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'बत्ती गुल मीटर चालू' करने वाले शाहिद कपूर ने भी झेली है बिजली की समस्या

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रूना आशीष

'पहली बार जब मैंने 'बत्ती गुल मीटर चालू' के डायलॉग पढ़े तो मुझे थोड़ा समय लगा कि मैं क्या कर रहा हूं। ये कैसे कहूंगा या कैसा लगेगा? लेकिन 3-4 मिनट बाद मुझे थोड़ा समझ आने लगा कि ये ही तो मेरी फिल्म की खूबसूरती होगी कि मैं जिस जगह पर फिल्म बनी है यानी उत्तराखंड में, वहीं की कुमाऊं भाषा बोलूं। हमने इसमें कई शब्द वहीं के जोड़े हैं, जैसे ठहरा, बल या बाट देखना। हमने कोशिश की है कि हम लोगों को वहां की भाषा का फ्लेवर तो दें ताकि लोगों तक बात हम पहुंचा सकें।'
 
शाहिद कपूर के लिए ये साल कुछ ज्यादा ही धमाकेदार रहा है। पहले तो 'पद्मावत' के रावल रतनसिंह बनकर उन्होंने लोगों की वाहवाही बटोरी फिर दूसरी बार पिता बन वे इठला रहे हैं। उनकी अगली फिल्म 'बत्ती गुल मीटर चालू' के प्रमोशनल इंटरव्यू के दौरान शाहिद ने 'वेबदुनिया' संवाददाता रूना आशीष से बातचीत की।
 
फिल्म में बिजली की समस्या दिखाई गई है। इसका आपने कभी सामना किया है?
बिलकुल। मेरी पैदाइश दिल्ली की है और मैंने अपने बचपन के 10 साल वहीं साकेत में गुजारे हैं। हम वहां एक बड़ी-सी सोसाइटी में रहते थे। दिल्ली की सोसाइटी में 3-4 गार्डन होते थे फिर कई सारी बिल्डिंगें होती थीं। हम बिल्डिंग रहवासियों के बीच में होली की झड़प होती थी। हम साथ में मस्ती करते थे। लाइट नहीं है, तो हम बेचारे पढ़ाई भी नहीं कर पाते थे।
 
और मुंबई में कभी ये परेशानी देखी?
मुंबई में हम काफी सालों तक तो किराए के मकान में रहे हैं। मेरे पास अपना घर या कार नहीं हुआ करते थे, तो मैं ही अपने बिल जमा करने जाया करता था। मैंने बिजली के बिलों को लेकर लड़ाई भी की है। कुछ साल पहले की ही बात है, जब बिजली डिपार्टमेंट का भी प्राइवेटाइजेशन हुआ था, तो बिजली के दाम एकदम बढ़ गए थे। पहले जहां मैं चार-पांच हजार रुपये भरता था, अब तो 25,000 रुपये भी कम लगने लगा है। हमने फिल्म में इन सबकी बात की है। इसके अलावा और भी कई मुद्दे दिखाई देंगे इस फिल्म में आपको।
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पहाड़ी इलाके में शूट करना कैसा रहा?
उत्तराखंड में शूट करना बहुत अच्छा रहा। फिल्मों में हिमाचल के बारे में तो सभी को पता है कि वो कितना खूबसूरत है, फिर कश्मीर भी लोगों ने देखा है। लेकिन उत्तराखंड अभी भी लोगों ने कम देखा-जाना है। वहां ऋषिकेश की गंगा आरती बहुत सुंदर लगी। लेकिन रिवर राफ्टिंग का मजा नहीं ले पाया मैं। वहां तो डायरेक्टर साहब बस काम ही कराते रहते थे।
 
मीरा क्या कहती है फिल्म के बारे में?
इस फिल्म के पीछे मीरा का ही बड़ा हाथ रहा है। उसने सबसे पहले स्क्रिप्ट पढ़ी और कहा कि तुम मुंबई में रहते हो, तुम्हें मालूम नहीं पड़ता लेकिन बिजली की परेशानी बहुत बड़ी है। हालांकि बाद में उस ओरिजिनल स्क्रिप्ट को लेकर कुछ बदलाव हुए फिर बाद में श्री सर आए और उन्हें भी ये फिल्म अच्छी लगी।
 
आपकी बेटी मीशा कैसे रिएक्ट करती है आपको पर्दे पर देखकर?
वो मुझे देखकर खुश होती है लेकिन सिर्फ 40 सेकंड्स के लिए, उसके बाद उसका ध्यान यहां-वहां हो जाता है। मैं कितनी ही कोशिश करता हूं कि उसे बोलूं कि देखो पापा की फिल्म का ट्रेलर है, वो देखती है फिर थोड़ी देर में बोल देती है कि मुझे स्ट्रॉबेरी चाहिए। ये देखकर मुझे रियलिटी चेक मिल जाता है कि जब मेरी बेटी ढाई मिनट का ट्रेलर देखने में रुचि नहीं दिखा रही, तो दर्शक पूरी फिल्म देखें और उससे बंधे रहें, ये बहुत जरूरी है।

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