इसे कहते हैं सांप के गुजर जाने के बाद लाठी पीटना। सांप को तो कोई नुकसान नहीं होता और लाठी चलाने वाले को भी संतोष मिल जाता है कि उसने कोशिश तो की। इस कहावत पर इस समय फिल्म निर्देशक राजकुमार हिरानी बिलकुल फिट बैठ रहे हैं। उन्होंने हाल ही में यह माना है कि संजय दत्त की बायोपिक 'संजू' में कुछ बदलाव किए थे ताकि लोग संजय दत्त के लिए थोड़ा नर्म दिल हो सकें। जिससे वे दर्शकों के सामने संजय दत्त की इमेज को अच्छा दिखा सकें।
फिल्म पूरी होने के बाद राजकुमार हिरानी ने कुछ लोगों के लिए 'संजू' का शो रखा और प्रतिक्रिया उन्हें अच्छी नहीं मिली। लिहाजा उन्होंने फिल्म में परिवर्तन करते हुए कुछ नए सीन डलवाए जिससे संजय दत्त को 'हीरो' के रूप में पेश किया जा सके।
जब हिरानी ने इस विषय पर फिल्म बनाने की घोषणा की थी तभी लोगों ने हिरानी की नीयत पर सवाल उठाए थे। पहली बात तो यह कि यह हिरानी जैसे निर्देशक के लायक विषय ही नहीं था। हिरानी को बायोपिक बनाना हो तो कई महापुरुष उनके सामने हैं, लेकिन उन्होंने संजय दत्त को चुना, जिन्होंने कई अपराध किए और जेल की हवा भी खाई।
हिरानी की नीयत पर इसलिए शक था क्योंकि वे संजय दत्त के दोस्त हैं। उनके साथ कुछ फिल्में कर चुके हैं। वे संजय दत्त को चाह कर भी सही रूप में पेश नहीं कर पाएंगे, लेकिन फिल्म के रिलीज होने के पहले हिरानी ने बड़े-बड़े दावे किए कि यह फिल्म उन्होंने संजय दत्त की छवि को उजली करने के लिए नहीं बनाई है। वे तो जस का तस प्रस्तुत कर रहे हैं।
फिल्म देखने के बाद कई लोगों को महसूस हुआ कि संजय के दामन पर लगे दागों को धोने के लिए यह फिल्म बनाई गई है और हिरानी जैसे निर्देशक ने भी समझौते किए हैं। आखिरकार यह बात सच साबित हुई क्योंकि हिरानी ने भी यह बात स्वीकार ली है।
राजकुमार हिरानी ने अब यह बात की है जब फिल्म तीन सौ करोड़ रुपये से ज्यादा का कलेक्शन कर चुकी है। खुद वे ग्लानि से भर गए होंगे और अपने आपको मासूम साबित करने लिए उन्होंने यह कहा हो।
लेकिन अब इस बात का कोई खास मतलब नहीं निकलता। वक्त पर कहते तो बात थी। तब कुछ और बोला था। अब सच उगल रहे हैं, लेकिन जिन्होंने हिरानी पर भरोसा का कर सिनेमा का टिकट ले लिया उनका क्या?