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द गाजी अटैक सच्ची घटनाओं पर आधारित है: अतुल कुलकर्णी

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समय ताम्रकर

अतुल कुलकर्णी की गिनती सशक्त अभिनेताओं में होती है। भूमिका छोटी हो या बड़ी, वे अपना असर छोड़ जाते हैं। लगभग बीस साल से अभिनय की दुनिया में सक्रिय हैं और कई भाषाओं में बनी फिल्मों में वे अपनी अदाकारी दिखा चुके हैं। पिछले दिनों रिलीज हुई 'रईस' में उन्होंने जयराज की भूमिका अदा की थी। 17 फरवरी को उनकी फिल्म 'द गाजी अटैक' प्रदर्शित हो रही है जिसमें वे नौसेना अधिकारी देवराज बने हैं। पेश है अतुल से बातचीत के मुख्य अंश:  


 
द गाजी अटैक के बारे में कुछ बताइए। 
यह एक युद्ध फिल्म है। 1971 की घटना है। पाकिस्तानी पनडुब्बी पीएनएस गाजी,  आईएनएस विक्रांत को नष्ट करने के लिए आती है। इस पनडुब्बी को भारतीय पनडुब्बी एस-21 किस तरह नष्ट करती है, ये विस्तार से बताया गया है। यह सच्ची घटनाओं से प्रेरित फिल्म है। 
 
इन दिनों दर्शक सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्म ज्यादा पसंद कर रहे हैं। कुछ वर्ष पहले काल्पनिक फिल्में ज्यादा पसंद की जाती थी। इस बदलाव की क्या वजह है? 
इन दिनों दोनों तरह की फिल्में बन रही है। सच्ची घटनाओं पर आधारित नीरजा, एअरलिफ्ट जैसी फिल्में भी सफल हो रही हैं। मेरा मानना है कि दर्शक बदल गए हैं। वे इस तरह की फिल्में पसंद कर रहे हैं। उनके बदलाव के अनुरूप सिनेमा भी बदल रहा है। इसे मैं बेहतरीन दौर कहूंगा। 
 
द गाजी अटैक में आप क्या किरदार निभा रहे हैं। 
मैं नौसेना का एक्ज़ीक्यूटिव ऑफिसर हूं। वह तब ही अपने काम को अंजाम देता है जब उसे वह मंजूर होता है। मेरे साथ राणा दग्गुबाती और केके मेनन भी हैं। इन दोनों ऑफिसर्स के बीच संतुलन बनाने का काम भी उसने किया है। 
 
फिल्म में पनडुब्बी है। पानी के अंदर के सीन हैं। आपका इनको लेकर क्या अनुभव रहा? 
फिल्म के निर्देशक संकल्प इंजीनियर भी हैं। उनकी इंजीनियरिंग फिल्म मेकिंग के दौरान काम आई। उन्होंने शूटिंग के पहले काफी होमवर्क किया। पनडुब्बी का सेट बनाया गया। पनडुब्बी में इस्तेमाल की जाने वाली चीजें वास्तविक हैं। कैमरे और लाइट्स के लिए जगह बनाई गई। एक एक्टर के रूप में काम थोड़ा कठिन जरूर लगा क्योंकि सेट, कैमरा और लाइटिंग की अपनी सीमाएं थीं, लेकिन संकल्प की तारीफ करूंगा कि उन्होंने इन साधनों में रोचक ड्रामा पेश किया है। पूरी टीम ने काफी सोच समझ कर काम किया है। 

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किसी भी फिल्म को हां कहने के पहले आप किन बातों पर विचार करते हैं?
सबसे अहम होती है कहानी। मैं एक दर्शक की भांति कहानी सुनता हूं। यदि कहानी अच्छी लगे तो फिर दूसरी बातों पर विचार करता हूं, जैसे यह कहानी कहने वाला यानी कि निर्देशक कौन है, निर्माता कौन है। 

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