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ना आना इस देस...

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- रूना आशीष
 
30 सितम्बर को प्रदर्शित हुई फिल्म 'एमएस धोनी- द अनटोल्ड स्टोरी' को हमारे देश में खुले दिल से पसंद किया जा रहा है। कोई अभिनय की तारीफ़ कर रहा है तो कोई इसके निर्देशन की। फ़िल्म के बॉक्स ऑफिस आंकड़े भी यही कह रहे हैं। दुनिया के कई देशों में यह फिल्म प्रदर्शित हुई है, लेकिन पाकिस्तान ने इस फ़िल्म को अपने देश में प्रदर्शित नहीं होने दिया है। 
 
अगर सूत्रों की बात माने तो इस फ़िल्म को पाकिस्तान में डिस्ट्रीब्यूटर्स के पास रिलीज़ की फॉर्मेलिटी के लिए भेजा गया था,  लेकिन पाकिस्तान के डिस्ट्रीब्यूटर्स ने इसे सर्टिफ़िकेशन के लिए आगे ही नहीं भेजा क्योंकि उन्हें भी ये अंदेशा हो रहा था कि इस समय जो हालात चल रहे हैं उसकी वजह से शायद सेंसर बोर्ड उन्हें ना कह दे। 
 
फ़िल्म में धोनी की बहन का रोल निभाने वाली भूमिका चावला कहती हैं ”ज़मीन पर बनी लकीरें जब रचना पर हावी होने लगे तो दुख तो होता ही है। अगर कोई अच्छा अभिनेता या अभिनेत्री अच्छे से अपना रोल निभा रहा है तो क्या फ़र्क़ पड़ता है कि वो किस जगह का या किस देश से ताल्लुक रखता है। ऐसे में अगर लोगों को ये लगता है कि उन्हें बैन कर दिया जाए तो ये उनकी सोच है। मेरे लिए इन सब बातों पर ज़्यादा बोलना या सोचना और किसी की जाति या धर्म की बात करना कुछ ऐसा है जिस पर मैं विश्वास ही नहीं करती और ना ही कर सकती हूं। अब बाकी लोगों की सोच के बारे में क्या कहूं, ये उनकी सोच है।”
वैसे पाकिस्तान के लिए भारत की फ़िल्मों को बैन कर देना कोई नई बात नहीं है। पिछले पांच सालों का आंकड़ा कहता है कि पाकिस्तान अब तक 15 फ़िल्में बैन कर चुका है। ज़रा नज़र डालिए इन नामों पर और बैन कर देने के कारणों पर..
 
हाल ही में वरुण धवन और जॉन अब्राहम की फ़िल्म 'ढिशुम' को बैन कर दिया गया औऱ कारण बताया गया कि फ़िल्म में भारत –पाकिस्तान के क्रिकेट मैच के ठीक पहले भारतीय खिलाड़ी का अपहरण हो जाता है। इसके पहले 2016 में ही 'नीरजा' और 'अंबर सरिया' फ़िल्म को बैन किया गया था क्योंकि इन फ़िल्मों को देख कर पाकिस्तान के सेंसर बोर्ड को लगा कि इन दोनों फ़िल्मों में देश की छवि को नकारात्मक तरीके से दिखाया गया है। 
 
नीरजा फ़िल्म के बैन के बारे में जब सोनम को पूछा गया था तो वे बड़ी ही खूबसूरती के साथ कह गईं कि “उन्हें उम्मीद है कि फ़िल्म पाकिस्तान में रिलीज़ हो जाएगी।” हालांकि इस फ़िल्म के बैन हो जाने के दौरान ही अपनी पुरानी फ़िल्म 'ख़ूबसूरत' के अभिनेता फ़वाद ख़ान के साथ सोनम की एक विज्ञापन फ़िल्म का वीडियो भी वायरल हुआ था। क्या पता फ़वाद नाम का पत्ता काम कर जाता हालांकि इस मामले में फिर किसी ने कोई जवाब नहीं दिया और ना ही कोई बात की। 
 
2015 में 4 फ़िल्में, 'कैलेंडर गर्ल्स' अपने विषय की वजह से, 'फैंटम' में 26/11 के ज़िक्र की वजह से, 'बेबी' जो कि अक्षय कुमार की फ़िल्म थी, उसमें भारत के लिए देशभक्ति की वजह से और बंगिस्तान में दो मानवबम की कहानी होने की वजह से बैन कर दी गई थी। 
 
तो क्या पाकिस्तान के सेंसर बोर्ड को समझ में आने लगा था कि भारतीय फ़िल्में, खासतौर पर बॉलीवुड में अब एक-एक कर ऐसी फ़िल्म बनने लग गई हैं जिसमें खुल कर पाकिस्तान को दुश्मन देश बताया जा रहा है। हालांकि फ़िल्मों को थिएटर में जाने से रोका जा सकता हैँ लेकिन इसकी पायरेटेड कॉपी की सीडी को या इंटरनेट पर देखने से रोका नहीं जा सकता था। 
 
