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इंदु सरकार... आपातकाल के दौरान पति-पत्नी के संघर्ष की कहानी : मधुर भंडारकर

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रूना आशीष

अर्थपूर्ण फिल्में बनाने वाले मधुर भंडारकर की अब देश के आपातकाल की पृष्ठभूमि पर 'इंदू सरकार' 28 जुलाई को प्रदर्शित होने जा रही है। यह फिल्म रिलीज के पहले ही सुर्खियों में आ चुकी है। कभी इसकी कास्टिंग को लेकर तो कभी इसमें सेंसर के लगाए कट को ले कर। कुछ लोग फिल्म का विरोध भी कर रहे हैं। पेश है मधुर भंडारकर से वेबदुनिया संवाददाता रूना आशीष की बातचीत के मुख्य अंश : 
 
इंदु सरकार के बारे में कुछ बताइए। 
इंदू सरकार की कहानी में 1975 से 1977 का समय दर्शाया गया है जब आपातकाल भी लगा था। कहानी में यह समय पृष्ठभूमि में है। एक लड़की है इंदु जो एक कवियत्री है और हकलाती है। वह शादी करना चाहती है। उसकी मुलाकात एक सरकारी अफसर से होती है जो आपातकाल के दौरान में सरकार के साथ काम कर रहा होता है। वे शादी करते हैं। ये पूरी कहानी उस संघर्ष की है कि आपाताकाल के समय उन पति-पत्नी के बीच क्या होता है। 
 
आपको लगता है कि युवा पीढ़ी इसे देखने में रूचि लेगी? 
बहुत सारे लोगों को आपातकाल के बारे में पता ही नहीं है। इंदु सरकार का ट्रेलर रिलीज होने के बाद मुझे डिजिटल टीम ने कहा कि बहुत सारे युवाओं ने सर्च इंजिन पर जा कर चेक किया कि आखिर ये आपातकाल था क्या? लोगों को बहुत सारी और भी बातें आपातकाल के बारे में जानने की इच्छा हुई। जब आपातकाल लागू हुआ था तब मैं भी बहुत छोटा था। मैंने भी इस बारे में रिसर्च किया और बहुत सी नई बातें मुझे पता चलीं। मैं तो जब भी आज़ादी से जुड़ी फिल्में देखता हूं तो नई बातें मालूम पड़ती हैं। अब 'बाजीराव मस्तानी' में भी तो नई जानकारिया थीं। मैं तो महाराष्ट्र का हूं, फिर भी मुझे कई बातें नहीं मालूम थीं। मैं बस इतना जानता था कि कोई प्रेम कहानी है। मैं तो फिर भी अपनी फिल्म में 42 साल पहले की बात कर रहा हूं। हाल ही में मैंने अक्षय (कुमार) की 'रुस्तम' देखी। यह नानावटी के केस के बारे में है, मुझे अच्छी लगी। 

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क्या आपको 70 का दशक याद है?
मैं तो बहुत छोटा था इसलिए बहुत ज़्यादा तो याद नहीं। कुछ बातें याद हैं जैसे बिनाका गीत माला, बेला के फूल। रेडियो पर अमीन सयानी की आवाज़ या एस कुमार का फिल्मी मुकदमा। मुझे वो समय बहुत अच्छा लगता है। 
 
इस फिल्म के लिए भी आपने आदतन तैयारी की ही होगी। 
मैंने फिल्म शुरू करने से 6 महीने पहले से रिसर्च करना शुरू कर दिया था। मैं, मेरी कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर और नितिन देसाई हम सभी ने बहुत सारा रिसर्च किया। कुछ चीज़ें मैंने हैदराबाद, दिल्ली, कोलकाता और बंगलुरु से मंगाई। चोर बाज़ार से खरीदी। मैंने रेडियो, उस समय का फ्रिज, लैंप, सायकल औऱ फैन भी खरीदा। हमने एनडी स्टूडियो में चांदनी चौक का सेट लगाया। तुर्कमान गेट और कनॉट प्लेस बनाया। बजट में बंधी फिल्म थी तो 40 दिनों की शूटिंग लगातार कर डाली। हमने पुरानी विंटेज गाड़ियां मंगाई जैसे कि इंपाला, मर्सिडीज, फिएट। 1975 से ले कर 1977 तक के सारे अखबार और पत्रिकाएं भी रिप्रिंट कराई। कलाकार तो पुरानी बातों में खो जाते थे। अगर मैं कहूं कि शॉट रेडी है तो अनुपम खेर, कीर्ति या ज़ाकिर पत्रिकाओं में डूबे होते थे। वे जानने की कोशिश में लगे होते थे कि कैसे हुआ ये सब। हमने चंडीगढ़ से एक सायकल रिक्शा भी मंगाई थी, तो लोग बोलते थे कि क्या हम एक बार इसमें बैठ कर देखें फिर शूट कर लेंगे। कई बार तो ऐसा हुआ कि मेरे स्पॉट बाइज़ पुराने वाले फोन से अपने घर का नंबर डायल करते थेस मैं कहता था कि ये कनेक्टेड नहीं है तब भी उन्हें जाने क्या मज़ा आता था। 

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