सनी देओल और राहुल रवैल ने बतौर अभिनेता और निर्देशक कई फिल्में साथ की हैं। जिसमें से एक बेहतरीन फिल्म है 'अर्जुन' जो 1985 में रिलीज हुई थी। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर खास सफल नहीं हुई थी, लेकिन बाद में इसे खूब देखा और सराहा गया। यहां तक कि इस मूवी के तमिल, तेलुगु और कन्नड़ संस्करण भी बने। फिल्म तकनीकी रूप से भी खासी मजबूत थी। कई दृश्य इतने उम्दार तरीके से फिल्माए गए कि इनकी खूब चर्चा हुई। मणिरत्नम जैसे निर्देशक ने भी इन दृश्यों के फिल्मांकन को सराहा।
अर्जुन को जावेद अख्तर ने लिखा था और फिल्म के हीरो में में एंग्री यंग मैन वाला अवतार नजर आता है जो उन्होंने सलीम के साथ मिलकर अमिताभ बच्चन की फिल्मों के लिए लिखा था। सत्तर के दशक का एंग्री यंग मैन सिस्टम में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा था और इसे अस्सी के मध्य में नए कलेवर के साथ जावेद ने फिर दोहराया।
अर्जुन का अर्जुन, यानी सनी देओल द्वारा अभिनीत किरदार भी समाज में फैले भ्रष्टाचार और बेरोजगारी से परेशान है। युवा है, डिग्री है, लेकिन नौकरी नहीं है। हर जगह झिड़की सुननी पड़ती है चाहे घर हो या बाहर। उसके जैसे निठल्ले लड़के दिन भर समय काटने के लिए चाय की दुकानों पर बैठे रहते हैं। सभी कुंठित हैं, गुस्सा हैं क्योंकि भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और शोषण के चलते वे कुछ नहीं कर पा रहे हैं।
अर्जुन अपनी सौतेली मां के तानों से भी परेशान है। अपने बूढ़े पिता का नौकरी करना भी उसे रास नहीं आता क्योंकि मालिक खूब डांटता रहता है, लेकिन वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता।
अर्जुन अनजाने में स्थानीय गैंगस्टरों के साथ उलझ जाता है जो स्थानीय सांसद से जुड़े होते हैं। दूसरा प्रतिद्वंद्वी राजनेता इस मामले में अर्जुन की मदद करता है। जल्दी ही अर्जुन और उसके दोस्त राजनीति के गंदगी से वाकिफ हो जाते हैं जब उन्हें पता चलता है कि उन्हें राजनेताओं द्वारा अपने स्वार्थ के लिए मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
जावेद अख्तर की कहानी दमदार है। आम होते हुए भी यह खास लगती है। अर्जुन जब आक्रोश से खड़ा होता है तो दर्शकों की मुठ्ठियां भी तन जाती है। जावेद की कहानी को राहुल रैवल का कसा निर्देशन और बाबा आजमी की सिनेमाटोग्राफी गहराई देती है।
एक सीन है जिसमें बारिश हो रही है। चारों ओर छाते ही छाते नजर आते हैं। इसमें गुंडे हाथ में तलवार लिए किसी का पीछा कर रहे हैं। बाबा आजमी ने यह सीन कमाल का फिल्माया है। इसी तरह कैरम खेल रहे युवकों का सीन बहुत अच्छा फिल्माया और एडिट किया गया है। स्ट्राइकर जब कैरम के चारों ओर लगी चौखट से टकराता है और सीन में कट लगते हैं वो पर्दे पर खूबसूरती के साथ दिखाया गया है।
निर्देशक के रूप में राहुल अपनी छाप छोड़ते हैं। उन्होंने अर्जुन का किरदार इस तरह से विकसित किया है मानो अर्जुन अपना सा ही लगता है। इससे दर्शक अर्जुन के गम और खुशी को महसूस करते हैं और इस तरह से वे उससे जुड़ जाते हैं। एक्शन और इमोशन का उन्होंने मिश्रण अच्छी तरह से किया है।
फिल्म में कई सशक्त कलाकार हैं जो जावेद और राहुल के काम को आसान और बेहतर करते हैं। सनी देओल ने लीड रोल अदा किया है और अर्जुन के रूप में वे खूब जमे हैं। शर्ट के खुले ऊपरी बटन में ढीली बंधी टाई में वे हैंडसम लगे हैं। उनका एक्सप्रेशन लैस चेहरा इस रोल के लिए वरदान साबित हुआ। एक युवा के कुंठा को उन्होंने बखूबी निभाया। एक्शन सीन में तो वे सधे हुए हैं। हीरोइन के रूप में डिम्पल कपाड़िया के पास ज्यादा अवसर नहीं थे। हीरोइन होना चाहिए इसलिए रख दी गई।
प्रेम चोपड़ा, अनुपम खेर, परेश रावल, एके हंगल, सुप्रिया पाठक, शशिकला, शफी इनामदार, राजा बुंदेला, अन्नू कपूर, सत्यजीत दमदार कलाकार हैं और सभी ने अपना शत-प्रतिशत योगदान दिया है।
संगीत आरडी बर्मन का है। ममैया केरो मामा खूब हिट रहा था। इसका फिल्मांकन मुंबई की सड़कों पर किया गया है और देखने में यह अच्छा लगता है। अन्य गाने सामान्य है। आरडी का कमाल बैकग्राउंड म्यूजिक में सुनने को मिलता है। एक्शन सीन में एक नए तरह का संगीत सुनने को मिला था। बाद में यही संगीत कई फिल्मों में उपयोग किया गया।
अर्जुन को रिलीज हुए वर्षों हो गए हैं, लेकिन इसकी कहानी और मेकिंग आज भी प्रासंगिक लगते हैं। सनी के करियर की बेहतरीन फिल्मों में से यह एक है।
* अर्जुन (1985)
* निर्माता : करीम मोरानी, सुनील सूरमा
* निर्देशक : राहुल रवैल
* संगीत : आर.डी. बर्मन
* लेखक : जावेद अख्तर
* सिनेमाटोग्राफी : बाबा आजमी
* कलाकार : सनी देओल, डिम्पल कपाड़िया, प्रेम चोपड़ा, अनुपम खेर, परेश रावल, एके हंगल, सुप्रिया पाठक, शशिकला, शफी इनामदार, राजा बुंदेला, अन्नू कपूर, सत्यजीत