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प्रियंका अभी भी उस दु:ख से बाहर नहीं आ पाईं

हमें फॉलो करें प्रियंका अभी भी उस दु:ख से बाहर नहीं आ पाईं

रूना आशीष

प्रियंका चोपड़ा वैसे तो देश के बाहर ही रहती हैं और अपने काम में लगी हैं, लेकिन देश से जुड़े रखने की जिम्मेदारी उन्होंने अपनी मां को दे दी है। मां डॉ. मधु चोपड़ा ने पहले एक भोजपुरी फिल्म बनाई, फिर एक मराठी फिल्म और अब एक पंजाबी फिल्म बनाई है 'सरवन'। ये एक पथभ्रष्ट या अपनी राह खो चुके युवा की कहानी है, जो अपने बुरे का नतीजा बुरे के रूप में ही पाता है। फिल्म की निर्माता तथा प्रियंका की मां मधु से बात कर रही हैं हमारी संवादददाता रूना आशीष।


 
आपकी फिल्म लोहड़ी पर लोगों के सामने आ रही है। शायद ये एक सही समय था अपनी फिल्म को रिलीज करने का?
पंजाब में बहुत ही शुभ दिन माना जाता है लोहड़ी। बहुत धूमधाम से मनाते हैं। पंजाबी मेरे ससुराल की भाषा है। प्रियंका के पिता पंजाब से थे। उनकी वजह से हमारा रहन-सहन सब पंजाबी में हुआ है और ये एक संपन्न पंजाबियत देखी है मैंने शादी के बाद। अब तो पंजाबी कहानियों, पंजाबी संस्कृति या पंजाबी गीतों की मैं बहुत जानकार हो गई हूं। हां, ये एक मस्ती- मजाक वाली फिल्म नहीं है, थोड़ी सीरियस है। अब तो वासु भगनानीजी और उनकी बेटी पूजा भगवानी भी फिल्म से जुड़ गए हैं तो उम्मीदें भी बढ़ गई हैं। 13 तारीख को हम लोगों के लिए फिल्म ला रहे हैं। रूना आप तो जरूर देखें, इतनी अच्छी हिन्दी बोलती हैं आप।
 
आपकी एक फिल्म भोजपुरी में है, तो दूसरी पंजाबी में व एक मराठी में, तो क्या आप हर तरीके और हर भाषा की फिल्म बनाना चाहती हैं?
हमारे पास कई स्क्रिप्ट्स हैं। कोई रीजन सोचकर हमने फिल्म बनाना शुरू नहीं किया है। अब मैं भोजपुरी जानती हूं और उस इलाके की ही हूं तो मेरी ऐसी जिद थी कि हमारी पहली फिल्म तो भोजपुरी ही हो, लेकिन कहानियां ऐसी आती गईं कि हम लोग उसी भाषा में फिल्म बनाते गए। अब हमारे पास एक सिक्किमी कहानी रखी है और इस साल हम उस फिल्म पर काम करने वाले हैं। आप बताइए, कोई जानता है सिक्किमी फिल्म को? अब स्टोरी अच्छी मिल गई है। अभी तो बहुत जल्दबाजी होगी कुछ भी कहने में लेकिन इतना कह सकती हूं कि वहीं के कुछ कलाकार काम करेंगे और हिन्दी फिल्म के भी कलाकार होंगे।
 
