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बैंक चोर में रितेश और मैं आमने-सामने हैं: विवेक ओबेरॉय

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रूना आशीष

दुनिया चाहे कहे कि मेरे साथ षड्‍यंत्र हुआ या गलत हुआ या मेरे खिलाफ लॉबिंग की गई। हां, मेरे साथ हुआ ऐसा। अब है तो है ऐसा। लेकिन आप अपने साथ हुई बात के लिए किसे जिम्मेदार बनाओगे? आप पीड़ित थोड़े ही बनोगे। आप अपने हाथों में जिंदगी को लोगे और कहोगे, ऐसा हुआ तो हुआ। मैं गिरा तो क्या हुआ अपनी शक्ति के साथ मैं फिर खड़ा हुआ हूं और आगे बढ़ूंगा। ठीक है एक रेस में पीछे रह गया कोई बात नहीं। जिंदगी में एक ही रेस थोड़े ही होती है। सलमान के साथ हुए 41 कॉल्स के बारे में कुछ यूं कहते हैं विवेक। 
 
उन्हें आज इस बात का कोई मलाल नहीं है कि एक्टिंग की रेस में वे आगे नहीं बढ़ पाए हैं लेकिन अब वही विवेक ओबेरॉय इन दिनों कई सामाजिक कामों को करते दिखाई देते हैं। कभी जरूरतमंदों को फ्लैट देते हैं तो कभी एसिड अटैक विक्टिम लड़की की शादी में पैसों से सहायता करते हैं। उनकी यशराज के साथ फिल्म 'बैंक चोर' के साथ एक बार फिर तार हैं दर्शकों के सामने आने के लिए। उनसे बात कर रही हैं 'वेबदुनिया' संवाददाता रूना आशीष: 
 
आपने फिल्म 'बैंक चोर' में पुलिस वाले का किरदार किया है तो वर्दी मिस की?
इस फिल्म में मैं सीबीआई ऑफिसर हूं तो मैं नॉर्मल कपड़ों में ही काम करता हूं, लिन वर्दी मिस नहीं की। इस किरदार का नाम अमजद खान है और वो ऐसा शख्स है, जो मानता है कि कानून सबके लिए है लेकिन अमजद खान के लिए नहीं। उसे रौब दिखाने के लिए वर्दी की जरूरत नहीं है। फिल्म के एक सीन में आपको समझ आएगा कि ये किस तरह का ऑफिसर है। बैंक में रॉबरी हो रही है। बैंक के बाहर पुलिस खड़ी है और तमाम रायता फैला है, ऐसे में वो आता है और बिना कुछ पूछे अपने काम में लग जाता है। उसे पहले से ही मालूम है कि करना क्या है। सब कुछ कैल्कुलेट करके आया है वो। बहुत आत्मविश्वास है उसमें। उसे पता कि वो सब सुलझा लेगा बिलकुल किसी सुपर कॉप की तरह से।
 
आप के और रितेश के किरदारों में किस तरह का विरोधाभास है?
हम अभी तक एक ही साइड में रहकर फिल्म करते आए हैं। इस बार हम आमने-सामने हैं। वो बना है निरा बेवकूफ बैंक चोर, जो पहली बार बैंक लूटने आया है।  साथ में गधे और घोड़े का मुखौटा पहने दो और बेवकूफों को अपने साथ ले आया है। दूसरी तरफ मैं, जो ऐसा ऑफिसर हूं जिससे उसके साथी महाराष्ट्र पुलिस के अधिकारी भी बात करने से डरते हैं। 
 
आप नरेन्द्र मोदी के प्रशंसक हैं। हाल ही में 3 साल पूरे किए हैं सरकार ने। आप क्या कहेंगे?
मुझे ये लगता है कि ये सरकार भारत के नवनिर्माण का सपना लेकर आगे चली है। जमीनी तौर पर इतना सारा काम हो रहा है और योजनाएं चल रही हैं। हाल ही में मैं लंदन में एक सोशल फंक्शन पर गया था। वहां पर लंदन के कई बड़े और नामी-गिरामी लोग आए थे। हिन्दुस्तान के भी कुछ मंत्री थे। वहां पर कुछ लोगों से बात करने पर ऐसा लगा कि अब वे 'ब्रांड इंडिया' को बहुत सीरियसली लेने लगे हैं। पहले लोग कहते थे कि हम अगर पैसा लाएंगे तो आप क्या दोगे? हम बड़े हैं, पैसा देने वाले हैं। अब लोग कहते हैं कि पैसा तो है, बहुत है लेकिन संभावनाएं सिर्फ भारत में दिख रही हैं। वहीं हिन्दुस्तानी सरकार का रुख है कि आप हमारे देश को क्या देने वाले हैं? क्या टेक्नॉलॉजी लाएंगे, कितना रोजगार देंगे और कितना इस देश में आप इन्वॉल्व होंगे।
 
हाल ही में आप नितिन गडकरी से भी मिले हैं?
पिछले दिनों मैं नागपुर में था तो नितिन गडकरीजी से मिला था। उन्होंने तो इतिहास बनाया है (असम रोड पुल)। इसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। कितने सारे हाईवे बने हैं। हर दिन 28 किलोमीटर की रोड बन रही है। वे कह रहे थे कि मैं तो 28 की जगह 40 किलोमीटर का रिकॉर्ड बनाना चाहता हूं। पूरे देश की सड़कों की हालत बदल दूंगा। मैंने उनसे पूछा कि पैसा कैसे आएगा? तो नितिनजी बोले, बहुत पैसा है। 
 
आप अब बिजनेसमैन भी हैं और पापा भी। घर की जिम्मेदारी तो बहुत बढ़ गई होंगी? 
हां वो तो है। लेकिन सबसे अच्छी बात ये है कि हम और मम्मी-पापा साथ में ही रहते हैं तो कभी-कभार एक-दूसरे के लिए वक्त निकालने की बात आती है तो सोचना नहीं पड़ता। मेरे कई दोस्तों को देखा है मैंने कि कैसे घूमने जाने के पहले बच्चों के बारे में सोचना पड़ता है। जब भी मेरा और प्रियंका का बाहर जाने का मूड होता है तो हम 4-5 दिन लंदन जाते हैं और बच्चों की जब बात आती है तो कह देते हैं कि मम्मी-पापा देख लेंगे ना!


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