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छह नामों से जानी जाती थीं मीना कुमारी

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अपने संजीदा अभिनय से दर्शकों के दिलों को छू लेने वाली महान अदाकारा मीना कुमारी रील लाइफ में 'ट्रेजेडी क्वीन' के नाम से मशहूर हुईं, लेकिन रियल लाइफ में वह छह नामों से जानी जाती थीं।


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मुंबई मे एक अगस्त 1932 को एक मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में मीना कुमारी का जब जन्म हुआ तो पिता अलीबख्श और मां इकबाल बानो ने उनका नाम रखा 'माहजबीं'। बचपन के दिनों में मीना कुमारी की आंखें बहुत छोटी थी इसलिए परिवार वाले उन्हें चीनी कहकर पुकारा करते थे। ऐसा इसलिए कि चीनियों की आंखें छोटी हुआ करती हैं।

लगभग चार वर्ष की उम्र में ही मीना कुमारी ने फिल्मों में अभिनय करना शुरू कर दिया। प्रकाश पिक्चर के बैनर तले बनी फिल्म लेदरफेस में उनका नाम रखा गया बेबी मीना। इसके बाद मीना ने 'बच्चों का खेल' में बतौर अभिनेत्री काम किया। इस फिल्म में उन्हें मीना कुमारी का नाम दिया गया।

मीना कुमारी को फिल्मों में अभिनय करने के अलावा शेरो-शायरी का भी बेहद शौक था। इसके लिए वह नाज उपनाम का इस्तेमाल करती थीं। मीना कुमारी के पति कमाल अमरोही प्यार से उन्हें मंजू कहकर बुलाया करते थे। अपने संजीदा अभिनय से दर्शकों के दिलों में खास पहचान बनाने वाली मीना कुमारी ने 31 मार्च 1972 को दुनिया को अलविदा कह दिया।

मीना कुमारी को अनाथालय छोड़ आए थे पिता
एक अगस्त 1932 का दिन था। मुंबई में एक क्लीनिक के बाहर मास्टर अली बक्श नाम के एक शख्स बड़ी बेसब्री से अपनी तीसरी औलाद के जन्म का इंतजार कर रहे थे। दो बेटियों के जन्म लेने के बाद वह इस बात की दुआ कर रहे थे कि अल्लाह इस बार बेटे का मुंह दिखा दे। तभी अंदर से बेटी होने की खबर आई तो वह माथा पकड़ कर बैठ गए।

मास्टर अली बख्श ने तय किया कि वह बच्ची को घर नहीं ले जाएंगे और वह बच्ची को अनाथालय छोड़ आए, लेकिन बाद में उनकी पत्नी के आंसुओं ने बच्ची को अनाथालय से घर लाने के लिए उन्हें मजबूर कर दिया। बच्ची का चांद-सा माथा देखकर उसकी मां ने उसका नाम रखा 'माहजबीं', बाद में यही माहजबीं फिल्म इंडस्ट्री में मीना कुमारी के नाम से मशहूर हुईं।

अभिनेत्री नहीं होती तो शायर होती
हिंदी फिल्मों में अपने दमदार और संजीदा अभिनय से दर्शकों को भावविभोर करने वाली अदाकारा मीना कुमारी यदि अभिनेत्री नहीं होती तो शायर के रूप में अपनी पहचान बनाती।

हिंदी फिल्मों के जाने-माने गीतकार और शायर गुलजार से एक बार मीना कुमारी ने कहा था 'ये जो एक्टिग मैं करती हूं उसमें एक कमी है। ये फन, ये आर्ट मुझसे नहीं जन्मा है। ख्याल दूसरे का, किरदार किसी का और निर्देशन किसी का। मेरे अंदर से जो जन्मा है, वह लिखती हूं। जो मैं कहना चाहती हूं वह लिखती हूं।'

मीना कुमारी ने अपनी वसीयत में अपनी कविताएं छपवाने का जिम्मा गुलजार को दिया जिसे उन्होंने 'नाज' उपनाम से छपवाया। सदा तन्हा रहने वाली मीना कुमारी ने स्वरचित एक गजल के जरिये अपनी जिंदगी का नजरिया पेश किया है :
चांद तन्हा है आसमां तन्हा
दिल मिला है कहां कहां तन्हा
राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा

फिल्म सफर
वर्ष 1952 में मीना कुमारी ने फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही के साथ शादी कर ली। वर्ष 1962 मीना कुमारी के सिने करियर का अहम पड़ाव साबित हुआ। इस वर्ष उनकी आरती, मै चुप रहूंगी और साहिब बीबी और गुलाम जैसी फिल्में प्रर्दशित हुई। इसके साथ ही इन फिल्मों के लिए वह बतौर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री फिल्म फेयर पुरस्कार के लिए नामित की गई। यह फिल्म फेयर के इतिहास में पहला ऐसा मौका था जहां एक अभिनेत्री को फिल्म फेयर के तीन नॉमिनेशन मिले थे।

वर्ष 1964 में मीना कुमारी और कमाल अमरोही की विवाहित जिंदगी मे दरार आ गई। इसके बाद वे दोनों अलग-अलग रहने लगे। कमाल अमरोही की फिल्म 'पाकीजा' के निर्माण में लगभग चौदह वर्ष लग गए। कमाल अमरोही से अलग होने के बावजूद मीना कुमारी ने शूटिंग जारी रखी क्योंकि उनका मानना था कि पाकीजा जैसी फिल्मों मे काम करने का मौका बार-बार नहीं मिल पाता है।

मीना कुमारी के करियर में उनकी जोड़ी अशोक कुमार के साथ काफी पसंद की गई। मीना कुमारी को उनके बेहतरीन अभिनय के लिए चार बार फिल्म फेयर के सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार से नवाजा गया है। इनमें बैजू बावरा, परिणीता, साहिब बीबी और गुलाम तथा काजल शामिल हैं।

लगभग तीन दशक तक अपने संजीदा अभिनय से दर्शकों के दिल पर राज करने वाली हिन्दी सिने जगत की महान अभिनेत्री मीना कुमारी 31 मार्च 1972 को सदा के लिए अलविदा कह गई। मीना कुमारी के करियर की अन्य उल्लेखनीय फिल्मों में आजाद, एक ही रास्ता, यहूदी, दिल अपना और प्रीत पराई, कोहीनूर, दिल एक मंदिर, चित्रलेखा, फूल और पत्थर, बहू बेगम, शारदा, बंदिश, भीगी रात, जवाब, दुश्मन आदि शामिल हैं।(वार्ता)

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