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ससुराल गेंदा फूल...

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अनहद

अनारकली शब्द का तो फिर भी कोई अर्थ होता है, पर मसककली और मटककली जैसे शब्द केवल धुन में शब्द भरने के लिए रचे गए हैं और ये गीतकार गुलज़ार की नकल हैं। गुलज़ार शागिर्द हैं, पाकिस्तान के उस्ताद शायर अहमद नदीम कासमी के। वे जानते हैं कि शायरी में मीटर क्या होता है। अगर वे कहीं मीटर तोड़ते हैं, तो सिर्फ इसलिए कि उस वक्त शब्द उन्हें मीटर से महत्वपूर्ण लगता है।

गुलज़ार की कई नज़्में हैं, जिनमें उन्होंने मीटर तोड़ा है। चाहते तो एक शब्द बदल सकते थे, पर नहीं बदला। मगर प्रसून जोशी और गुलज़ार में फर्क है। प्रसून जोशी के कई गाने मीटर से इसलिए बाहर हैं, क्योंकि प्रसून को मीटर की समझ नहीं है। ये अलग बात है कि प्रसून को लोकप्रियता मिल गई। उनके गाने इसलिए भी हिट हो गए, क्योंकि फिल्मी गीतकार उन्हीं पुराने शब्दों में गीत लिख रहे थे और प्रसून जिस दुनिया से आए उनके लिए वे शब्द अजनबी थे। लिहाजा उनकी कमियाँ ही उनकी खूबियाँ बन गईं।

"दिल्ली 6" में प्रसून का गीत मसककली मटककली हिट हो गया है और इसके हिट होने के पीछे रहमान का संगीत है, सोनम की खूबसूरती है, कोरियोग्राफर की कोरियोग्राफी है। उनका ये गाना कई जगह मीटर से बाहर है। जैसे मनमानी शब्द को गाने में दबा और खेंचकर गाया गया है।

गुलज़ार अगर धुन में भरने के लिए शब्द ध्वनियों का उपयोग करते तो कभी मीटर नहीं छोड़ते। याद कीजिए मकबूल का गीत "झीरमिर झीनी"। धुन में अर्थहीन शब्द भरना सबसे सरल काम है और प्रसून वो भी नहीं कर पाए। इस गीत से याद आते हैं साउथ के डब गीत। एक जगह प्रसून ने लिखा है- घर तेरा सलोनी, बादल की कॉलोनी...। गीतों की डबिंग भी तो ऐसे ही की जाती है।

इसी फिल्म का एक अन्य गीत भी हिट है- ससुराल गेंदा फूल। धुन इतनी सादा है कि आदिवासी लगती है। दरअसल यह लोकगीत ही है, जिसे प्रसून ने थोड़ा-बहुत हेर-फेर और अनुवाद से अपना बना लिया है। रहमान ने धुन को बदला नहीं केवल अपनी शैली दे दी है। ये गीत सुनो तो लगता है बहुत-सी आदिवासी औरतें मिलकर गा रही हैं और उनके पीछे उनके गाने पर जंगल झूम रहा है। बोल मुलाहिजा फरमाइए- "सैंया छेड़ लेवे, ननद चुटकी लेवे ससुराल गेंदा फूल, सास गाली देवे, देवरजी समझा लेवे ससुराल गेंदा फूल.../ छोड़ा बाबुल का अंगना, भावे डेरा पिया का/ सैंया हैं व्यापारी चले हैं परदेस, सुरतिया निहारूँ जियरा भारी होवे.../ बुश्शट पहिने, खाई के बीड़ा पान, पूरे रायपुर से अलग है, सैंयाजी की शान, ससुराल गेंदा फूल...।"

रायपुर का ़जिक्र गीत में आते ही साफ हो जाता है कि गीत छत्तीसगढ़ के आदिवासी अंचल का है। अब कहाँ दिल्ली और कहाँ रायपुर। धुन चोरी करने के मामले में और लोग भी पीछे नहीं हैं, पर नाम केवल अन्नूू मलिक का बदनाम है। "रिंग-रिंग रिंगा" की भी पूरी धुन चोरी की है। बहरहाल, प्रसून जोशी को बधाई कि उनकी एक और फिल्म हिट हो गई। मगर इस फिल्म से उन्हें रचनात्मक संतोष नहीं मिलना चाहिए। दो हिट गीतों में से एक लोकगीत की चोरी है और दूसरा गीत बेबहरा है।

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