शेमारू ओटीटी पर हाल ही में 'षड्यंत्र' नाम की वेब सीरीज को रिलीज किया गया। इस वेब सीरीज में रोहिणी हट्टंगड़ी, अपरा मेहता और वंदना पाठक जैसे बड़े नाम शामिल है। नई पीढ़ी को बताने वाली श्रेणु पारिख भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। श्रेणु पारिख से वेबदुनिया ने खास बातचीत की।
अपने रोल के बारे में बताते हुए श्रेणु कहती हैं, जैसे ही मेरे सामने यह रोल लाया गया मैंने तुरंत हां बोल दिया। मुझे कहानी बहुत अच्छी लगी और साथ में मेरा किरदार बहुत दमदार था। मुझे अभी भी याद है सिर्फ 10 मिनट का एक फोन कॉल हुआ था। मुझे लगा कि लोगों को राजनीति और उससे जुड़ी हुई कहानियां देखने और सुनने में मजा आता है और इसके पहले गुजराती में ऐसा कुछ हुआ भी नहीं था। एक बहुत ही नए तरीके का प्रयोग था और फिर इतनी बड़ी स्टार कास्ट तो थी ही तो मैंने हां कर दिया।
लॉक डाउन की वजह से प्रॉब्लम नहीं हुई
हम लोग बहुत लकी रहे। 1 महीने और कुछ दिनों के अंदर ही है सारी बातें निश्चित की गई और हम लोग जयपुर के लिए चले गए। वहां शूट किया, 12 दिन का शेड्यूल था। अच्छे से शूट किया वापस घर पर आए और इतने लकी रहे है हम लोग कि हमारी डबिंग हुई और शायद तीन दिन बाद ही लॉकडॉउन शुरू हो गया यानी मार्च की बात है और उसके बाद से इस साल के शुरुआत से आप देख रहे हैं कैसे कोविड-19 के वजह से जैसे हमारी जिंदगी थम सी गई थी।
आप कितने बड़े कलाकारों के साथ काम कर रही थी तो टेंशन में नहीं आई?
सच में वंदना पाठक जी हो या रोहिणी हट्टंगड़ी हो या फिर अपरा मेहता हो। इन जैसे बड़े कलाकारों के साथ काम करने में टेंशन तो होना लाजमी है। हम लोग जब जयपुर पहुंचे तो अपरा जी ने कुछ 3 दिन बाद हमें जॉइन किया था जबकि रोहिणी जी, उनके साथ तो हमने पहले ही दिन से शूट करना शुरू कर दिया था। यहां तक कि हम दोनों साथ ही में सफर कर रहे थे।
वो सब इतने बड़े कलाकार हैं। वंदना जी की ही बातें लो सीरियल 'एक महल हो सपनों का' हो या फिर 'खिचड़ी' हो या फिर अपरा जी की बात कहूं तो क्योंकि सास भी कभी बहू थी और रोहिणी जी की फिल्म मुन्ना भाई। यह सब देखकर तो मैं बड़ी हुई हूं तो जब इनके सामने जाती थी तो एकदम से फैन मोमेंट वाली हालत में आ जाती थी। ऐसे मे वह लोग समझ गए थे कि मैं शायद थोड़ी टेंशन ले आ रही हूं।
वह इतने अच्छे से पेश आए। मुझे लगा ही नहीं कि मैं जानती नहीं या फिर ये सभी मुझसे इतनी ज्यादा सीनियर है। इतने प्यार से पेश आते हैं कि आपकी जो झिझक है, एकदम खत्म हो जाती है और बतौर सह कलाकार आपको यह दोस्ताना व्यवहार बहुत काम आता है।
गुजराती में आप बात कर रही थी। हालांकि आप गुजरात से ही ताल्लुक रखते हैं। तो शायद भाषा की तकलीफ तो आपको नहीं हुई होगी
मेरी मातृभाषा गुजराती है। गुजराती में ही बात होती है, लेकिन गुजराती में एक्ट करना और हिन्दी में एक्ट करना बहुत अलग बात हो जाती क्योंकि इन दिनों मैं हिन्दी में ज्यादा काम कर रही हूं तो गुजराती में थोड़ा सा सोचना पड़ रहा था, लेकिन मेरी टेंशन यह नहीं थी। मेरे साथ जो कलाकार थे, वह सारे ही थिएटर आर्टिस्ट हैं। सारे ही गुजराती थिएटर, गुजराती ड्रामा करते आए हैं।
ड्रामा वाले जितने भी लोग होते हैं, सभी लोगों को एक आदत होती है कि कहीं भी किसी भी हिसाब से हमारी भाषा में तकलीफ ना हो इस बात का ध्यान रखते हैं। उच्चारण एकदम सटीक रहते तो यह लोग जब बात करते थे तो इतनी अच्छी गुजराती उनकी जबान से निकलती थी तो मुझे टेंशन होने लग जाती थी। लेकिन फिर भी सब आसानी से कर लिया हम लोगों ने।
