Sawan posters

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

मुझको बूढ़ा नहीं होने देती क्रिएटिविटी

Advertiesment
हमें फॉलो करें MS Sathyu
-आदिल कुरैशी

फिल्मकार और रंगकर्मी एमएस सथ्यू ने कहा वेबदुनिया से

विभाजन की त्रासदी पर 1973 में बनी सर्वश्रेष्ठ फिल्म ‘गरम हवा’ सहित नौ फीचर फिल्मों, दर्जनों डॉक्यूमेंट्री, कई विज्ञापन फिल्मों तथा ‘दारा शिकोह’ जैसे क्लासिक और बहुचर्चित नाटकों का निर्देशन करने वाले मैसूर श्रीनिवास अर्थात एम.एस. सथ्यू 1 नवंबर को अपना मशहूर नाटक ‘अमृता’ पेश करने इंदौर आ रहे हैं। नाटक ख्यात साहित्यकार अमृता प्रीतम की जिंदगी पर रचा गया है। 84 साल की उम्र में भी सक्रिय व ऊर्जावान बने रहने का राज खोलते हुए कुछ ही दिनों बाद अपनी अगली फिल्म की शुरुआत करने जा रहे सथ्यू कहते हैं आप रचनात्मक काम करते रहते हैं तो आपको उम्र का अहसास नहीं होता और सब कुछ आसान बना रहता है। क्रिएटिविटी आपको बूढ़ा नहीं होने देती।
सथ्यू ने वेबदुनिया के साथ खास टेलीफोनिक बातचीत में बताया ‘अमृता ’सिर्फ अमृता प्रीतम ही नहीं बल्कि ऐसे कई सचमुच के किरदारों के जीवन की भी झलक देता चलता है जिनका जुड़ाव अमृता के जीवन से रहा। इनमें दूसरों के अलावा 40 साल उनके साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहे चित्रकार इमरोज भी प्रमुख रूप से शामिल हैं। सथ्यू कहते हैं उस दौर में यह एक क्रांतिकारी फैसला और हिम्मत का काम था। प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक स्व. विजय आनंद की पत्नी लवलीन इस नाटक में अमृता की भूमिका निभाती हैं। लवलीन खुद कविताएं लिखती हैं और वे अमृता प्रीतम के बेहद करीब थीं।
 
सथ्यू ने कहा समाज के यथार्थ को सामने लाना ही कला की मुख्य जिम्मेदारी है। कला के सामाजिक सरोकार होना चाहिए। समाज के मौजूदा सवाल ही किसी कलाकृति का आधार बनते हैं।
 
सथ्यू ने बताया इससे पहले एक बार कहीं जाते वक्त वे इंदौर में एक रात रुके जरूर हैं मगर इंदौर उन्होंने कभी देखा नहीं है। उन्होंने उम्मीद जताई कि इंदौर के दर्शकों को ‘अमृता’ पसंद आएगा।
 
नाटक कभी मरेगा नहीं नाटक और फिल्मों में ज्यादा क्या अच्छा लगता है के सवाल पर सथ्यू कहते हैं दोनों अपनी बात कहने की दो सशक्त विधाएं हैं। दोनों का ग्रामर अलग-अलग, अप्रोच अलग-अलग है। कैमरे की वजह से काफी सहूलियत हो जाती है मगर रंगमंच एक संस्कार है। फिल्म में पैसों की जरूरत अधिक होती है। वैसे थिएटर भी आजकल महंगा हो गया है। मॉडर्न टेकनीक हमें मनोरंजन के चाहे जितने साधन उपलब्ध करा दे मगर नाटक की विधा कभी मरेगी नहीं।
 
webdunia
आर्ट फिल्म मतलब अदाकार को कम पैसा : 70 के दशक में पैरेलल सिनेमा या आर्ट सिनेमा का जो दौर आया था वैसी फिल्में अब बनने की गुंजाइश नहीं है। इसकी वजह यह है कि बाकी सभी टेक्नोलॉजी और संसाधनों की लागत तो उतनी ही है जितनी कमर्शियल फिल्म बनाने में आती है, आर्ट फिल्म का मतलब सिर्फ यह है कि आप अदाकारों को पैसा कम चुकाएंगे। इसलिए आज के दौर में आर्थिक रूप से इस तरफ की फिल्में बनाना बड़े घाटे का सौदा है। फिर भी लीक से हटकर फिल्में तो बन रही हैं।
 
हॉलीवुड की तरह हमारे यहां भी अब फिल्म के प्रमोशन पर अब खासी रकम खर्च की जा रही है, मार्केटिंग और डिस्ट्रिब्यूशन अलग तरह का कारोबार हो चुका है, इससे फिल्म इंडस्ट्री के टर्नओवर में इजाफा और तेजी तो आई है। 
 
बिग बीः एक्टर से ज्यादा स्टार : कॉलेज के दिनों में खुद हॉकी के खिलाड़ी रह चुके सथ्यू का नए ट्रेंड के साथ सुर मिलाते हुए खेलों पर आधारित फिल्म बनाने का कोई कोई इरादा नहीं है।
 
ग्रेट ओल्ड थिएटरमैन के नाम से मशहूर सथ्यूजी की नजर में नसीरुद्दीन शाह, ओमपुरी, अनुपम खेर, नवाजुद्दीन सिद्दीकी बेहतर एक्टर हैं। स्टार ऑफ दि मिलेनियम अमिताभ बच्चन के बारे में उनका कहना है वे एक एक्टर से ज्यादा स्टार हैं, मगर उनकी मास अपील से इन्कार नहीं किया जा सकता। 
 