पिछला साल अगर कहें कि प्रियंका के नाम रहा। अब आप ही बताइए एक मां को अपनी बेटी की कौन-कौन-सी उपलब्धियां याद हैं?
मुझे याद है उसकी वो तस्वीर, जो 'टाइम' मैगजीन पर आई। मुझे तो बहुत अच्छा लगा। उसने कहा था फोन पर कि मेरा नाम जो टॉप 100 लोग हैं उसके लिए सिलेक्ट किया गया है। मैंने कहा, बेटा, इतना ही बहुत है। आप इन लोगों में शामिल हो गए, वो ही बहुत बड़ी बात हो गई। मुझे तो खुद ही नहीं पता था। वो तो प्रियंका की एजेंसी ने जब फोटो भेजा तब मालूम पड़ा कि वो कवर पेज पर हैं। मैं आपको बयां नहीं कर सकती उस समय मेरी जो खुशी थी। 'टाइम' पर आ जाना एक बड़ी बात है। एक अकेली लड़की, जो इतनी मेहनत करके अपने दम पर 'टाइम' के कवर पेज पर पहुंची। बहुत लड़कियां हैं, जो मेहनत करती हैं लेकिन प्रियंका वहां पहुंच गई। सिर्फ मैं ही क्यों, हर कोई जो प्रियंका को जानता है, जो अच्छे से जानता हो या नहीं भी अच्छे से जानता हो, उसे गर्व तो हुआ होगा। इसके बाद उसे पद्मश्री मिला तो सब बहुत अच्छा लगा कि इतने 15 साल जो उसने मेहनत की, अच्छी-अच्छी फिल्में कीं उसके लिए मेहनत सफल हो गई। फिर नेशनल अवॉर्ड मिला। अब वो 'पद्मश्री प्रियंका चोपड़ा' कहला रही हैं। अब हॉलीवुड में भी तो वो जाना-माना नाम है। अब तो कोई जगह नहीं बची है कि वह कहीं दिख ना रही हो। अब तो शायद ऑस्कर जीतकर ही लौटे। सब कुछ तो मिल गया, लेकिन फिर भी कहूंगी कि वह पहचान बना रही है, कोई उपलब्धि नहीं है। परफॉर्मेंस के लिए पीपुल्स चॉइस अवॉर्ड मिला। बहुत बड़ी बात है। पहला ही तो साल था। इस बार तो नॉमिनेट भी हो गई है। मैं उसके लिए कोई भी टारगेट नहीं रखती। उसके हर छोटे-बड़े अचीवमेंट मेरे लिए बड़े ही हैं, क्योंकि मैं उसकी मेहनत देखती हूं, उसकी लगन देखती हूं। उसकी तरह सारी लड़किया हो जाएं तो कोई लड़कियों को पीछे नहीं रख सकता है।
 
चलिए, आपको कभी कोई इस देश की सबसे बड़ी शिक्षिका बना दे तो आप इस देश की महिलाओं को क्या-क्या सिखाना चाहेंगी? आपने तो प्रियंका को भी चलना सिखाया है उसी नाते बताइए?
मैं कुछ बातें प्रियंका को बताती हूं, वही आपको भी और बाकी की महिलाओं से शेयर करती हूं। पहला तो है ज्ञान, किसी भी तरह का ज्ञान जहां से मिल सके ले लो। वो काम ही आता है चाहे नाचना हो, गाना हो, किताब पढ़ना हो, कराते भी सीखो। ये एक और आयाम जोड़ेगा तुम्हारे लिए और ये ज्ञान कहीं तो काम आएगा, कभी तो काम आएगा। अपने पर विश्वास रखो। तुम इंसान हो तो तुमसे भी गलतियां हो सकती हैं। तुम भी गलत चीजें चुन सकती हों, उनसे डरना नहीं। गलतियां नहीं कीं तो इंसान कैसी हुई, बस उन गलतियो को सुधारो। उनसे सीख लेकर आगे बढ़ो। इसे हार की तरह मत मानो। अब प्रियंका तो ऐसे में मुझे जवाब देती है कि पराजय मेरे लिए विकल्प ही नहीं है, मुझे तो हर हाल में जीतना ही होगा।

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अगर एक मां अपनी बेटियों को चलना-बोलना सिखाती है तो वही मां अपनी बेटियों से सीखती भी बहुत है। आप प्रियंका से क्या सीखती हैं?
पहले तो विनम्रता, तहजीब, तमीज ये सब बहुत ज्यादा हैं। फिर जो भी बीड़ा उठाओ उसे पूरा करो। शुरुआत की है तो अंजाम तक करो। पूरा करो। कोई काम आधे-अधूरो में मत करो। मेरा दिल बहुत जल्दी भर जाता है किसी भी काम से लेकिन ऐसा वह नहीं करने देती, कितने दिनों से उससे कहा कि अब रिटायर हो जाती हूं, वह नहीं करने देती।
 
