Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

बच्चों के लिए लिखना मुश्किल: गुलजार

हमें फॉलो करें बच्चों के लिए लिखना मुश्किल: गुलजार

रूना आशीष

गुलजार साहब की लेखनी को देख-सुन और पढ़कर लगता है कि इनकी उमर कम से कम 100 साल की तो रही होगी। लेकिन आपके इन सारे मिथक को तोड़कर गुलजार 12 साल के बच्चों के बीच रमने वाले हैं। 'पिनोकियो' नाम का उनका नया नाटक बच्चों के सामने गर्मी की छुट्टियों में आ रहा है। उनसे 'वेबदुनिया' संवाददाता ने बातचीत की।
 
बच्चों के नाटक बहुत ही कम होते हैं?
बच्चों के नाटक कोई नहीं कर रहा है, कम से कम नया नाटक कोई नहीं कर रहा है। बहुत हुआ तो कोई पुराना ही रिपीट कर लिया या कोई पुराना ही थोड़ा-सा नया करके दिखा दिया। इप्टा में भी कुछ नाटक किए गए लेकिन वे पुराने नाटक थे, जो कभी बलराजजी के जमाने में किए जाते थे।
 
लेकिन साहित्य में हमेशा से बाल साहित्य तो अपनी जगह बनाता रहा है? 
आज के समय में 3 जुबानें हैं, जो काम कर रही हैं खासतौर पर बच्चों के लिए। मलयालम, मराठी और बांग्ला, बाकी किसी और जुबान में बच्चों के लिए कुछ नहीं मिलता है। इन भाषाओं में लोग हैं, जो बच्चों के लिए लिखते हैं और लिखना चाहते हैं। वो काम कर ही रहे हैं। बांग्ला में मानिक दा या सत्यजीत रे की मैं बात कर सकता हूं, जो बच्चों के लिए काम करते रहे हैं। वैसे भी मैं हमेशा कहता हूं कि ये एक लगाव होता है। बच्चों के लिए ये प्यार या तो आप में होता है या आप में नहीं होता है। इसे न मैं किसी को उधार दे सकता हूं न किसी में भर सकता हूं बांग्ला में तो बच्चों के लिए लिखने का एक ट्रेडिशन भी है।
 
आपने कभी झूठ बोला है?
गाने भी तो फिक्शन होते हैं ना! झूठ एक लेखक से अच्छा कौन लिखता है? मुझसे अच्छा कौन झूठ लिख सकता है?
webdunia
बच्चों के लिए लिखना कितना आसान या कितना मुश्किल है?
बच्चों के लिए लिखना बड़ों के लिए लिखने के बनिस्बत बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि बच्चों के लिए लिखते समय अलग-अलग उम्र के बच्चों के लिए लिखना- ये बात भी ध्यान में रखनी पड़ती है, क्योंकि 3 साल के बच्चे के साथ आप तुतलाकर बातें करते हैं। आप क्यों तुतला रहे हैं, क्योंकि आप उस बच्चे से सीखते हैं और फिर उससे उसी भाषा में बात करके बताते हैं। लेकिन वही कहानी जब आप 6 साल के बच्चे को सुना रहे हैं तो उसकी जुबान अलग होगी। उसका तरीका अलग होगा। वे अपने हिसाब से बातें सीख लेंगे।
 
इतना मुश्किल क्यों हो जाता है?
बच्चा बड़ा इमैजिनेटिव और इनोवेटिव होता है। एक छड़ी को वो पांवों के बीच में दबाएगा और कहेगा मैं तो जा रहा हूं अपने घोड़े पर। आपको उसकी सोच को सपोर्ट करना होता है ना कि उसे दब्बू बनाना होगा। वो कागज को लेकर प्लेन उड़ाता है और कहता है कि मैं तो बोइंग में जा रहा हूं। आप तो ये कर ही नहीं सकते हैं। वो तो बच्चा कर लेगा। उसके लिए तो वो कागज का बोइंग एकदम सचमुच का बोइंग होगा। अगर बच्चों की दुनिया को समझना है तो बच्चा बनना होगा।
 
बच्चों के लिए हमेशा 'हैप्पी एंडिंग' वाली ही कहानियां लिखी जाती हैं?
बच्चों के लिए लिखने वाले एक लेखक रहे हैं एंडरसन। उनकी कहानियां हमेशा ट्रैजिक रही हैं। दुखांत वाली, लेकिन वो दुनिया के सबसे बेहतरीन बाल साहित्य में गिनी जाती हैं। मैंने 'गर्ल विथ मैचस्टिक' का हिन्दी रूपांतरण किया है 'सोनाली' नाम से। मैं मानता हूं कि बच्चों में भी ट्रैजेडी बहुत लंबे समय तक रहती है। आप बच्चों को नई बातों से रूबरू कराइए, उन्हें सिखाना मत कीजिए।
 
नाटक के निर्देशक सलीम आरिफ का कहना है कि वॉट्सऐप और प्ले स्टेशन खेलने वाले बच्चे होते हैं। वो एक अलग दुनिया है। लेकिन जब वे थिएटर की दुनिया में आते हैं तो वे अलग तरीके से बात करने लगते हैं। कई बार हमारे एक्टर्स से बीच ड्रामे में बच्चे सवाल पूछ लेते हैं। कभी पूछते हैं नाक ऐसी क्यूं है तुम्हारी, तो कभी कपड़े को ठीक करने को कहते हैं। आपको बच्चों को कुछ न कुछ सोचते रहने के लिए प्रेरित करना पड़ता है। फिर बच्चों को बोलों या संवादों के जरिए भी जोड़ना पड़ता है। जब हमारा एक्टर बच्चों को मित्रों कहेगा तो उन्हें समझ आ जाएगा। हम कभी भी अपने बच्चों को समय से आगे सोचने के लिए क्रेडिट नहीं देते हैं, जो हमें देना चाहिए।
 
इस नाटक का मंचन पृथ्वी थिएटर, मुंबई में किया जाएगा। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

बाहुबली 2 से 'सरकार 3' और 'मेरी प्यारी बिंदू' को खतरा!