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कैसे बने रामचंद्र द्विवेदी कवि प्रदीप?

कवि प्रदीप की जयंती

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न्यूजीलैंड से रोहित कुमार 'हैप्पी'
 
कवि प्रदीप का जन्म 6 फरवरी 1915 को मध्यप्रदेश के छोटे से शहर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। आपका वास्तविक नाम रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी था। आपको बचपन से ही हिन्दी कविता लिखने में रुचि थी। प्रदीप ने 1939 में लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक तक की पढ़ाई करने के पश्चात शिक्षक बनने का प्रयत्न किया।  
 
संयोगवश रामचंद्र द्विवेदी (कवि प्रदीप) को एक कवि सम्मेलन में जाने का अवसर मिला, जिसके लिए उन्हें बंबई आना पड़ा। वहाँ पर उनका परिचय बांबे टॉकीज़ में नौकरी करने वाले एक व्यक्ति से हुआ। 
 
वह रामचंद्र द्विवेदी के कविता पाठ से प्रभावित हुआ तो उसने इस बारे में हिमांशु राय को बताया। उसके बाद हिमांशु राय ने उन्हें बुलावा भेजा। वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने 200 रुपए प्रति माह की नौकरी दे दी। कवि प्रदीप ने यह बात स्वयं बीबीसी के एक साक्षात्कार में बताई थी।
 
हिमांशु राय का ही सुझाव था कि रामचंद्र द्विवेदी अपना नाम बदल लें। उन्होंने कहा कि यह रेलगाड़ी जैसा लंबा नाम ठीक नहीं है, तभी से रामचंद्र द्विवेदी ने अपना नाम प्रदीप रख लिया।
 
प्रदीप से 'कवि प्रदीप' बनने की कहानी : यह भी एक रोचक कहानी है। उन दिनों अभिनेता प्रदीप कुमार भी काफी प्रसिद्ध थे। अब फिल्म नगरी में दो प्रदीप हो गए थे एक कवि और दूसरा अभिनेता। दोनों का नाम प्रदीप होने से डाकिया प्राय: डाक देने में गलती कर बैठता था। एक की डाक दूसरे को जा पहुंचती थी। बड़ी दुविधा पैदा हो गई थी। इसी दुविधा को दूर करने के लिए अब प्रदीप अपना नाम 'कवि प्रदीप' लिखने लगे थे। अब चिट्ठियां सही जगह पहुंचें लगी थीं।
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इस बात की पुष्टि करते हुए माधुरी के पूर्व संपादक अरविंद कुमार कहते हैं, 'स्टूडियो में दो प्रदीप थे - एक अभिनेता, दूसरे कवि। उन की डाक आपस में बँट जाती थी। बस, प्रदीप जी के नामसे पहले कवि लगाया जाने लगा।' 1943 में  'क़िस्मत' फिल्म का गीत बहुत प्रसिद्ध हुआ था -
 
‘आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है।
दूर हटो... दूर हटो ऐ दुनियावालोंहिंदोस्तान हमारा है॥'
 
प्रदीप का गीत के इस गीत से भला कौन भारतवासी परिचित न होगा -
 
'ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आँख में भर लो पानी
जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी।'
 
यह देशभक्ति-गीत कवि प्रदीप ने रचा था जो 1962 के चीनी आक्रमण के समय मारे गए भारतीय सैनिकों को समर्पित था। जब 26 जनवरी 1963 को यह गीत स्वर-सम्राज्ञी लता मंगेशकर ने गाया तो वहाँ उपस्थित सभी लोगों की आँखें नम हो गईं। 
 
भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. पंडित जवाहरलाल नेहरू भी स्वयं को रोक न पाए और उनकी आँखे भी भर आई थीं। कवि प्रदीप ने अनेक गीत लिखे जो बच्चों में अत्यंत लोकप्रिय हुए जिनमें निम्नलिखित मुख्य हैं -
 
'दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल।
 साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल॥'
 
'आओ बच्चो! तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदोस्तान की।
 इस मिट्टी से तिलक करो यह धरती है बलिदान की॥'
 
'हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के।
 इस देश को रखना मेरे बच्चो! संभाल के॥'
 
कवि प्रदीप को 1998 में 'दादा साहब फालके' पुरस्कार से अलंकृत किया गया था। अपने गीतों से देशवासियों के दिल पर राज करने वाले कवि प्रदीप का 11 दिसम्बर 1998 को निधन हो गया।

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