शबाना और स्मिता की कोई जोड़ नहीं : मौजूदा फिल्म अभिनेत्रियों में श्रद्धा कपूर ने उन्हें प्रभावित किया। वो करीना कपूर और कैटरीना कैफ के ग्लैमर को स्वीकार तो करते हैं मगर साथ ही इसे कमर्शियल कहते हैं। उनका कहना है शबाना और स्मिता की कोई जोड़ नहीं हैं।
 
हर शादी पंजाबी शादी : व्यावसायिक सिनेमा के लिए समस्याएं भी बिकाऊ माल हैं। गरीबी से लेकर विधवा के आंसू तक हर सेंटीमेंट को वे एक्सप्लाइट करते हैं। कहानी भारत की होती है, शूटिंग विदेश में होती है। हर शादी पंजाबी रस्मो-रिवाज के मुताबिक दिखाई जाती है। फिल्म देखना भी एक कला है, जिसके लिए आंखें होनी चाहिए। इसकी ट्रेनिंग शुरू से ही लोगों को दी जानी चाहिए।
 
webdunia
इंदिरा गांधी ने देखी, तब रिलीज हो सकी ‘गरम हवा’ : ‘गरम हवा’ इस्मत चुगताई की एक अप्रकाशित कहानी पर आधारित है। एक पात्र राजिंदर सिंह बेदी की कहानी से भी लिया गया था। पूरी फिल्म आगरा और फतेहपुर सीकरी में शूट की गई। कम से कम सोलह ऐसे सीन हैं जिनमें एक भी कट नहीं है। सब एक्टर नाटक के मंजे हुए कलाकार थे।
 
फिल्म ‘लगान’ के पास ऑस्कर में नामांकन का वही सर्टिफिकेट है जो ‘गरम हवा’ को उससे 30-35 साल पहले मिला था। यह फिल्म कान फेस्टिवल में भी दिखाई गई। मैं पैसे की तंगी के चलते वहां नहीं जा सका। पूरी फिल्म बनाने में तकरीबन नौ लाख रुपए का खर्च आया था। मुझ पर काफी कर्ज हो गया था जिससे उबरने में कई साल लगे। सब कुछ होने के बाद सेंसर ने फिल्म को इसलिए रिलीज करने के लिए सर्टिफिकेट नहीं दिया कि इससे सांप्रदायिक तनाव फैल सकता है। एक साल की कोशिशों के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब खुद पूरी फिल्म देखी तो उन्होंने इसे रिलीज करने का आदेश दिया, मगर उप्र छोड़कर, जहां चुनाव होने वाले थे। फिल्म 1974 में सबसे पहले बैंगलोर में रिलीज हुई। यह बलराज साहनी की आखिरी फिल्म थी। इसे वह देख नहीं सके थे।
 
नाटकः अमृताः ए सबलाइम लव स्टोरी
प्रस्तुतिः इम्प्रेसैरियो एशिया, नई दिल्ली
सहयोगः नईदुनिया, कला अभिव्यक्ति, इंदौर
दिनांकः 1 नवंबर, 2014
समयः शाम 7.30 बजे
स्थानः डीएवीवी ऑडिटोरियम
प्रवेशः निमंत्रण पत्र द्वारा
 
जन्मपत्रिका
पैदाइशः 6 जुलाई, 1930
मैसूर, मैसूर राज्य
शुरुआती पढ़ाईः मैसूर
कॉलेजः बैंगलोर
1952 में बी.एस-सी की पढ़ाई अधूरी छोड़कर फिल्मी दुनिया में हाथ आजमाने मुंबई पहुंचे।

सथ्यू का सत्य
 
काम जो किए : एनिमेशन आर्टिस्ट, असिस्टेंट डायरेक्टर (चेतन आनंद), निर्देशन (फिल्म और नाटक), मेकअप आर्टिस्ट, आर्ट डायरेक्टर, प्ले डिजाइनर, लाइट डिजाइनर, लिरिक्स एक्सपर्ट, इप्टा के प्रमुख संरक्षक, स्क्रिप्ट राइटर, निर्माता,  वगैरह- वगैरह।

प्रमुख अवार्ड्स
1966 – फिल्म फेयर बेस्ट आर्ट डायरेक्टर (फिल्म हकीकत)
1974 – केन फिल्म समारोह (नॉमिनेशन) गोल्ड पॉम
1974 – गरम हवा, राष्ट्रीय एकता पर सर्वश्रेष्ठ फिल्म का नरगिस दत्त राष्ट्रीय पुरस्कार
1975 – पद्मश्री
1984 – श्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार (फिल्मः सूखा)
1984 – बेस्ट फिल्म फिल्म फेयर क्रिटिक्स अवार्ड (फिल्मः सूखा)
1994 – संगीत नाटक अकादमी अवार्ड
नाटक : दारा शिकोह, मुद्राराक्षस, आखिरी शमा, रोशोमन, बकरी, गिरिजा के सपने, मोटेराम का सत्याग्रह, अमृता
फीचर फिल्म : एक था छोटू-एक था मोटू, गरम हवा, चिथेगू चिंथे, कन्नेश्वरा रामा, बाढ़, सूखा, ग़ालिब, कोट्टा, इज्जोडू।
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi