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हर फिल्म की किस्मत होती है: विद्या बालन

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रूना आशीष

फिल्म 'कहानी' के साथ एक बार फिर विद्या बालन लोगों को चौंकाने की तैयारी में हैं। पिछली फिल्म 'कहानी' में विद्या ने बागची बनकर एक्शन करके फिल्म में सबकी प्रशंसा पाई थी और अब वे विद्या सिन्हा और दुर्गा रानी सिंह बनकर लोगों को अचरज में डाल रही हैं। उनसे बात की हमारी संवादददाता रूना आशीष ने।

 
विद्या, क्या अब हम फिल्म में आपका नाम 'बिद्या' सुन पाएंगे या मिस करती हैं अपने उस नाम को जिसमें आपको हर बार 'बिद्या' नहीं 'विद्या, विद्या' कहना पड़ता था?
अरे, मुझे बहुत अच्छा लगता है। जब भी मैं कोलकाता जाती हूं तो सबको कहती हूं कि आमी बिद्या बागची या आमी बिद्या बालोन, क्योंकि लोग वहां ऐसे ही बोलते हैं न। हर प्रांत के लोग हर नाम को अलग तरीके से पुकारते हैं न। अब तो सबके लिए खासतौर पर कहानी के बाद से मैं मिसेज बागची बन गई हूं। कभी उनके लिए मैं मिसेज बागची हूं तो कभी बिद्या। इस फिल्म भी मैं विद्या सिन्हा का रोल निभा रही हूं तो आपने ट्रेलर में भी देखा होगा कि एक बार बोला जाता है कि ये तो हमारी बिद्या है, तो मुझे अच्छा लगता है।
 
पिछली बार पुलिस की भूमिका में नवाजुद्दीन थे जबकि इस बार पुलिस के रोल में अर्जुन हैं। 
लेकिन इन दोनों के रोल्स अलग हैं। कहानी पूरी ही अलग है। इस फिल्म में मेरे दो किरदार हैं। चूंकि ये कहानी अलग है इसलिए सुजॉय ने किरदार भी अलग ही लिए हैं दोनों के। कहीं लोगों को कोई कन्फ्यूजन न हो। लोगों को ये न लगे कि ये तो विद्या बागची की ही एक और कहानी है। जमीन-आसमान का फर्क है उसमें। 
 
दुर्गा रानी सिंह इस फिल्म में बहुत ही पेचीदा शख्स है। मतलब सरल शब्दों में कहें तो जैसी है, वैसी दिखती नहीं है। ये एक ऐसी औरत है, जो अपने आप में रहना पसंद करती है। उसे लोगों से घुलना-मिलना ज्यादा पसंद नहीं है। फिर उसकी जिंदगी में कुछ ऐसा होता है जिसकी वजह से उसकी काया पलट जाती है। उस पर आरोप लगता है कि उसने किसी का कत्ल किया है और किसी को अगवा किया है। अब ये कहां तक सच है? इसमें मैंने दो किरदार निभाए हैं। विद्या सिन्हा का भी। अब इनमें से एक मां है और एक कातिल या दोनों कातिल हैं या मां ही कातिल है, ये तो मैं नहीं बताऊंगी और इसमें मैं आपको फंसाने की कोशिश कर रही हूं।
 
तो सुजॉय कैसे मदद करते रहे आपकी?
सुजॉय और मैं एक-दूसरे को बहुत अच्छे से समझ सकते हैं। वे अपने एक्टर को समझते हैं। हमने कभी भी किरदार को बैठकर ऐसे करना है, वैसे करना- नहीं कहा, लेकिन हम बस कभी यूं ही साथ में बैठते थे। आधे समय तो हमारी बकवास ही चलती रहती थी। कुछ भी बेसिरपैर की बातें करेंगे, फिर कुछ ऐसा कहकर निकल जाएंगे कि मैं उनके जाने के बाद सोचती रहती हूं कि आखिर ऐसा क्यों बोला? फिर मैं फोन लगाकर पूछूंगी कि ऐसा क्यों बोला तुमने? तो इस तरीके से बातों-बातों में किरदार की तैयारी हो जाती थी।
 
क्या आपको लगता है कि नोटबंदी की वजह से फिल्म को कोई फर्क पड़ सकता है? 
मेरा ऐसा मानना है कि हर फिल्म की अपनी एक किस्मत होती है। मैं किस्मत जैसी बातों पर बहुत ज्यादा भरोसा तो नहीं करती, फिर भी। वैसे भी हमने फिल्म बना दी है, अब आगे का काम जनता-जनार्दन का है। वैसे भी अब डीमॉनिटाइजेशन की बात है तो जब ये कदम उठाया गया था तब उन दो हफ्ते की फिल्मों को हो सकता है कि असर पड़ा हो, लेकिन अब तो हालत सुधर गए हैं। 'डियर जिंदगी' ने भी अच्छा बिजनेस कर लिया है तो लगता है कि फिल्म पर फर्क नहीं पड़ेगा। 
 
जहां तक बॉक्स ऑफिस पर परफॉर्मेंस की बात है तो मेरे लिए बहुत बड़ी बात है ये, क्योंकि ये ही तो है जो आप चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे देखें। बॉक्स ऑफिस पर आपकी हर फिल्म सक्सेसफुल हो। देखिए, मुझे बॉक्स ऑफिस का बिजनेस तो नहीं समझता है, लेकिन मुझे ये मालूम है कि 100 लोगों ने मेरी फिल्म देखी है या 50 हजार या 3 करोड़ लोगों ने फिल्म देखी है, तो जो सुकून मिलता है वह अलग ही होता है।
 
आप अपनी फिल्मों के प्रमोशन पूरे जोश-खरोश के साथ करती हैं तो क्या आप कॉमेडी नाइट्स बचाओ में भी प्रमोट करने जाएंगी इस फिल्म को? क्योंकि हाल ही में कुछ सितारों को शो के कंटेंट और ट्रीटमेंट से तकलीफ भी हुई है। उन्होंने नापसंद भी किया इस बात को।
मैं तकरीबन 11 सालों से फिल्में कर रही हूं। मैं अपनी फिल्म को प्रमोट करने के लिए किसी भी तरह से तैयार हूं। आप कहिए कि किसी इमारत पर खड़े होकर कहानी को प्रमोट करना हो तो मैं कर दूंगी। मुझे बस ये ही लगता है कि मेरी फिल्म के बारे में जितने ज्यादा लोगों को मालूम पड़े, वो अच्छा होगा। उतने लोग फिल्म देखने के लिए आएंगे। मैं इसके पहले 'बिग बॉस' के घर में भी दो बार जा चुकी हूं। एक बार 'नो वन किल्ड जैसिका' के लिए और फिर एक बार 'द डर्टी पिक्चर' के लिए। लेकिन कॉमेडी नाइट्स में कभी मैं जा सकूंगी ऐसा नहीं लगता, क्योंकि मुझे नहीं लगता कि मैं कभी भी ऐसे जोक्स को पचा पाऊंगी। आपको ऐसे शोज में तभी जाना चाहिए, जब आपको ऐसी बातों से कोई आपत्ति नहीं हो। वे जरूर कोई ऐसी बात कर जाएंगे, जो आपको बुरी लग जाए। ऐसा हो सकता है न?
 
'बिग बॉस' में आपका इस बार का अनुभव कैसा रहा? 
इस बात पर विद्या ने बहुत ही सुलझे अंदाज में कहा कि 'हां, स्वामीजी तो बड़े ही अलग हैं। बड़े रोचक किस्म के किरदार हैं वे उस घर में। वे बोलते भी ऐसा हैं, जैसे कि कभी किसी जमाने में पृथ्वीराज कपूर बोलते थे। घर में कुछ भी हो रहा हो, वे ऊंची आवाज में हाथ उठाकर ऐसे बोलते हैं, जैसे कि भाषण देने वाले हैं अभी।'
 
आप कई महिला प्रधान फिल्मों में काम कर चुकी हैं, लेकिन बताइए क्या ऐसा अलग से बात बताना या कहना जरूरी है कि आप महिला प्रधान फिल्म या हीरोइन ओरिएंटेड फिल्म कर रही हैं?
हां, मुझे लगता है कि यह जरूरी है, क्योंकि इतने सालों से तो अभिनेता प्रधान फिल्में ही बन रही हैं न। हमारे देश में कई ऐसी फिल्में हैं जिनमें अभिनेत्रियां मुख्य किरदार में होती हैं। मेरे हिसाब से ठीक है न कि हम इसे महिला प्रधान फिल्म कह रहे हैं। एक दिन जरूर ऐसा होगा, जब महिला और पुरुष प्रधान फिल्में बराबरी में बनने लगेंगी। जब तक कह लेते हैं न। मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई बुराई है लेकिन उस स्थिति तक पहुंचने में अभी वक्त लगेगा। उस समय हम कह देंगे कि ये एक फिल्म है। 
 
महेश भट्ट कहते हैं कि विद्या को फिल्म मैकिंग की तकनीकी समझ है? 
नहीं, मुझे फिल्म मैकिंग की बिलकुल समझ नहीं हैं। मैं कभी फिल्म की एडिटिंग में नहीं जाती या कभी सॉन्ग रिकॉर्डिंग में नहीं जाती लेकिन अब भट्ट साहब कह रहे हैं तो मुझे मानना पड़ेगा। शायद मुझे स्क्रिप्ट की अच्छी समझ है। मैं अपनी स्क्रिप्ट पर अच्छे से काम कर लेती हूं। मैं पहले ही सारे सवाल पूछ लेती हूं। मुझे ऐसा लगता है कि मैं शॉट पर जाने के पहले ही अपनी तरफ से तैयार हो जाऊं ताकि मेरी वजह से किसी और का काम न रुके या समय बर्बाद न हो।
 
आपको अपनी फिल्म के कैरेक्टर से बाहर निकलने में कितना समय लगता है? 
एक बार शाहरुख ने कहा था कि उन्हें पूरे 2 घंटे शॉवर में रहना पड़ता है तब जाकर उनके ऊपर से कैरेक्टर का असर निकलता है। अरे! सिर्फ 2 घंटे लगते हैं? मुझे तो 2 हफ्ते लग जाते हैं। जब आप किसी और की जिंदगी जी रहे हों तो उससे पूरा बाहर आना और अपनी जिंदगी में वापस आना- इस बात में थोड़ा समय लगता है। लेकिन अगर शाहरुख ऐसा बोल रहे हैं तो मान लीजिए, वे ऐसा कर सकते हैं।
 
'बेगम जान' के बारे में कुछ बताइए?
बहुत मजेदार रहा शूट करना। मेरा पहला दिन और मेरे साथ नसीर साहेब। मैंने कहा कि पहले ही दिन में इतना टेंशन मत दो मुझे। मैंने निर्देशक श्रीजीत को कहा कि पहले दिन ही ऐसा कर दिया। आप तैयार नहीं हैं। आपको नहीं मालूम कि आप अपने सेट पर जाओगे तो कैसे रहोगे और ऐसे में पहले ही दिन आपके सामने नसीर साहेब हों। 
 
मैंने पूछा कि इतना प्रेशर क्यों डाल रहे हो? तो श्रीजीत ने कहा वो इन्हीं डेट्स पर मिल सकते हैं वर्ना फिर उनकी डेट्स नहीं हैं। वे इतने मिलनसार और गर्मजोशी से भरे हैं। पहले 3 दिन उनके साथ काम था और वो इस बात पर खुश हो रहे थे कि इस बार मैं इतनी मुस्कुरा नहीं रही हूं। मुझे इतना ताज्जुब होता है कि कैसे वे इतने आराम से किरदार निभा लेते हैं, फिर शायद इसीलिए वो नसीर साहेब हैं।

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