रक्त के किरदार में कई शेड्स हैं : शीना शाहाबादी
सतीश कौशिक की फिल्म ‘तेरे संग’ से शीना शाहाबादी ने अपना बॉलीवुड करियर शुरू किया था। इसके बाद वे ‘फास्ट फॉरवर्ड’ में नजर आईं। अब वे अदि ईरानी और शिवा द्वारा निर्देशित ‘रक्त’ तथा कपिल शर्मा और सृष्टि आर्या की फिल्मों में भी नजर आएंगी। शीना की मां साधना सिंह भी अभिनेत्री हैं जो ‘नदिया के पार’ के लिए आज भी याद की जाती हैं। अपनी मां से प्रेरणा लेकर ही शीना भी फिल्मों में आई हैं। पेश है शीना से बातचीत :
‘रक्त’ में आपके किरदार के बारे में बताइए। यह ‘तेरे संग’ से कितना अलग है? ’रक्त’ में मेरे किरदार के कई शेड्स हैं। यह एक ऐसी लड़की का रोल है जिसे आंटी पाल-पोसकर बढ़ा करती है और उसे वो हर चीज मिलती है जो वह मांगती है। वह लड़की नहीं चाहती कि कोई उनके बीच आए। इसके लिए वह किसी को मार भी सकती है। मां की बात निकली है तो आपकी मां एक अभिनेत्री हैं। आपके पिता भोजपुरी के प्रसिद्ध निर्माता हैं। क्या यही वजह है कि फिल्म और अभिनय की दुनिया के प्रति आप आकर्षित हुईं? मैं इससे इंकार नहीं करूंगी। मैं जब पांच वर्ष की बच्ची थी, तभी मैंने सोच लिया था कि मुझे अभिनेत्री बनना है। 16 वर्ष की उम्र में मैं अपने आपको निखारने में लग गई थी। शुरुआत में मेरे माता-पिता मेरे निर्णय से आश्चर्यचकित हुए, लेकिन फिल्मों के प्रति मेरी दीवानगी की बात समझने में उन्हें देर नहीं लगी। मेरी मां ने मुझे पूरा सहयोग दिया, जबकि डैड ने ‘ओके-ओके’ रिएक्शन दिया। उन्होंने कहा ‘ठीक है, कर लो, जैसा तुम्हें ठीक लगे’। शुक्र है कि किसी ने मेरे निर्णय का विरोध नहीं किया। मैंने एक्टिंग कोर्स में प्रवेश लिया ताकि अभिनय की बारीकियां सीख सकूं। एक्टिंग क्लास से क्या सीखा? सीखने की इस प्रक्रिया में मैंने अपने आपको जाना। मैं अपने प्लस पाइंट्स से परिचित हुई। मुझे लगा कि भावना प्रधान और रोमांस को अच्छे तरीके से अभिव्यक्त कर सकती हूं। मुझे याद है कि एक्टिंग क्लास के दौरान मैं एक सीन कर रही थी, तभी मुझे मेरे सर ने रोक दिया और तुरंत मेरी मां को बुलाया। मैं नर्वस हो गई कि पता नहीं क्या बात हो गई। मेरी मां के पहुंचते ही उन्होंने मुझे दोबारा वो सीन करने के लिए कहा। मैंने फिर से वही सीन किया और समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है। जैसे ही सीन खत्म हुआ मेरे सर ने घोषणा कर दी कि मैं अब कैमरे का सामना करने के लिए तैयार हूं। उन्होंने मेरी मां से पूछा कि क्या उनका (सर का) निर्णय सही है। वह सीन मेरी मां के लिए लाइव शो रील की तरह था और मेरी मां के चेहरे ने सारी बात बयां कर दी। उनका सहमति देना मैं जिंदगी भर नहीं भूल पाऊंगी। क्या शूटिंग के दौरान भी आपने अपने अभिनय को संवारने में मदद ली? हां, मेरी मां का मुझे हमेशा सहयोग मिला। यदि मुझे किसी दृश्य को करने में दिक्कत महसूस होती तो वे बताती कि मैं किस तरीके से बेहतर कर सकती हूं। यदि कोई दृश्य मैं बेहतरीन तरीके से करती तो वे मेरी ज्यादा तारीफ न करते हुए सिर्फ इतना कहती कि मैंने अच्छा किया है और मुझे अब अगले दृश्य पर ध्यान देना चाहिए। मैं उनकी शाबाशी और आलोचना से खुश होती थी क्योंकि मेरे सामने एक ऐसा शख्स था जो ईमानदार और स्पष्ट था। हां, आलोचनाएं बुरी जरूर लगती थी। उदाहरण के लिए ‘तेरे संग’ की शूटिंग के दौरान किसी ने मेरे वजन को लेकर टिप्पणी कर दी। मुझे इसका बुरा लगा लेकिन मेरी मां ने कहा कि आलोचनाओं को मुझे चुनौती के रूप में लेना चाहिए। उन्होंने कहा ‘चलो, अब उसने ऐसा कहा है तो पतला होकर दिखाओ।‘ मैंने वर्कआउट किया और वापस अपने शेप में आ गई।