राजेश खन्ना : ऊपर आका नीचे काका
वर्तमान में शाहरुख खान को रोमांस का बादशाह कहा जाता है। लड़कियां शाहरुख की एक झलक पाकर दीवानी हो जाती हैं। जिन लोगों ने राजेश खन्ना की दीवानगी का आलम देखा है वे बताते हैं कि शाहरुख की लोकप्रियता में पांच का गुणा कर दीजिए, इतनी प्रसिद्धी थी राजेश खन्ना की। रोमांस के राजेश खन्ना शहंशाह थे और लड़कियां राजेश नहीं मिले तो उनकी सफेद कार को ही चूमकर गुलाबी कर देती थी। खून से कई लड़कियों ने उन्हें हजारों खत लिखे। फोटो से शादी कर ली। जांघ पर काका के नाम का टैटू बना लिया। काका की आंख मिचमिचाने और गर्दन टेढ़ी करने की अदा लड़कियों के दिल को घायल कर देती थी। काका का बतौर सुपरस्टार राजपाट थोड़े समय ही चला, लेकिन जो लहर उन्होंने पैदा की थी वो कोई और सितारा आज तक पैदा नहीं कर पाया। एक कहावत है, शिखर पर पहुंचने से ज्यादा कठिन है वहां टिके रहना। राजेश खन्ना के लिए ये बात बेहद सटीक बैठती है। काका चोटी पर तो पहुंच गए, लेकिन चोटी पर जो फिसलन मौजूद थी, उस पर वे ज्यादा दिनों तक पैर जमाए खड़े नहीं रह पाए। हिंसक फिल्मों की आंधी और अमिताभ का बच्चन उदय होना इतना तेजी से घटा कि जब तक काका संभले, वे चोटी से फिसल चुके थे। लेकिन इससे ही काका का महत्व कम नहीं हो जाता है। रोमांटिक फिल्मों की बात निकलती है तो काका के नाम का उल्लेख जरूर होता है। 29
दिसंबर 1942 को अमृतसर में जन्मे राजेश खन्ना बहुत सम्पन्न परिवार से थे। वे गोद लिए हुए बालक थे, इसलिए बचपन से उन्हें जरूरत से ज्यादा लाड़-प्यार मिला। शायद इसीलिए वे थोड़े बिगड़ैल थे। एक टैलेंट हंट के जरिये काका फिल्म इंडस्ट्री में दाखिल हुए और उनकी पहली फिल्म ‘आखिरी खत’ 1966 में रिलीज हुई। अपनी शुरुआती फिल्मों के जरिये काका ने बता दिया कि उनमें अभिनय की समझ है, लेकिन सुपरसितारे की पदवी उन्हें ‘आराधना’ ने दिलाई। युवा राजेश खन्ना पर फिल्माए गए गीत ‘मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू’ ने पूरे देश में धूम मचा दी। बॉक्स ऑफिस पर यह फिल्म ब्लॉकबस्टर साबित हुई। युवा पीढ़ी ने इस नए सितारे को हाथो-हाथ लिया। रातोंरात वे नंबर वन के सितारे बन गए। इसके बाद तो काका और सुपरहिट फिल्म एक दूसरे के पर्याय बन गए। दो रास्ते, सफर, कटी पतंग, सच्चा झूठा, द ट्रेन, आन मिलो सजना, हाथी मेरे साथी, अमर प्रेम, आनंद, बावर्जी, दाग, नमक हराम, आपकी कसम, रोटी जैसी फिल्मों ने निर्माताओं को मालामाल कर दिया। 1970 से 1975 तक राजेश खन्ना को फिल्म इंडस्ट्री भगवान मानने लगी। कहावत बन गई कि ऊपर आका, नीचे काका। खन्ना साहब के घर के बाहर निर्माताओं की लाइन लगी रहती थी। उनके दरबार में चमचे सुबह शाम हाजिरी दिया करते थे। काका की इतनी डिमांड थी कि एक बार पाइल्स के ऑपरेशन के लिए उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा तो आसपास के कमरे निर्माताओं ने बुक कर लिए ताकि वे काका को अपनी फिल्म की कहानी सुना सके। इस बात से राजेश खन्ना पूरी तरह वाकिफ थे कि उनकी लोकप्रियता किस मुकाम तक पहुँच चुकी है... और वे स्वयं को आत्ममुग्ध होने से नहीं बचा पाए। सफलता के शीर्ष पर यदि कोई आपका सबसे बड़ा शत्रु होता है तो वह और कोई नहीं आप ही होते हैं। यही बात काका के लिए नुकसानदेह