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इरादा में गंभीर विषय को थ्रिलर तरीके से दिखाया गया है: अरशद वारसी

हमें फॉलो करें इरादा में गंभीर विषय को थ्रिलर तरीके से दिखाया गया है: अरशद वारसी

रूना आशीष

अरशद वारसी और नसीरुद्दीन की जोड़ी को अगर आप जय-वीरू की जोड़ी ना कहना चाहेंगे तो कोई हर्ज नहीं है। आप खालूजान या इफ्तेखार और बबन की जोड़ी ही कह लीजिए। लेकिन इन दोनों की मजेदार जोड़ी आपका दिल जरूर जीत लेती होगी! अब ये ही नसीर और अरशद एक बार फिर एकसाथ पर्दे पर दिखने वाले हैं। फिल्म का नाम है 'इरादा'। इसी से जुड़ी कुछ बातें जानने की कोशिश की हमारी संवाददाता रूना आशीष ने।
 
एक बार फिर से आपके खालू और आपका विनिंग फॉर्मूला होगा?
बिलकुल नहीं...। अरे, ये तो रिस्की फॉर्मूला हो गया। अब हम दोनों कोई बदमाशी कर रहे होते या झगड़ा कर रहे होते या एक-दूसरे को गालियां सुना रहे होते तो लोगों को भी मजा आता। इसमें वो नहीं है। इसमें तो मैंने और नसीर साहब ने कुछ ऐसे सीन भी किए हैं, जहां हम दोनों एकसाथ शांति से बैठे हैं और शराब पीते-पीते कई बातें कर रहे हैं। कोई भी हलचल नहीं है। तो आप कह सकती हैं कि वही दो एक्टर्स अलग फिल्म में अलग किरदारों के साथ फिर भी एकसाथ। वैसे भी नसीर साहब के साथ काम करने में मजा आता है। मैं उनके साथ को बहुत पसंद करता हूं।


 
आपकी और नसीर साहब के बीच की दोस्ती या कहें केमिस्ट्री के बारे में क्या कहेंगे आप?
मैं बताऊं कि केमिस्ट्री कब बनती है? जब दो ऐसे कारण होते हैं या तो आप बहुत अच्छे अभिनेता हैं और दूसरा आप दोनों के बीच कोई ईगो नहीं आता है। केमिस्ट्री के लिए आप दो भाई हो सकते हैं, आप प्रेमी हो सकते हैं लेकिन अगर आप बुरे एक्टर हैं तो कोई केमिस्ट्री नहीं आएगी, जो कई फिल्मों में हो जाता है। फिर अगर ईगो आ गया तो एक कहेगा मेरी 4 लाइन बढ़ा दो या वो ऐसे खड़ा है तो मैं ऐसे क्यों खड़ा रहूं...। उसका जैकेट अरमानी का है तो मैं ऐसा जैकेट क्यों लूं? बस केमिस्ट्री वहीं खत्म। जब-जब आप अपने काम को लेकर समर्पित रहेंगे तो पर्दे पर दिखेगा, वर्ना प्रतिस्पर्धा दिखेगी।
 
'इश्कियां' की तीसरी कड़ी के लिए कोई बात चल रही है?
नहीं चल रही है...। ये लोग कैसे कर रहे हैं ना...। कोई नहीं बनाता है ये फिल्म फिर से। मुझे कोई राइट्स दे दे तो मैं ही बना देता। कितनी अच्छी फिल्म है यार। मैं मजाक नहीं कर रहा हूं। बबन मेरे लिए सबसे बेहतरीन कैरेक्टर है। 'इश्कियां' मेरे दिल के बहुत ही करीब की फिल्म है। निर्देशक अभिषेक का दिमाग जो काम करता है ना, वो तो बहुत ही बढ़िया है। वो तो बिलकुल ही अलग सोचता है। 'इश्कियां' एक ऐसी फिल्म है, जो हमेशा कड़ियों में बनती रहनी चाहिए। काश कि मेरा ऐसे बोलने पर कुछ तो होता। यहां कोई किसी की नहीं सुनता है।
 
आपकी अगली फिल्म 'इरादा' बहुत ही ग्रे फिल्म है, ऐसी फिल्म देखने वालों की कमी होती है?
हां, ये फिल्म पंजाब की कहानी है। पंजाब बहुत ही खूबसूरत जगह है। इस राज्य का इतना शानदार इतिहास रहा है और आज देखिए कि ये क्या हो गया है? इसके एक शहर भटिंडा में ही शहर के बीचोबीच एक फैक्टरी है। आप सुबह उठकर बाहर जाओ और घूमने जाओ तो सिर्फ राख ही हाथों में आती है। आबोहवा में राख घुल-मिल गई है। हर दूसरे घर में कैंसर का मरीज मिल जाता है। वहां से एक ट्रेन निकलती है जिसका नाम ही 'कैंसर ट्रेन' रख दिया गया है। ट्रेन में कैंसर पेशेंट ही होते हैं और उसमें इश्योरेंस एजेंट भी होते हैं और जिस स्टेज का कैंसर हो, वैसे इंश्योरेंस बनाते हैं फिर वो अपना कट भी लेते हैं। ये रियलिटी है और इस पर एक डॉक्यूमेंट्री भी बनी है। इस फिल्म की बात कहूं तो इस फिल्म को मुझे ये लोग ऐसे सुनाते तो मैं कहता कि प्रोमो देखकर तो कोई दर्शक क्यों, मैं भी नहीं जाऊंगा लेकिन फिल्म में यह विषय ऐसे दिखाया ही नहीं है। फिल्म में आपको एक थ्रिलर मिलेगा। आप सोच रहे होंगे कि किसने खून किया? कौन है दोषी? और फिल्म खत्म होते-होते आपको लगेगा कि असल में हम क्या देख गए। मैं इसे स्मार्ट राइटिंग कहूंगा।
 
आपकी 'मुन्नाभाई' की अगली फ्रेंचाइजी और 'गोलमाल' की भी अगली फ्रेंचाइजी आने वाली है? 
हां, 'गोलमाल' मार्च से शुरू होकर सितंबर तक जाएगी। इतनी लंबी इसलिए शूट रखी है, क्योंकि हम इसमें घर के एक्सटीरियर और इंटीरियर अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग मौसम के हिसाब से शूट कर रहे हैं। इसका फर्स्ट हॉफ इतना बेहतरीन और फनी है कि मैंने कभी किसी फिल्म में ऐसा फर्स्ट हॉफ नहीं देखा है। रही बात 'मुन्नाभाई' की तो राजू (राजू हिरानी) जैसे ही संजय दत्त की बायोपिक खत्म करेंगे तो हम ये फिल्म शुरू करेंगे। ज्यादा कुछ तो नहीं लेकिन मैं इतना बता सकता हूं कि 'मुन्नाभाई' और सर्किट की वो ही मासूम-सी बेवकूफियां और बदमाशियां एक बार फिर देखने को मिलेंगी।

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