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चला चली की बेला में

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अनहद

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याद रखना तू बुलंदी पे पहुँचकर आतिश/ ये जो ज़ीने हैं, उतरने के लिए होते हैं। खलील आतिश का ये शेर गोविंदा पर मौजूँ है, जिनकी फिल्म "चल चला चल" भी नाकाम रही। दुःखद नाकामी नहीं है, गोविंदा का नाकामी को कबूल न करना है। एक दौर था जब गोविंदा और डेविड धवन ने सुपरहिट फिल्में रचीं। गोविंदा अपनी तरह की कॉमेडी लेकर आए थे। कुछ बरस यह दौर चला और अब थम गया है। उस ज़माने की उनकी फिल्में आज भी जब टीवी पर आती हैं, तो उन्हें देखना मनोरंजक होता है। उनकी उस दौर की फिल्मों की खासियत यह है कि उन्हें शुरू से देखना ज़रूरी नहीं है। आप उन्हें कहीं से भी देख सकते हैं और कहीं भी छोड़कर अपने काम से लग सकते हैं। कहानी का कोई लफड़ा नहीं।

दुखद यह है कि गोविंदा अपने करियर के लिए इधर-उधर याचना करते-फिरते हैं। पार्टनर के लिए उन्होंने सलमान खान के हाथ जोड़े। एक कार्यक्रम में उन्होंने सलमान का एहसान भी माना था और शुक्रिया अदा करते हुए कहा था कि सलमान और डेविड धवन ने मुझे उबार लिया। शुक्रगुज़ार होना अच्छी बात है, पर दीन होना बुरी। गोविंदा फिल्मों के लिए दीन भी हो गए। उनकी चाहत यह रही कि वे हिट हीरो के साथ काम करके फिर हिट हो जाएँ। सुनते हैं "भागम भाग" में अक्षय के साथ काम करने के लिए उन्होंने बहुत भागम-भाग की थी। अब वे राजपाल यादव के साथ आए हैं। एक ज़माने में उनके साथी कलाकार कादर खान और शक्ति कपूर होते थे। ज़ाहिर है प्रथम वरीयता गोविंदा की होती थी और ये लोग सहायक। जब गोविंदा का करियर डूबने लगा था तो उन्होंने नई लड़कियों के साथ फिल्में करके कामयाबी पाने की कोशिश की। उनकी कुछ फिल्में रानी मुखर्जी के साथ हैं, एक प्रीति जिंटा के साथ और एक ऐश्वर्या राय के साथ भी है। डूबते और भी हैं पर यूँ हरेक तिनके को नहीं पकड़ते। वो क्या शेर है किसी का- जो डूबना है तो इतने सुकून से डूबो/कि आस-पास की लहरों को भी पता न लगे। डूबने से बचने के लिए गोविंदा ने पहले चर्चित अभिनेत्रियों का सहारा लिया, फिर हिट हीरो का और अब हिट कॉमेडियन का।

तो विरार के इस लड़के को, जो अब पकी उम्र का आदमी बन चुका है, वक्त का फैसला रास नहीं आ रहा। ये पकी उम्र का आदमी सांसद भी बन चुका है। बात आर्थिक तंगी की नहीं है। विरार की खोली से उठकर अब वो इतना ऊपर तो पहुँच ही चुके हैं कि गिर भी जाएँ, तो वापस विरार नहीं पहुँचेंगे। पर्दे पर उनकी भूमिका के दिन पूरे हुए। उन्हें बहुत प्यार मिला और चाहने वाले अब भी करते हैं। अब उनका वैसा दौर वापस आना बहुत मुश्किल है। गोविंदा हवाओं को मुट्ठियों में पकड़ना चाह रहे हैं, सो भी ऐसी हवा को जिसे गुज़रे भी ज़माना गुज़र चुका है।

(नईदुनिया)


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