धर्मेंद्र जे. नारायण (डीजे नारायण) प्रसिद्ध फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के निदेशक हैं। 1990 की बैच के सिविल सर्विसेज ऑफिसर नारायण थिएटर, फिल्मों और संगीत में भी जाना पहचाना नाम हैं। वे भारत के सबसे अधिक लोकप्रिय पॉप और रॉक बैंड ' द आर्यन्स' के लीड सिंगर हैं और आईआईटी कानपुर के छात्र रह चुके हैं। उन्होंने पांच सुपरहिट एल्बम्स दिए हैं जिनमें एक प्रसिद्ध गाना ' आंखों में तेरा ही चेहरा' शामिल है। वे वर्षों तक फिल्म और संगीत प्रोडक्शन से जुड़े रहे। एक प्रसिद्ध ग्रुप के हिस्से और 800 से अधिक कन्सर्ट्स में भाग लेने वाले नारायण के नाम पर एक आश्चर्यजनक उपलब्धि भी है। यू ट्यूब्स पर उनके म्यूजिक वीडियोज पर हिट्स की संख्या 1 करोड़ से ज्यादा है। वे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन में मास कम्युनिकेशन के एक प्रोफेसर भी रह चुके हैं। भारतीय शस्त्र बलों पर उन्होंने एक पुस्तक 'सोल्जरिंग ऑन' नामक किताब लिखी है और इसे सम्पादित भी किया है। वे पहले लखनऊ यूनिवर्सिटी में मनेटरी इकॉनामिक्स भी पढ़ा चुके हैं और उन्होंने लिंटास के साथ भी काम किया है। वर्ष 2010 में उन्हें संगीत के जरिए समाज में योगदान देने के लिए एनजीओज के भारतीय महासंघ ने कर्मवीर पुरस्कार से सम्मानित किया है। पेश है डीजे से बातचीत के मुख्य अंश :
प्रश्न : आईआईएमसी से फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट का सफर कैसा रहा? उत्तर : आप पहली व्यक्ति हैं जिसने यह प्रश्न मुझसे पूछा। आईआईएमसी संगीत करने के लिए भागने का एक प्रयास था। मैंने सोचा था कि एक ऑफिसर की तुलना में अकादमिक कामों के बीच अन्य काम करने का समय मिल जाएगा। बौद्धिक विचार-विमर्श के लिए मैंने छात्रों का साथ चाहा था। इसके बाद आईआईएमसी से मैं रक्षा मंत्रालय गया जहां मैं एक पत्रिका सैनिक समाचार का सम्पादन करता था और मैंने वर्ल्ड मिलिटरी गेम्स के लिए एक उपाध्यक्ष के तौर पर काम किया। यहां पर एक असाइनमेंट के तहत मैंने एक संकलन लिखा और सम्पादित किया जिसका नाम 'सोल्जरिंग ऑन' है इसे मीडिया में बहुत अच्छी समीक्षा मिली। वहाँ से मैंने भारत सरकार के गीत और ड्रामा विभाग में इसके प्रमुख और निदेशक के तौर पर काम किया। यहां पर मेरा मेगा थिएटर्स के रचनात्मक पक्ष से साक्षात्कार हुआ। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं एफटीआईआई का निदेशक बनूंगा जहां कि मैंने एक समय पर ट्रेनिंग ली थी। गीत और नाटक प्रभाग से मैं मल्टी मीडिया मेगा थिएटर प्रोडक्शन मे क्षेत्र में आया जहां पर जमुनिया, तस्वीर बदलते भारत की बनाने के दौरान करीब 200 लोगों के सम्पर्क में आया। यह बहुत लोकप्रिय हुआ और इसे बहुत सराहा गया।
जमुनिया ढाई घंटे का म्युजिकल है और यह तीन-चार महीनों में बनाया गया था। जबकि इस तरह के प्रोजेक्ट के लिए आमतौर पर एक वर्ष से भी अधिक समय लगता है। बहुत से थिएटर के अनुभवी जानकारों ने मुझे असफल करार दिया था और मेरे वरिष्ठ मुझसे मजाक में कहते थे कि यह मेरी कब्रिस्तान बनने वाला है। मैंने इस चुनौती को स्वीकारा और सहयोगियों के सहयोग से रिकॉर्ड समय में पूरा किया और इसके अलावा गुणवत्ता में भी यह एक उपलब्धि थी। तत्कालीन सूचना-प्रसारण मंत्री श्रीमती अम्बिका सोनी इसे देखकर बहुत खुश हुईं और इसके बाद सिलसिला चल पड़ा। इसके पहले सार्वजनिक प्रदर्शन को यूपीए प्रमुख सोनिया गांधी ने रायबरेली में देखा। अब यह दस विभिन्न भाषाओं में रूपांतरित किया जा चुका है। यह सारे देश में दिखाया जा रहा है और डीडी वन रविवार की सुबह अपने प्राइम टाइम में जमुनिया की कहानी पर एक सीरियल दिखाता है।
