पिछले दस साल में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 28 गुणा बढ़कर 19.20 अरब डॉलर तक पहुँच गया है। वर्ष 2001 से 2010 तक भारत से चीन को निर्यात में जहाँ 14 गुणा वृद्धि दर्ज की गई वहीं चीन से भारत में होने वाला आयात 20 गुणा तक बढ़ गया।
वाणिज्य एवं उद्योग मंडल पीएचडी चैंबर ने इस स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि चीन के साथ बढ़ते व्यापार घाटे को नियंत्रित करने के लिए भारत को अपनी निर्यात संवर्धन गतिविधियों में तेजी लानी चाहिए। उद्योग मंडल ने कहा है कि चीन को निर्यात होने वाली वस्तुओं में विविधता के साथ-साथ निर्यात बढ़ाने के भी उपाय किए जाने चाहिए।
उद्योग मंडल के अनुसार वर्ष 2001 से 2010 के बीच चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 67 करोड डॉलर से बढ़कर 19.2 अरब डॉलर तक पहुँच गया। वर्ष 2001 में देश से चीन को जहाँ 0.83 अरब डॉलर का निर्यात किया गया वहीं वर्ष 2010 तक यह बढ़कर 11.61 अरब डॉलर हुआ। इसमें 14 गुणा वृद्धि हुई जबकि इस अवधि में चीन से होने वाला आयात 1.50 अरब डॉलर से बढ़कर 30.82 अरब डॉलर तक पहुँच गया। यह वृद्धि 20 गुणा रही।
देश के कुल आयात में चीन से होने वाले आयात का हिस्सा जहाँ पहले करीब तीन प्रतिशत था दस साल में वह करीब 11 प्रतिशत तक पहुँच गया जबकि चीन के कुल आयात में भारत से होने वाले आयात का हिस्सा पहले जहाँ 1.86 प्रतिशत पर था वह 2010 में 6.49 प्रतिशत तक पहुँच पाया।
भारत से चीन को होने वाले निर्यात में लौह अयस्क, स्लैग एंड एश, कीमती पत्थर, आभूषण, आर्गनिक केमिकल्स, कपास और लोहा एवं इस्पात आदि प्रमुख हैं। पीएचडी मंडल ने कहा है कि चीन के साथ व्यापार बढ़ाने के लिए भारत को रोड शो, प्रदर्शनियों, नए उत्पाद जारी करना और व्यापार प्रतिनिधिमंडलों के आवागमन पर ध्यान देना चाहिए। (भाषा)