ऐसे में 'उड़ान' और 'लुटेरा' जैसी फ़िल्मों के निर्दशक और 'क्वीन' जैसी फ़िल्म के निर्माता तथा लेखक–निर्देशक विक्रमादित्य मोटवाने का कहना है कि “बहुत दुख होता है जब सियासी रंग लोगों की कला पर चढ़ाया जाता है। ये सरासर ग़लत है। ऐसा नहीं होना चाहिए, लेकिन वो एक दूसरा देश है।”
 
वर्ष 2014 में पाकिस्तान ने 'हैदर' पर प्रतिबंध लगा दिया क्योंकि उन्हें लगा कि ये कश्मीर की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म है और कश्मीर उनके लिए बड़ा ही संवेदनशील विषय है। फिर आई बात 'भाग मिल्खा भाग' की और 'रांझणा' की। नाम ना बताने की शर्त पर मिल्खा सिंह की भूमिका करने वाले फ़रहान की एक करीबी, महिला निर्देशक ने बड़े ही सीधे शब्दों में कहा “अब जब देश अपना ही नहीं है तो उसके निर्णय के बारे में मैं क्या कहूं औऱ कह भी क्या सकती हूं।”
 
2012 में पाकिस्तान ने तीन फ़िल्मों पर बैन किया था। खिलाड़ी 786, जिसे नाम की वजह से प्रदर्शित नहीं किया जा रहा था।  बाद में निर्माता ने इस फ़िल्म को खिलाड़ी नाम से रिलीज़ किया था। सलमान के कई फ़ैन होने के बावजूद भी उनकी और कैटरीना की फ़िल्म 'एक था टाइगर' को पाकिस्तान में प्रदर्शित नहीं होना दिया गया, कारण ये था कि फ़िल्म में कैटरीना पाक की ख़ुफिया एजेंट बनी थी। वहीं आईएसआई के ख़िलाफ़ होने के कारण सैफ़ अली ख़ान की फ़िल्म 'एजेंट विनोद' को रिलीज़ नहीं करने दिया गया। 2011 में 'द डर्टी पिक्चर' और 'डेल्ही बैली' को भी बैन कर दिया गया, हालांकि 'द डर्टी पिक्चर' बाद में रिलीज़ कर दी गई थी। 
 
अब सोचने वाली बात ये आती है कि फ़िल्मों को बैन कर देने के बाद क्या फ़िल्मों के व्यवसाय पर कोई असर भी पड़ता है। अब आपको बता दें कि जब भी भारत के तीनों खान में से किसी की फ़िल्म हो या बड़े बजट का कोई भी फ़िल्म हो तो पाकिस्तान के डिस्ट्रीब्यूटर भी हाथों हाथ फ़िल्म को खरीद लेते हैं। कई बार तो ये भी होता है कि फ़िल्म को अनाउंस किया गया और बनने के पहले ही फ़िल्म बिक गई हो और डिस्ट्रीब्यूशन के राईट भी बिक गए हों। अगर एक सरसरी बात कहें तो जो फ़िल्म भारत में हिट हो तो पाकिस्तान में भी हिट हो जाए इसकी संभावना हमेशा रहती है। 
 
इसी बारे में जब हमने प्रदर्शक (एक्ज़ीबिटर) और निर्माता मनोज देसाई से बात की तो उनका कहना था कि “जब देश के ऐसे हालात हो तो मैं क्या किसी देशभक्त फ़िल्म निर्माता को फ़र्क नहीं पड़ता कि पाकिस्तान क्या कर रहा है। वो बेशक ना लगाएं हमारी फ़िल्में अपने सिनेमा हॉल में, बल्कि हम तो ख़ुद भी जानते हैं कि पाकिस्तान कभी भी बॉलीवुड के लिए बड़ी टैरिटरी नहीं रही है। कोई यूएस कैनेडा की बात करे तो हम भी कहें कि वो है बड़ी टैरीटरी। एक तरफ तो वो देश हमारी सीमा पर खड़े जवानों को मारे और हम उनके देश में हमारी फ़िल्में ना दिखाने पर दुखी हों तो, ये तो कोई बात नहीं है। फिर पाकिस्तान में बनने वाली फ़िल्मों को बैन हम हिंदुस्तानी कर ही नहीं सकते क्योंकि ये तो हर कोई जानता है कि उनकी फ़िल्में इस स्तर की कहां हैं जो हमारे देशवासी उन्हें देखें। हम तो हर हाल में अपने देश के साथ खड़े होंगे... वो करते रहें हमें और हमारी फ़िल्मों को बैन।”

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