रही। इस बात का जब उन्हें पता चला तब तक वह दौर पूरी तरह से खत्म हो चुका था। जिस ग्लैमर को उन्होंने हासिल किया वही उनके लिए नुकसानदेह साबित हुआ। अपनी जीवनशैली के कारण भी वे काफी विवादों में रहे। इसी कारण उन्हें अच्छी फिल्में मिलना बंद हो गईं। नाम के नशे ने उनके काम पर असर डाला। वे जब कहीं छुट्टियाँ मनाने जाते थे तो अपने साथ दोस्तों की फौज लेकर जाते थे। उन्हें हमेशा लोगों से घिरा रहना और आकर्षण का केन्द्र बना रहना पसंद था। राजीव गाँधी के कहने पर राजेश खन्ना ने राजनीति में उतरने का मन बनाया। 1991 के आम चुनाव में नई दिल्ली सीट से वे लालकृष्ण आडवाणी से मात्र डेढ़ हजार वोटों से हारे। जब आडवाणीजी ने गाँधीनगर सीट अपने पास रखते हुए नई दिल्ली सीट छोड़ दी, तो उप चुनाव में राजेश खन्ना भाजपा के शत्रुघ्न सिन्हा को हराकर संसद पहुँच गए। 1996 तक वे सांसद रहे पर राजनीति उन्हें रास नहीं आई। इस बीच उनकी फिल्में भी आईं पर कुछ सफलता नहीं मिली। रोमांस राजेश खन्ना के जीवन का सबसे रोचक पहलू है। उनकी जिंदगी में मुख्यतः तीन महिलाओं का प्रभाव रहा। पहले उनका अफेयर अंजू महेंद्रू के साथ रहा। खुद अंजू के शब्दों में,"हमारे रिश्ते में हमेशा कन्फ्यूजन रहा। राजेश को अल्ट्रा मॉडर्न लड़कियाँ आकर्षित करती थीं। पर अगर मैं कभी स्कर्ट पहनती थी, वे कहते थे तुम साड़ी क्यों नहीं पहनती! और मैं साड़ी पहनती थी तो कहते थे तुम भारतीय नारी क्यों बन रही हो! उनको बिलकुल पसंद नहीं था कि कोई उनकी आलोचना करे और मैं उनकी सबसे बड़ी आलोचक थी। मुझे अगर कोई बात बुरी लगती थी तो मैं उनके सामने ही कह देती थी। एक दौर ऐसा था जब उनकी जिंदगी मेरे इर्दगिर्द सिमटी हुई थी। मैं कहाँ हूँ और क्या कर रही हूँ, इसकी उनको पूरी जानकारी चाहिए होती थी।"अंजू से संबंध टूटने के बाद राजेश खन्ना ने 1973 में ‘बॉबी’ से सनसनी बनीं डिम्ल से शादी कर ली। शीघ्र ही इस संबंध में दरार पड़ने लगी। डिम्पल के शब्दों में ‘मैं वैसा ही करती थी जैसा उन्हें पसंद था पर इसके लिए कभी उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा। उनके आसपास के लोग उनके चमचों की तरह थे, उनके साथ भी मुझे तालमेल बैठान पड़ा। यह सीढ़ी चढ़ने जैसा था पर आप कैसे चढ़ रहे हैं, इससे उन्हें कोई मतलब नहीं था। वे अपने पर्स और दिल दोनों के मामले में खुले थे। उनके साथ जिंदगी उतार-चढ़ाव से भरी रही। टीना मुनीम के साथ राजेश खन्ना की ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ काफी चर्चित रही थी। राजेश के बारे में टीना के शब्द थे, ‘हर झगड़े के बाद वे मुझे गिफ्ट से लाद देते थे, वे हमेशा मुझे लुभाते रहते थे।‘ राजेश खन्ना कभी समय के साथ ढल नहीं पाए। वे फिर परदे पर दमदार वापसी करने की कोशिश करते रहे, लेकिन उन्हें वैसे रोल नहीं मिल पाए। कुछ समय पहले उनकी एक फिल्म ‘वफा’ भी आई थी। वापसी के बाद फिर कैमरे का सामना करने की बात पर काका का कहना था, ‘मुझे यह बहुत मुश्किल लग रहा था पर जब मैं कैमरे के सामने खड़ा हुआ तो सब आसान हो गया। वाकई इस दुनिया में शो बिजनेस के जैसा दूसरा बिजनेस नहीं है।‘ जो जलवा काका ने जमाने को दिखाया था, वह अब वापस तो नहीं आ सकता पर उस दौर में जो स्टारडम उन्हें हासिल हुआ वह अद्भुत था।