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औरत बनाम औरत है 'गुलाब गैंग' : सौमिक सेन

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हमें फॉलो करें गुलाब गैंग

फिल्म 'गुलाब गैंग' के लेखक, निर्देशक व संगीतकार सौमिक सेन से खास बातचीत :

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अपनी पृष्ठभूमि बताएं?
कोलकाता से हूं। इकोनॉमिक्स में मैंने मास्टर की डिग्री हासिल की। बिजनेस स्टैंडर्ड में पत्रकारिता की। मैंने एक टीवी चैनल पर भी कार्यक्रम पेश किया, पर फिर लगा कि बड़े क्षेत्र में जाना चाहिए तो फिल्मों में आ गया। वैसे भी बचपन से मेरी संगीत में रुचि रही है। मैंने क्लासिकल म्यूजिक भी सीखा है। टैगोर वगैरह तो हमारे खून में हैं। मुझे लगा कि मुझे अपनी कहानियां लोगों तक पहुंचानी हैं। धीरे-धीरे मैंने यह भी महसूस किया कि यदि आप लोगों को कुछ बताना चाहते हैं तो मनोरंजन का सहारा लिए बगैर उसे लोगों को बताना बहुत कठिन काम है। लोग आपकी बात सुनना नहीं चाहते। लोग तो 7 मिनट से ज्यादा लंबी यू-ट्‌यूब हो, तो वह भी नहीं देखना चाहते। इसलिए अब हमें लोगों को थिएटरों के अंदर बांधकर मनोरंजन के साथ फिल्म दिखाते हुए बात कहनी पड़ती है। इसलिए नारी शोषण व गर्ल चाइल्ड एजुकेशन की बात को करने के लिए मुझे एक मनोरंजन प्रधान फिल्म' गुलाब गैंग' बनानी पड़ी है। इसकी कहानी व पटकथा लिखने, निर्देशन करने के साथ-साथ मैंने इसे संगीत से भी संवारा है

'गुलाब गैंग' की योजना पर काम कैसे किया?
मैं आम फिल्म नहीं बनाना चाहता था। मुझे 'गुलाब गैंग' की कहानी लिखने की प्रेरणा पुरानी फिल्म 'मिर्च मसाला' के अलावा पी. साईंनाथ के लेखों से मिली।

बीस साल बाद 'मिर्च मसाला' से प्रेरित होने की क्या वजह रही?
उस फिल्म से प्रेरणा लेने की एक वजह यह रही कि मैं टिपिकल ड्रामा वाली फिल्म नहीं बनाना चाहता था। फिल्म 'मिर्च मसाला' में पुरुषों के खिलाफ औरतों का एक ग्रुप काम करता है लेकिन हमने एक आम फिल्म बनाने की कोशिश की है, जैसे कि 'दबंग' है या 'शोले' है यानी कि फिल्म में हीरो है, विलेन है। ठाकुर वर्सेस गब्बर है या सलमान वर्सेस प्रकाश राज है। कहने का अर्थ यह कि हमारी फिल्म 'दबंग' या 'शोले' जैसी है जिसमें एक हीरो है और एक विलेन है। पूरी तरह से मसाला फिल्म है। अब तक हमारे यहां जो भी फिल्में बनी हैं, उनमें औरतों के खिलाफ औरत वाला कॉन्सेप्ट नहीं आया है। मैंने पहली बार इस कॉन्सेप्ट को उठाया है। हमारी फिल्म में हीरो (माधुरी दीक्षित) वर्सेस विलेन (जूही चावला) है।

