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'ओएमजी 2' को 'ए सर्टिफिकेट' मिलने पर पंकज त्रिपाठी बोले- हर व्यक्ति में खुद का सेंसर बोर्ड भी होता है | Exclusive Interview

हमें फॉलो करें 'ओएमजी 2' को 'ए सर्टिफिकेट' मिलने पर पंकज त्रिपाठी बोले- हर व्यक्ति में खुद का सेंसर बोर्ड भी होता है | Exclusive Interview

रूना आशीष

, गुरुवार, 10 अगस्त 2023 (13:15 IST)
Pankaj Tripathi On OMG 2: हमारी फिल्म 'ओ माय गॉड 2' को सेंसर बोर्ड की तरफ से 'ए' सर्टिफिकेट मिला है। इस बात का मलाल जरूर है कि इसे 'ए सर्टिफिकेट' मिले यह सोचकर फिल्म नहीं बनाई थी। यह फिल्म बहुत मनोरंजक तरीके से अपनी बात लोगों के सामने लाने की कोशिश थी। लेखक अमित राय ने भी वही काम किया है लेकिन ठीक है। हालांकि यह फिल्म 13 या 14 साल के बच्चों को दिखाई जाती तो अच्छा रहता ठीक कोई बात नहीं।
 
यह कहना है पंकज त्रिपाठी का, जो कि 'ओएमजी 2' में मुख्य किरदार में नजर आने वाले हैं। वह एक ऐसे शख्स बने हैं जो अपने बच्चे की परवरिश और सेक्स एजुकेशन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने राय मुखर होकर कोर्ट के सामने रखते हैं और कोर्टरूम ड्रामा को आगे बढ़ाते हैं। 
 
फिल्म के बारे में बात करते हुए पंकज आगे बताते हैं कि सेंसर बोर्ड अपना काम कर रहा है लेकिन उसके भी पहले हर व्यक्ति में खुद का सेंसर बोर्ड भी होता है। खुद का एक मन होता है, मस्तिष्क होता जो कहता है कि यह चीज ठीक है या ठीक नहीं है। मिसाल के तौर पर मेरा एक सीन था जहां पर मुझे एक डायलॉग बोलना था और मुझे बताया गया कि उपनिषद में यह बात कही गई है। फिर मुझे लगा क्यों ना ऐसा किया जाए कि इस बात के तथ्य को परख लिया जाए। 
 
मैंने अमित राय जी को कहा तो लेखक है कि क्या उपनिषद से निकाली हुई कोई बात है। उन्होंने कहा हां, मैंने उनसे कहा, मैं पढ़ना चाहूंगा। अमित जी ने मुझे स्क्रीनशॉट भेज दिया, लेकिन मैंने कहा नहीं मुझे वह पढ़ना है, किताब भेज दें। उन्होंने मुझे यह किताब भेजी और मैंने पढ़ी और खुद उस लाइन को पढ़ा और संतुष्ट हुआ तब जाकर अगले दिन मैंने उस शार्ट को किया। हो सकता है कि फिल्म में उपनिषद द्वारा कोई बात कही हो। इस बात का जिक्र ना हो फिल्म में लेकिन हमारे सब के अंदर सेंसर बोर्ड मौजूद होता है।
 
फिल्म में आपके साथ साथ अक्षय है। तो क्या आपके पैरेलल रो है या आप मुख्य किरदार में है
नहीं नहीं, ऐसा नहीं है। मुख्य किरदार तो अभी भी अक्षय का ही है। मैं तो बहुत धन्यवाद कहना चाहूंगा कि अक्षय जी जैसे कलाकार ने मुझे चुना। दरअसल हुआ यह था कि अक्षय जी ने मुझे जूम कॉल पर इस फिल्म की कहानी सुनाई। और फिर कहा कि मुझे लगता है पंकज जी आप इस रोल के लिए सही व्यक्ति हैं। मैंने उनसे पूछा आपने ये कहानी कब पढ़ ली और कब समझ ली। 
 
