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लादेन यानी मुल्ला दो प्याजा का लतीफा

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दीपक असीम

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पाकिस्तान में भारतीय सिनेमा देखने पर प्रतिबंध था, मगर कौन मानता था? खुलेआम भारतीय फिल्मों की पायरेटेड सीडियाँ बिका करती थीं और लोग मजे से देखा करते थे। घाटा होता था, तो निर्माता को। कुछ समय पहले प्रतिबंध हटा है तो अब "तेरे बिन लादेन" को पाकिस्तान में प्रतिबंधित किया गया है, मगर सीडी के जरिए फिल्म को घरों-घर जाने से कोई नहीं रोक सकता।

तकनीक ने हर प्रतिबंध की धज्जियाँ उड़ा दी हैं। फिर प्रतिबंध घोषित करना और बात है और उसे लागू करना और। पाकिस्तान जैसे अराजक मुल्क में सरकार कोई ऐलान तो कर सकती है, चंद डिस्ट्रीब्यूटरों को भी रोक सकती है, मगर पायरेटेड सीडियों को नहीं रोक सकती। जब अपने देश में ही अवैध सीडियों का कारोबार नहीं रुकता तो पाकिस्तान में कैसे रुकेगा?

"तेरे बिन लादेन" आठ करोड़ लागत की फिल्म है। चार करोड़ तो सेटेलाइट राइट्स के जरिए प्रदर्शन से पहले ही निर्माता ने वसूल लिए। कुछ धन ऑडियो राइट्स से भी मिला। बंबई में फिल्म अच्छी चल रही है और उम्मीद है कि तीन करोड़ का धंधा तो वहीं से कर लेगी। विदेशों में भी फिल्म जहाँ-जहाँ भी गई है, वहाँ इसने अच्छा व्यवसाय किया है। शहरों में और मल्टीफ्लेक्सों में फिल्म कामयाब है। छोटे सेंटरों पर फिल्म जरूर कमजोर है।

सवाल यह है कि क्या पाकिस्तानी ऐसी फिल्म को छोड़ देंगे, जिसकी पृष्ठभूमि पाकिस्तान है (भले ही शूटिंग पाकिस्तान में न हुई हो) और कहानी लादेन पर आधारित हो? नकारात्मक अर्थ में लादेन पाकिस्तान का इतिहास पुरुष है।

अपने देश में ही इस फिल्म को कई ऐसे लोगों ने देखा है, जो पहले कभी सिनेमा नहीं जाते थे। जिनकी नजर में सिनेमा हराम है। दाढ़ी वाले, पगड़ी वाले...। तो क्या पाकिस्तान में लोग इसे नहीं देख रहे होंगे। क्या पाकिस्तानी लादेन पर हँसना नहीं चाहते होंगे? हँस रहे होंगे।

दोनों मुल्क पास-पास हैं। एक ही जैसा मौसम होता है। श्रीनगर की बर्फबारी का असर मुजफ्फराबाद में होता है और लाहौर तपे, तो लू अमृतसर में चलती है। तो जिस फिल्म के मजे यहाँ लिए जा रहे हैं, वहाँ क्या नहीं लिए जा रहे होंगे?

किसी समझदार ने कहा है कि सबसे बड़ा इंतकाम अपने दुश्मन को हास्यास्पद बना देना है। अभिषेक शर्मा ने ऐन यही किया है। लादेन के आस-पास इतना हास्य रच देना बड़ी कलाकारी है। इस कलाकारी के मजे पड़ोसी न लें, यह असंभव है।

पाकिस्तानी नेताओं और अफसरों ने फिल्म को पाकिस्तान में प्रतिबंधित करके केवल लादेन के प्रति अपने सम्मान और वफादारी को उजागर किया है। आम लोग, आतंकवाद से पीड़ित लोग, हिंसा से नफरत करने वाले लोग तो लादेन पर जमकर हँस रहे हैं।

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