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मैं सुनता कम, सुनाता ज्यादा हूं : अमीन सयानी

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हमें फॉलो करें अमीन सयानी
, शनिवार, 25 जुलाई 2015 (15:38 IST)
-ब्रजभूषण चतुर्वेदी (बीबीसी)
 
फिल्में मनोरंजन का सर्वश्रेष्ठ साधन मानी जाती हैं व भारतीय फिल्मों की पहचान सिर्फ संगीत से ही विश्वभर में है। मैं 1951 से संगीत व गीतों की दुनिया में देश व विश्व के श्रोताओं को डुबा रहा हूं, लेकिन आज का संगीत व फिल्मों का साज संगीत व शायरी से बहुत दूर हो गया है।
 
सवाल फिल्मों में शायरी व गीतों के बोल संगीत की दुनिया में दर्शकों व श्रोताओं को झुमा देते थे, वे गीत आज भी जरूर हैं। वे मन के मीत थे। लेकिन गत 15-20 वर्षों में फिल्मों का संगीत सिर्फ तन का संगीत रह गया है। बोल पूरी तरह से संगीत का साथ छोड़ चुके हैं। आज संगीतकारों के नाम व गीतों के बोल व उनका अर्थ पूछना पड़ता है। यह बात आवाज के शहंशाह व दर्शकों को 'भाइयों-बहनों' का संबोधन कर मंत्रमुग्ध करने वाले वयोवृद्ध अमीन सयानी ने मुझसे बातचीत करते हुए कही। 
 
अमीन सयानी ने कहा ‍कि नौशाद साहब कहते थे कि आज का संगीत क्या संगीत है जिसमें मन तो लगता नहीं व तन से कसरत करते हुए युवा पीढ़ी संगीत पर नृत्य करती है। शायरी नहीं होने से मिठास खत्म हो गई व मन को शांत करने वाली गुनगुनाहट ही खत्म हो गई।
 
रेडियो सिलोन व विविध भारती तथा विश्व के अनेक रेडियो व टेलीविजन से बिनाका गीतमाला, कोलगेट-सिबाका गीतमाला, एस. कुमार का फिल्मी मुकदमा एवं फिल्मी मुलाकात, बोर्नविटा क्विज प्रतिस्पर्धा, बाजीमार सुप्रीम जोड़ी, मराठा दरबार, संगीत के सितारों की महफिल जैसे लोकप्रिय रेडियो व टेलीविजन कार्यक्रमों में लगातार संगीत का लुत्फ दर्शकों के दिल जीतने वाले अमीन सयानी का कहना है कि संगीत मनुष्य या दर्शकों को हंसा सकता है, रुला सकता है, भयभीत व गमगीन व सोच में डुबा सकता है। 1951-52 से मैंने यह संगीत का सुहाना सफर शुरू किया था व कितने गाने बजाए, कितने श्रोताओं का दिल जीता? गिनना मुश्किल है। 
 
रेडियो सिलोन एवं विविध भारती के साथ संगीत की दुनिया का खजाना खोलने में मो. रफी, मुकेश, लता मंगेशकर, आशा भोंसले, संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, शंकर-जयकिशन, रवि आदि को वे प्रमुख मानते हैं एवं कहते हैं कि इन बड़े संगीतकारों के साथ खय्याम, तलत महमूद, अलका याग्निक आदि को आप कैसे भूल सकते हैं? वे कहते हैं कि मेरे जीवन में संगीत वो मिठाई थी व है जिसे सब मिल-बांटकर खाते हैं व स्वाद चखते हैं। 
 
अमीन सयानी के विचार 1951-52 से लगातार 6 दशकों तक सर्वत्र गूंजते रहे। वे संगीत के कई स्कूलों के प्राचार्य सिद्ध रहे, आवाज की दुनिया में भरपूर सम्मान पाते रहे व तालियां बटोरते रहे। संगीत व आवाज की दुनिया का ऐसा कौन-सा पुरस्कार व पद रहा जिसे अमीन सयानी ने सुशोभित न किया हो। आजकल वे कहते हैं- 'मैं सुनता कम हूं, सुनाता ज्यादा हूं।'
 
चर्चा में उन्होंने संगीत व स्वर की कई बातों का उल्लेख करते हुए बतलाया कि हम इसे अपने मन से जोड़ें तो मिठास दिखाई देगी, तन तो हिलता रहता है, इसका संगीत से क्या लेना-देना? आजकल की फिल्मों में संगीत व्यायाम के समान है, मौलिकता से बहुत दूर है। सिर्फ 15-20 मिनट की बातचीत में अमीन सयानी वह सब कुछ कह गए जिसकी मैं चर्चा करना चाहता था। 
 
अमीन सयानी का जीवन संगीत व आवाजमयी रूप में एक नजर में-
 1951 में रेडियो इंटरप्राइजेस से शुरुआत फिर लंका के ब्रॉडकास्टिंग से जुड़ाव, दो बार कोलम्बो की यात्राएं, 1986 तक सिलोन से नाता, 54,000 रेडियो प्रोग्राम एवं 19,000 स्पॉट आवाज से दिए गए जो लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज, उपभोक्ता वस्तुएं व उनमें प्रचार में निम्न कार्यक्रम दिए- बिनाका गीतमाला (42 वर्षों तक), विविध भारती के साथ वर्षों आवाज, एस. कुमार का फिल्मी मुकदमा, बोर्नविटा क्विज कॉन्टेस्ट, सरहदों के साथी, 7 वर्षों तक बाजीमार सुपरहिट जोड़ी, सितारों की पसंद चमकीले सितारे, संगीत के सितारों की महफिल, अनेक संगीत एपिसोडों का निर्माण, 2009 में आवाज की दुनिया के कारण पद्मश्री सम्मान, आवाज की दुनिया के संदर्भ में फिल्म संसार से जुड़े अनेक सम्मान, पुत्र के साथ देश-विदेश में कई कार्यक्रम व सम्मान प्राप्त किया, 82 वर्ष की आयु तक 66 वर्ष फिल्म संसार के लिए गीतों व संगीत संसार की सेवाएं।

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