फिल्म का कथानक क्या है?
भारत के एक गांव में एक आश्रम है, जहां पर रज्जो (माधुरी दीक्षित) कुछ औरतों के साथ रहती है। यहां औरतें डंडा लिए रहती हैं और गुलाबी रंग की साड़ियां पहनती हैं। यह सभी मसाले बनाती हैं। रंगरेज हैं। साड़ियां बुनती हैं। अन्याय के खिलाफ बिगुल बजाती हैं। रज्जो को पता है कि उसके सामने बहुत बड़ी लड़ाई है। उसे चालाक राजनेता सुमित्रादेवी (जूही चावला) से भिड़ना है जिसके पास पैसा, बड़े-बड़े संपर्क, बंदूक व गोलियां हैं। एक दिन रज्जो को अहसास होता है कि सुमित्रादेवी को जवाब देने के लिए चुनाव में उतरना ही पड़ेगा। जी हां! हम अपनी फिल्म में दिखा रहे हैं कि सिस्टम से लड़ने के लिए आपको सिस्टम में जाना पड़ेगा/ सिस्टम से जुड़ना होगा।

फिल्म के अंदर जूही चावला का जो सुमित्रा का किरदार है, वह विरोध में क्यों है? उसकी क्या वजहें हैं?
सुमित्रा विरोध में नहीं है। सुमित्रा एक पॉलिटिकल लीडर है। वह पॉवर हंग्री (भूखी) है। उसे सब कुछ चाहिए। वह किसी के खिलाफ नहीं है, पर वह चाहती है कि यदि कोई ताकतवर बने तो उसका उपयोग वह कैसे कर सकती है। वह सिर्फ अपने बारे में सोचती है।

फिल्म 'गुलाब गैंग' के लिए आपने माधुरी दीक्षित और जूही चावला को ही क्यों चुना?
सच कहूं तो यदि हमारी फिल्म के साथ माधुरी दीक्षित न जुड़तीं तो यह फिल्म न बन पाती। 'गुलाब गैंग' कोई कन्वेंशनल फिल्म नहीं है। मैं अपनी यह कहानी लेकर जब लोगों के पास मिलने जाता था तो लोग कहानी सुनने से पहले पूछते थे कि 'अच्छा, यह बताओ कि फिल्म में हीरो कौन है?' मुझे उन लोगों को यह समझाने में काफी कठिनाई होती थी कि इस फिल्म में कोई रोमांटिक एंगल नहीं है। यह पुरुष विरुद्ध नारी की कथा भी नहीं है। यह फिल्म पूरी तरह से नारी विरुद्ध नारी की कथा है। हमारी फिल्म की हीरो एक नारी रज्जो (माधुरी दीक्षित) और विलेन एक नारी सुमित्रा (जूही चावला) है, पर मेरी यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही थी। मगर जब इस फिल्म के साथ जुड़ने के लिए माधुरी दीक्षित तैयार हुईं, तब कहीं दूसरे लोग हमारी इस फिल्म के साथ जुड़े। सबसे पहले अनुभव सिन्हा जुड़े, फिर सहारा मूवी स्टूडियो जुड़ा।

सेट पर माधुरी दीक्षित व जूही चावला के बीच अनबन थी?
किसने कहा? लोग बकवास कर रहे हैं। सेट पर माधुरी दीक्षित और जूही चावला के बीच बहुत अच्छी केमिस्ट्री रही।

आपकी फिल्म के चंद दिन पहले संपतलाल के ग्रुप पर आधारित डॉक्यूमेंट्री 'गुलाबी गैंग' भी रिलीज हुई है। क्या कहेंगे?
मुझे लगता है कि डॉक्यूमेंट्री बननी चाहिए। हमारे देश में डॉक्यूमेंट्री फिल्मों को लेकर कोई चर्चा नहीं होती है। वैसे संपत की 'गुलाबी गैंग' पर इससे पहले भी कुछ डॉक्यूमेंट्री बनी हैं। मैं तो चाहता हूं कि डॉक्यूमेंट्री जॉनर को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। मुझे पता चला है कि 'पीवीआर डायरेक्टर्स कट' इस डॉक्यूमेंट्री को सपोर्ट कर रहा है तो यह एक अच्छी बात है। मैं तो चाहूंगा कि दूसरी डॉक्यूमेंट्रीज को लोगों तक पहुंचने का मौका मिले।


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