जयपुर में आपकी शूट कहां हुई और कैसा रहा था माहौल
जयपुर में हमने असली लोकेशंस पर शूट के लिए यानी हम लोग महलों में शूट कर रहे थे। वह इतना यादगार समय था मेरे लिए। क्योंकि जिन के महलों में हम शूट करे थे, वह राजा रजवाड़ों के थे। उनसे मिलने का मौका मिला, बातचीत करने का मौका मिला। इतना अच्छा लगता है यह देखकर कि वह किस तरीके से सलीके से जीवन जी रहे हैं। अपनी धरोहर को और अपने संस्कारों को कितना संभाल कर आगे बढ़ रहे हैं और बहुत ही अच्छा समय बिता मेरा उन लोगों के साथ।
कोई शॉपिंग हुई या नहीं
शॉपिंग का समय ज्यादा मिला नहीं सिवाय एक दिन की का ब्रेक था तो हम तो झट से पहुंच गए सारी शॉपिंग करने के लिए। मजेदार बात यह कि मैं एकदम नार्मल से कपड़ों में गई थी और जो कि कोविड का समय था तो मैंने मास्क लगाया था। अब इस मास्क ने मेरी बड़ी मदद की। कोई पहचान नहीं पाता था तो मैं जितना चाहो उतनी मोल भाव कर सकती थी और मैंने वह किया।
आपको डर यह लगा रहता है कि अगर आप मेकअप में हों। लोग आपका चेहरा देख ले तो कीमत है तो दो तीन गुना तो बढ़ जाती हैं। मैंने इस मास्क का इतना फायदा उठाया। इतनी सारी शॉपिंग की इतने सारे लहरिया और बांधणी के कपड़े खरीदे कि जिसे देखकर मेरी मां बोलती है कि तुम यह कभी जिंदगी में पहनने भी वाली हो। लेकिन क्या करूं इतना रंगबिरंगा ऐसा खूबसूरत माहौल मैंने किसी बाजार का देखा ही नहीं तो मैं शॉपिंग करती गई और रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी।
आप एक बात मुझे बताएं क्या कभी कलाकारों के साथ ऐसा होता है कि वह जिस तरीके से रोल निभा रहे हो उस रोल का थोड़ा सा भाग आपकी जिंदगी पर भी असर डाल दे
मेरे हिसाब से उल्टा ही होता है। अभी तक किसी रोल ने मेरी जिंदगी पर असर डाला है ऐसा मुझे देखने में तो नहीं आया। होता कुछ ऐसा है कि आप को कोई भी रोल दिया जाए या आपके सामने कोई किरदार रख दिया जाए तो आप जैसे हैं उसी से थोड़ा सा रोल को जोड़ने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर मुझे कोई रोल दे दिया गया जो एक बहुत सीधी-सादी लड़की का है। और ऐसे में मुझे पेंटिंग करना पसंद आता है जो एक अच्छी बात है तो मैं अपने निर्माता या निर्देशक और लेखक के सामने यह बात रखूंगी और कह दूंगी कि क्यों ना हम इस अच्छी सी लड़की को और गुड गर्ल को पेंटिंग करने वाली दिखा दें।
मेरे हिसाब से तो अच्छा ही है कि मेरा कोई भी किरदार मेरे ऊपर कोई रंग छोड़कर नहीं जाता है। अब पिछले कुछ किरदार खासतौर पर से सर्वगुण संपन्न जैसा किरदार किसी ने मेरा मुंह टेढ़ा करके हंसना और वह आंखों से वार करते हुए देखना इतना लोगों ने पसंद किया था कि मैं बता नहीं सकती। अब कभी इस तरीके से बात मेरे साथ हो जाए तो तो गड़बड़ हो जाएगी।
श्रेणु हंसते हुए अपनी बात आगे बढ़ाती हैं और कहती हैं, कई बार मैं अपने दोस्तों के साथ कभी कॉफी या चाय पर ऐसे ही मिलने चली जाऊं और यह भी वह दोस्त जो कभी एक्टिंग से दूर-दूर तक ताल्लुक ना रखते हों, बचपन वाले दोस्तों उनके सामने हंसी मजाक की कोई बात हो जाए और जाने अनजाने वह जान्हवी वाली खास हंसी मेरे चेहरे पर आ जाए तो सब के सब मेरे पीछे पड़ जाते हैं कि तुम तुम्हारा और जान्हवी वाला रूप छोड़ो और हमारी वाली श्रेणु बनकर हंसा करो। पर भला ही हो अगर मेरे इन नेगेटिव का असर मेरे रोजमर्रा के जीवन पर ना हो वरना बहुत गड़बड़ हो सकती है।