तब उन्होंने कहा कि कोविड-19 एक बार मैं 14 दिनों के लिए क्वारेंटाइन था उस समय मैंने यह। कहानी स्क्रिप्ट पढ़ी और बार-बार पढ़ी और यह सब पढ़ने के बाद मुझे ऐसा लगा कि पंकज जी आप इस रोल के लिए फिट बैठेंगे। तो फिर मुझे भी अच्छा लगा कि जो व्यक्ति इस पद का अभिनेता हो जो सामाजिक विषयों पर फिल्म करता आ रहा है जैसे पैडमैन हो या टॉयलेट हो। अगर उसे लगता है कि मैं उसकी किसी फिल्म के लिए सही किरदार हूं तो फिर यह तो मेरे लिए गर्व की बात हुई।
 
आप कितने धार्मिक हैं और आपके इष्ट देव कौन हैं। 
मैं धर्म के लिए यह सोचता हूं कि मैं उन सारी बातों को जो पढ़ता हूं उसे अपने आचरण में लेकर आ जाऊं। मैं झूठ ना बोलूं, मैं किसी को दुख ना पहुंचाऊं। मैं ऐसा कोई काम नहीं ना करूं जिससे कि कोई परेशान हो जाए। जब आप धर्म में आचरण को जोड़ लेते हैं तो मेरे लिए वही धर्म हो जाता है और जहां तक बात रही इष्टदेव की तो हमारे यहां ऐसा कुछ नहीं है। मैं तो खुद कर्मकांडी परिवार से रहा हूं। हमारे यहां सभी देवताओं की पूजा होती थी वैसे ही सारे त्यौहार मनाए जाते थे। हम लोग भी वैसे ही त्यौहार मनाते रहे हैं। सभी देवता मेरे लिए बहुत पूजनीय है।
 
कई बार सोशल मीडिया पर या ट्विटर पर भगवानों का उपहास भी उड़ाया उड़ाया गया है। कभी उन्हें धूम्रपान करते दिखाया गया कभी डांस करते दिखाए। क्या यह बात आपको कहां तक उपयुक्त लगती है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होती है। आपके मन में जो भी भाव उठते हैं, आप उसे अभिव्यक्त कर सके। यह स्वतंत्रता हमें दी गई है, लेकिन उसमें भी आप को यह सोचना चाहिए कि कहां तक इस स्वतंत्रता का उपयोग करना है। अब यह कहे कि हम हेलमेट नहीं लगाएंगे और हम सड़क पर गाड़ी भी चलाएंगे। और अगर कभी पुलिस पकड़ ले तो बोल देंगे कि हम 1947 में आजाद हो चुके हैं। आजाद देश के निवासी हैं। 
 
हमारी इच्छा है तो हेलमेट लगाएंगे और नहीं अच्छा है तो हम नहीं लगाएंगे तो वह ठीक नहीं है। कुछ नियम कायदे कानून बनाए हैं, इसलिए जाते हैं ताकि उसका पालन किया जा सके। तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हो, लेकिन खुद पहले सोच लेना चाहिए कि यह स्वतंत्रता हम कहां तक उपयोग में ला सकते हैं। 
 
आपके जीवन में शिव का क्या महत्व है। 
शिव जी का मेरे जीवन में महत्व इतना है कि मैं उन्हें पूजता हूं और एक ही बार मैंने उपवास रखा था शिवजी के लिए। लेकिन बचपन में हम लोग सावन के समय जो मेले लगते थे तो सभी लोग मिलकर जाया करते थे। सावन के इस समय में बारिश हो चुकी होती है, धरती हरी भरी हो चुकी होती है, लहलहा रही होती है। और सावन भादो के बाद में ही मुख्य त्योहार हमारे घर में शुरू होते हैं, धान की रोपाई हो चुकी होती है। सब जगह सुंदरता होती है, प्रकृति मुस्कुरा रही होती है और ऐसे में शिवजी और प्रकृति मेरे लिए यह एक ही हो जाता है।

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