'जमुनिया' के बाद मैंने मंत्रालय से कहा कि मुझे सामान्य असाइनमेंट दिया जाए क्योंकि मैं संगीत बनाने के लिए हमेशा ही अपने घर जाना चाहता था। मैं सभी कुछ सामान्य चाहता था। तब मुझे सुझाव दिया गया कि एफटीआईआई में निदेशक के पद के लिए आवेदन करो। मुझे इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। उस समय और भी दावेदार थे। मुझे उसी दिन दूसरे दौर के लिए बुलाया गया। मेरा इंटरव्यू प्रसिद्ध फिल्मकार सईद मिर्जा और श्याम बेनेगल ने लिया। इससे पहले इस संस्थान के निदेशक की कुर्सी पर सिनेमा और कला के ख्यातनाम लोग रहे हैं। जब मैंने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया तो पाया कि यह स्थान अविश्वसनीय तौर पर समृद्ध इतिहास, रंगों और संस्कृति से भरा हुआ है। एफटीआईआई में मैं ऐसी प्रतिभाओं से मिल रहा था जिन्होंने देश में और संभव दुनिया में फिल्मों के संवाद को बदलकर रख दिया था। इस तरह मैं 'महा' सम्मानित हुआ।
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प्रश्न : जब आप इस स्थान पर गए तो आपने कौन सी चीजें सीखीं और कौन सी चीजें नहीं सीखीं? उत्तर : जो चीजें मैंने सीखीं उनमें शामिल था कि कुछ भी असंभव नहीं है। दुनिया के सबसे सुखी लोग वे हैं जोकि अपने सपनों का पीछा करते हैं और सपनों को साकार किया जा सकता है। वास्तव में, जो महान लोग शीर्ष पर हैं उन्होंने बहुत परिश्रम किया है और वे बहुत छोटी शुरुआत से बहुत बड़ी प्रतिभा बने। मैं सोचता था कि फिल्में बनाना एक रॉकेट साइंस है, लेकिन आज मैं अनुभव करता हूं कि संभवत: मैं भी एक फिल्म बनाने की कोशिश कर सकता हूं।
मैं एक पटकथा और विचार पर काम कर रहा हूं। मैं नहीं जानता कि यह मुझे कहां ले जाएगा, लेकिन एफटीआईआई की हवा में कुछ ऐसा है, जो हमेशा ही आपको प्रेरित करता रहता है। मैं एक ऐसे बिंदु पर आ रहा हूं जहां मैं पहले की भांति जहां तक संभव हो सकेगा, ज्यादा से ज्यादा संगीत और गाने रच सकूंगा। पिछले ही कुछ दिनों में करीब 40 गीतों का सृजन किया जा चुका है। मैं कल रात रिकॉर्डिंग करा रहा था और फिल्मों के लिए भविष्य में भी ऐसा करता रहूंगा। एफटीआईआई में आप जिस प्रत्येक व्यक्ति से मिलते हैं वह अपने आप में सफलता की एक बड़ी कहानी है, भावी सफलताओं की बहुत सारी कहानियां। किसी को भी अपने सपनों को साकार करने का साहस होना चाहिए, इनका पीछा करने का साहस होना चाहिए और यह सभी पेशों के लिए समान रूप से उचित बात है।
जो मैं नहीं सीख सका हूं- मैं और भी अधिक धैर्यवान बन गया हूं। मैंने कभी भी 300-400 लोगों के गुटों का सामना नहीं किया है जोकि छोटे बच्चे नहीं हैं और आप उन्हें समझा नहीं सकते कि क्या, कैसे किया जाता है। वे कहते हैं कि यह उनकी जिंदगी है और वे इसे अपने तरीके से करेंगे। मैंने लोगों की बातों को सुनना सीख लिया है। मैं बहुत बड़े लोगों के सामने एक पिता की तरह अनुभव करता हूं और वे जरूरत पड़ने पर मेरे पास आते हैं। यहां के सभी पूर्व छात्र मेरे लिए लगभग मेरे चेयरमैन हैं और वे मेरे सामने अपनी बात पर अड़ सकते हैं क्योंकि वे सोचते हैं कि एफटीआईआई के लिए सही क्या है। इसलिए यहां किसी को भी अत्यधिक रचनात्मक और हमेशा ही जोशीले लोगों को सुनना पड़ता है और जहां तक संभव है, उनकी जरूरतों को संतुष्ट भी करना पड़ता है। अधिकतर समय पर वे सरकारी नियमों और तौर तरीकों की जटिलताओं और विविधताओं को समझने में असमर्थ होते हैं लेकिन तब भी उन्हें परिणाम देना ही पड़ता है। इसलिए यह बहुत ही चुनौतीपूर्ण और सीखने योग्य अनुभव है। मैंने 'उम्मीद करना' सीख लिया है और इसका आनंद ले रहा हूं।
प्रश्न: एफटीआईआई में बहुत ही समृद्ध पूर्व छात्र हैं। उन लोगों के बारे में बताएं जिनसे आप मिले हैं या कोई और अनुभव हो ? उत्तर : मैं मुंबई में एफटीआईआई के पूर्व छात्रों के कार्यक्रम में शामिल होने गया और वहां दिग्गज हस्तियों को देखकर मैं सहम गया। मैं सभी ऐसे प्रोत्साहक लोगों से बात करने लगा और तभी एकाएक किसी ने ताली बजाई और घोषणा कर दी कि हमारे नए निदेशक यहां मौजूद हैं। थोड़ा सा हतप्रभ... मैं वहां गया और मु्झे नहीं पता कि मैंने उन्हें कैसे संबोधित किया और क्या कहूं कि थोड़ा-बहुत हंसी मजाक किया। केवल इतना कह सका कि मैं उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करूंगा। मैं सोचता हूं कि वे भी मेरी हालत को समझ गए और हंसने लगे।
जब आप उस स्थान को छोड़ते हैं तो पूरी तौर पर बदल जाते हैं। वहां पर ऐसे लोग थे जोकि अपनी उम्र के सत्तर-अस्सी के बीच में थे जोकि छात्र थे और मुझे उनका निदेशक कहते हैं। यह एक सुंदर और प्रेरक क्षण था।
प्रश्न : एफटीआईआई में विजडम ट्री के बारे में बताएं? उत्तर : यह मेरे कार्यालय के सामने है। एफटीआईआई के लिए यह पवित्र स्थान है। एक बार जब आपने अपना पहला वर्ष पूरा कर लिया तो आपको वहां बैठने की आजादी मिल जाती है। मैं वहां अपने छात्रों के साथ कई बार बैठा हूं। यहां भारतीय सिनेमा के महान क्षण यहां पर पैदा हुए हैं। इसके बारे में प्यारी बात यह है कि इस वर्ष इसमें आम लग रहे हैं।
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प्रश्न : एफटीआईआई को लेकर और एक व्यक्ति के तौर पर आपके क्या सपने हैं? उत्तर : एफटीआईआई एक पूरी तरह से स्फूर्तिवान संस्थान है जिसमें बहुत अधिक सामर्थ्य है और यह वर्ष दर वर्ष अत्यधिक प्रतिभावान छात्रों को आगे बढ़ा रहा है। इस वर्ष भी हमारे साथ 5 राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता हैं और मैं सोचता हूं कि स्वर्णिम युग बना रहेगा, लेकिन कई मोर्चों पर बहुत किया जाना बाकी है। जब मैं इसे छोड़ूं तो मेरा सपना है कि यह संसद के कानून के जरिए राष्ट्रीय महत्व का एक संस्थान बन चुका होगा। हालांकि अकादमिक पाठ्यक्रमों को बदला जा चुका है और इन्हें समन्वित किया जा चुका है। पिछले कामों को निपटाया जा चुका होगा। मैं उम्मीद करता हूं कि मैं बेहतर कार्य व्यवस्थाएं लागू करना चाहता हूं ताकि जब मैं इसे 2014 में छोड़ूं तो कुछेक मामलों में यह एक बेहतर स्थान बन सके। हालांकि यह पहले से ही एक बहुत बड़ा स्थान है.. मेरे लिए एफटीआईआई के बदलाव संबंधी जिम्मेदारियों को पूरा करना और आर्यन्स के एक हिस्से के तौर पर संगीत बनाने का काम एक स्वाभाविक बात होगी।
इंडियन सिनेमा के सौ साल मई में भारतीय सिनेमा के सौ साल पूरे हो रहे हैं और इसको सेलिब्रेट करने के लिए एफटीआईआई 19 से 24 अप्रैल को स्टुडेंट फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया का आयोजन कर रहा है। इसमें 43 प्रतिष्ठित फिल्म स्कूल्स हिस्सा ले रहे हैं और उनकी 60 फिल्मों का चयन ज्युरी ने किया है। डी.जे. नारायण के मुताबिक उनका उद्देश्य देश भर के युवा सिनेमा फिल्मकारों का उत्साह बढ़ाना है जो अलग-अलग सांस्कृतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि से आए हैं।
एफटीआईआई के बारे में पुणे स्थित फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (भारत सरकार) की एक संस्थान है। 1960 में स्थापित हुई इस संस्थान ने 1961 से काम करना शुरू किया। यहां निर्देशन, संपादन, सिनेमाटोग्राफी, ऑडियोग्राफी, आर्ट डायरेक्शन, एक्टिंग जैसे कई महत्वपूर्ण कोर्सेस होते हैं। फिल्म और टीवी के क्षेत्र में जाने के इच्छुक युवा इन कोर्सेस के जरिये अपने आपको तैयार करते हैं। फिल्म और टीवी की दुनिया को इस संस्थान ने अडूर गोपालाकृष्णन, स्मिता पाटिल, शबाना आजमी, ओम पुरी, नसीरुद्दीन शाह, डैनी, जया बच्चन, राजकुमार हिरानी, मिथुन चक्रवर्ती, शत्रुघ्न सिन्हा जैसे कलाकार दिए हैं।