एक थोड़ा-सा इमोशनल सवाल करती हूं कि जब अपने पिता की अंतिम विदाई हो रही थी तो मैं वहीं कवर कर रही थी। मैंने देखा कि आप बहुत शांत खड़ी थीं, लेकिन प्रियंका वहां बहुत रो रही थीं। देखकर लग रहा था कि वे अंदर से बहुत टूट रही हैं। उस समय पर आपने उन्हें कैसे संभाला?
उसे तो मैं आज तक नहीं संभाल सकी हूं। प्रियंका अभी भी उस दुख में है, वह बाहर कहां आ सकी है? उसके दुख को अभी तक समापन नहीं मिला है। वो दुख खत्म ही नहीं हो रहा है। मैं एक डॉक्टर हूं तो मुझे पता है कि उनकी (दिवंगत डॉ. अशोक चोपड़ा) बीमारी का क्या अंजाम होता है या बीमारी की गति क्या है और जीवन की कितनी अवधि है। मैं तो मेंटली तैयार थी लेकिन बच्चे नहीं थे। प्रियंका उस समय मुंबई से बाहर थीं तो मैंने 5-7 दिन पहले बोला कि अब आ ही जाओ। जब आई तो वो एकदम शॉक्ड हो गईं। उसने अपने पापा के साथ एक बहुत लंबा और पूरा समय बिताया। लेकिन फिर भी मुझे लगता है कि वो अंदर से दुखी ही रहती है।
 
अपनी बेटी को इस नए साल के लिए आप क्या आशीर्वाद देंगी?
मैं कहूंगी कि स्मेल द रोजेज यानी जो कमाया है उसे एंजॉय भी तो करो। थोड़ा रुको। थोड़ा जीवन को जीना भी तो सीखो, बहुत काम कर रही हो। बस... थोड़ा धीरे चलो। अपने लिए भी समय निकालो थोड़ा। क्या फायदा इतना काम कर रही हो और इसका लुत्फ नहीं ले पा रही हो।
 
कभी शादी के लिए नहीं कहती हैं?
शादी तो मुझे लगता है कि आज की लड़कियों के लिए या जो जरा करियर पर ध्यान देना चाहती हैं उनके लिए जरूरी नहीं है। आप अपनी जिंदगी की पतवार अपने हाथ में रखें, यही बहुत बड़ी बात है। कहां एक जमाने में लड़कियां लोगों के जूते के नीचे होती थीं। अब देखो लड़कियों को, सर उठाकर चल रही हैं। मैं कभी नहीं कहूंगी कि किसी की गुलामी करो तुम। अगर बराबरी में शादी होती है तो जरूर कहूंगी कि कर लो शादी जिनके साथ तालमेल अच्छा हो। विचार एक-सा हो। तब तो शादी का मतलब है।
 
वो दिन कब आएगा जब आप और आपकी बिटिया निर्माता और बिटिया ही एक्टिंग भी कर रही होंगी।
अरे ये अभी तो नामुमकिन है। वो सिर्फ निर्माता ही रहेंगी, क्योंकि प्रियंका का कहना है अपनी ही फिल्म में काम करना कोई बड़ी बात नहीं है। उसका ध्येय है कि नए लोगों को अवसर दें। नई और अच्छी कहानियां हैं तो दूसरों से कहलवाएं। लेकिन मैं चाहूंगी कि वह एक तो फिल्म करे, हिन्दी करे या रीजनल करे, लेकिन करे। वैसे तो कोई जॉनर की फिल्म ऐसी नहीं रही, जो उसने न की हो लेकिन मैं उसको कॉमेडी फिल्म में देखना चाहूं। मुझे मालूम है कि वह कॉमेडी भी अच्छे से कर लेगी।
 

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