निकाली है।
 
जावेद अख्तर का नाम तब आम लोगों ने जानना शुरू किया, जब उन्होंने सलीम खान, जिनकी पुश्तें अफगानिस्तान से आकर इंदौर में बसी थी, और जिनके बेटे ख्यात फिल्म अभिनेता सलमान खान ने इंदौर में ही जन्म लिया, के साथ मिल कर अमिताभ बच्चन को हिंदी फिल्मों का एंग्री यंग मैन बनाने वाली फिल्म 'जंजीर' की पटकथा लिखी। फिर तो, शोले, डॉन, दीवार, त्रिशूल जैसी हिट फिल्मों की झड़ी लग गई। सलीम खान ने भी एक और शादी अभिनेत्री और नृत्यांगना हेलन से की। सलीम, जावेद अख़्तर की अपेक्षा बहुत लो प्रोफाइल जीवन जीते हैं। साथ ही उनकी दोनों बीवियां साथ ही रहती हैं। उक्त दोनों स्क्रिप्ट राइटर दोस्त जब अलग हुए तो कोई ज्यादा हल्ला-गुल्ला नहीं हुआ। बस, ऐसा ही लगा कि जैसे अब दोनों के रास्ते ही थक कर चूर होने लगे थे। 
 
जावेद अख्तर ने कभी कई दिन भूखे पेट रहकर मुंबई की फुटपाथों पर रातें काटीं। ये बेघर रहने की तकलीफ उन्हें अंदर से इतनी तोड़ती-मरोड़ती रही कि उन्होंने मुंबई में एक शाही बंगला बनवा लिया हैं। वे अपनी पूर्व पत्नी हनी ईरानी से अपने रिश्तों को लेकर कहते रहे हैं कि हम आज भी अच्छे दोस्तों की तरह मिलते हैं, जबकि हनी ईरानी बुझे मन से कहती हैं अच्छे दोस्त तो खैर बाद में अच्छे प्रेमी भी हो सकते हैं, लेकिन पहले प्रेमी और बाद में पति-पत्नी रहे युगल बिछड़कर भविष्य में अच्छे दोस्त कैसे बन सकते हैं?
 
जिस फैज अहमद फैज की याद में जावेद साहब पाकिस्तान की हेकड़ी उसके मुंह पर उतार कर आए, कभी पाकिस्तान की तत्कालीन हुकूमत ने उन्हें (फैज) को आजाद खयाली की शायरी लिए देश निकाला दे दिया था। तब भारत ने भी उन्हें अपने सर आंखों पर बैठाए रखा। वे भी घोर वामपंथी थे । मुंबई में जब वे एक मुशायरे में शिरकत करने आए थे, तब जवान जावेद अख़्तर उनसे मिलने के लिए बहुरुपिया बनकर चले गए थे और कुछ देर साथ में भी रहे। फैज अहमद की लिखी एक पंक्ति कायनात तक यादों के अंधेरे जंगल में बिजली बनकर चमकती रहेगी। वो लाइन आप में से भी कई लोगों के कानों से होकर गुजरी होगी- 'बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे .........।

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