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साबरमती रिपोर्ट करते समय समझ में आया कि पत्रकारों की क्या भूमिका होती है : रिद्धि डोगरा

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रूना आशीष

, शनिवार, 16 नवंबर 2024 (11:37 IST)
फिल्म 'द साबरमती रिपोर्ट' को लेकर मेरे दिल में कहीं कोई प्रश्न नहीं था। प्रेशर तो अब मीडिया से आया इसके प्रमोशन या फिल्म रिलीज के आसपास की जो बातें होती है, उसे लेकर होता है। प्रेशर तब भी हुआ जब मैं इस फिल्म के लिए हां या ना का निर्णय ले रही थी। मैंने फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़ी और फिल्म से जुड़े हुए लोगों से मैं मिलने आई और मैंने उनको समझा कि यह विषय को लेकर कितने ज्यादा सजग है और संजीदा है। क्या यह सीरियस है? 
 
जब तक मुझे इस बात की तसल्ली नहीं हुई तब तक मैंने फिल्म के लिए हां नहीं कहा था। फिल्म हम तो दिखा रहे हैं वह यह है कि साबरमती एक्सप्रेस में उस समय जो हुआ था, उसमें मीडिया ने क्या भूमिका निभाई। वह सच को सामने किस तरीके से लेकर आए। जब अपनी टीम से मैं मिली तो मुझे एक ही चीज समझ में आई कि यह सब लोग सच की बात कर रहे हैं जो जैसे हुआ उसे वैसा ही दिखाने की बात कह रहे हैं।
 
इस वजह से मेरा फिल्म को लेकर विश्वास बढ़ गया। यह कहना है रिद्धि डोगरा का जो 'द साबरमती रिपोर्ट' में एक मीडिया कर्मी की भूमिका निभा रही है। अपनी बातों को आगे बढ़ाते हुए रिद्धि बताती हैं कि मैं अपने पुराने कई इंटरव्यू में कह चुकी हूं कि यह फिल्म जो है यह सच को ही लोगों के सामने लाने की कोशिश करती है। एक सच को देखने और दिखाने के अलग अलग एंगल हो सकते हैं। आप एक एंगल से दिखाओ तो लोग उस पर विश्वास करेंगे। 
 
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साथ ही साथ दूसरा एंगल से दिखाओ तो लोग उस पर भी विश्वास कर लेंगे। इसलिए कहते हैं डांस ऑफ प्रोस्पेक्टिव ऐसी ही होती है। जहां तक रही बात की क्या मैं इस विषय के बारे में पहले से जानती थी? मैं दिल्ली की पढ़ी लिखी हूं वहां पर यह सारी बातें होती रही है। तब मैं इतनी बड़ी नहीं थी कि अपनी सोच लोगों के सामने रखूं और वैसे भी पहले यही होता था ना बच्चों को कौन पूछता है।
 
लेकिन मेरे घर में सारा समय न्यूज़ चैनल चलता रहा है या पापा के या घर के दोस्तों में जब बात होती थी तो इस घटना की बात होती थी। कहा जाए तो इस सारे विषय के बारे में मैं पहले ही सुन चुकी थी। जैसे मेरे घर में कोई कहता था कि अरे देखो यह वाला चैनल तो इस घटना को इस तरीके से दिखा रहा है। वही दूसरा वाला तो इस घटना को किसी अलग तरीके से और अलग नजरिए से दिखा रहा है। 
 
पत्रकारों की भूमिका- 
फिल्म करते समय मुझे समझ में आया कि पत्रकारों की क्या भूमिका होती है। जब भी कोई घटना होती है तो आप कैसे उसे कवर करते हैं और सारी जानकारियां लोगों के सामने लेकर आते हैं। वैसे भी प्रजातंत्र के चार मुख्य स्तंभ में पत्रकारिता भी आते हैं तो जब आप यह फिल्म करते हैं तब समझ में आता है कि आप लोगों के पास किसी भी घटना को बताने की कितनी बड़ी शक्ति होती है और खास तौर पर आज के समय में। 
 
बहुत जरूरी हो गया है कि पत्रकारिता पर ध्यान दिया जाए क्योंकि सोशल मीडिया में तो ऐसी ऐसी बातें सामने आती है जिसका कहीं कोई तथ्य चेक नहीं किया जाता है ना खबरों की पुष्टि करने के लिए कोई प्रयास किया जा रहा है। आजकल तो बस आप पेजेस खोलते हैं, खबर पढ़ते हैं। आम जन एकता को तो यह तक नहीं पता होता है कि वह जो खबर देखी या पढ़ रहे हैं, वह सच कितनी है। उनके लिए तो उन्हें लगता है कि हमने खबर पढ़ ली है लेकिन इसके सत्यता के बारे में कोई बात नहीं होती है।
 
आप इतने समय से इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में काम कर रही हैं। अपनी सफलता का श्रेय किसे देना चाहेंगी। 
मैं उन सारे ही लोगों को श्रेय देती हूं जिन्होंने मेरा साथ दिया और मुझे आगे बढ़ाया। मुझे नई नई चीजें दिखाई और एक बेहतर एक्टर बनने में मेरी मदद की चाहे वह मेरे निर्माताओं निर्देशकों से कलाकार हो या वह सारे लोग जो सेट पर मौजूद होकर मेरी जाने अनजाने मदद करते रहे हैं। वह एक्टर भी जिन्होंने मुझ में विश्वास दिखाया था कि मैं अपने रोल को अच्छे से निभा सकूं। 
 
टेलीविजन में भी कई सारे ऐसे लोग हैं जिन्होंने मुझे बहुत मजबूत एक्टर बनने में मदद की है। इसमें वसीम साबिर जी की बात करना चाहूंगी जो इस दुनिया में नहीं है। उन्होंने मुझे एक्टिंग के पाठ पढ़ाए हैं। मुझे आज भी याद है कि मेरा पहला सीरियल जो था उसमें जॉयश्री अरोड़ा नाम की बहुत ही जानी-मानी टेलिविजन एक्ट्रेस थी। उन्होंने मुझे टीवी पर रोना कैसे है यह सिखाया। उन्होंने मुझे नवरस क्या होता है अभिनय में वह सिखाया है। 
 
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आपका भाई भी है अक्षय डोगरा आप दोनों कैसे रहते हो घर में कौन दादागिरी करता है? 
हम बिल्कुल भी ड्रामेबाज नहीं है। हम दोनों बहुत अच्छे से समय बिताते हैं साथ में। मेरा भाई तो पहले निर्देशक बनने के लिए फिल्म इंडस्ट्री में आया था। उसने कुछ एक प्रोजेक्ट में असिस्ट भी किया, लेकिन वह कहां जाता है ना कि अगर आप थोड़ा भी अच्छे दिखते हैं तो पकड़ कर उससे कह दिया जाता है कि अरे तुम अच्छे दिखते हो, तुम चलो एक्टिंग किया करो। 
 
अब मेरे भाई की यह स्थिति है कि वह निर्माता बनना चाह रहा है। मैं पूरी कोशिश कर रही हूं कि खूब मेहनत करूं। अपने आप को एक बड़ा ब्रांड बनाऊं ताकि जब मैं अपने भाई के किसी भी प्रोजेक्ट से जुड़ी तो उसे मेरे होने से मदद मिले। अपने पहले ओटीटी पर द मैरिड वूमेन नाम की एक सीरीज की थी जो अपने आप में बहुत सारे रंग लेकर चलने वाली महिला की कहानी थी। 
 
क्या कोई तैयारी की थी या निर्देशक ने निर्देश दिए थे?
मैंने एक्टिंग में सबसे पहले यही चीज सीखी है कि जब भी मैं कोई रोल चुनूं तो मैं उसे जज ना करूं क्योंकि अगर मैं सोच समझ कर गई तो ऐसा हो जाएगा कि मैंने उस रोल की गहराई को ना समझते हुए अपने विचार उस रोल में थोप दिए हैं। जो बतौर एक्टर करना बहुत गलत बात होगी। वहां पर भी मैं इस सीरीज के टीम से मिली थी। उनसे बातचीत की तब समझ में आया कि वह इस महिला के किरदार को किस तरीके से लोगों के सामने लाने की कोशिश कर रहे हैं। 
 
यूं तो यह एक उपन्यास पर आधारित सीरीज है लेकिन नोवल को भी पर्दे पर उतारने के लिए बहुत सारी मेहनत लगती हैं। अब इस फिल्म के निर्देशक (साहिर रजा) की मैं बात कर लूं तो वह एक पुरुष होते हुए भी महिलाओं के प्रति बहुत संजीदा और सरल सोच रखने वाले व्यक्ति रहे हैं। उन्होंने मेरे साथ एक महिला असिस्टेंट रखी थी जो इस परिवेश को बहुत अच्छे से समझती थी। वह समय-समय पर मुझे मैं इनपुट भी दे दिया करती थी। 
 
निर्देशक साहब ने भी तय करके रखा था कि जब भी कोई सीन होगा और उस पर डिस्कशन होगा तो उस समय वह महिला असिस्टेंट मेरे साथ रहेंगी और जो भी निर्णय लिया जाएगा, वह मुझ तक पहुंचाने के लिए वह महिला असिस्टेंट की जिम्मेदार होंगे ताकि बातों को बहुत अच्छे से और गहराई के साथ समझाया जा सके। 
 
दूसरी बात इसमें मेरे साथ एक्टर बड़े कमाल करते चाहे वह सुहास हो या इमाद हो या फिर मोनिका हो। यह सभी लोग इतने मंझे हुए कलाकार थे कि मुझे मालूम था कि अगर मैं कोई वेब सीरीज कर रही हूं? अलग-अलग उतार-चढ़ाव को दिखाने वाला कोई रोल कर रही हूं तो हम सब मिलकर इस काम को बेहतर ही बनाएंगे। हम इस विषय का मजाक नहीं बनने देंगे। 

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