भारत रत्न से सम्मानित स्वर कोकिला लता मंगेशकर बचपन में मशहूर गायक केएल सहगल से इतना प्रभावित थीं कि वे बड़ी होकर उनसे शादी करना चाहती थीं। सहगल साहब से मिलने का उन्हें कभी सौभाग्य नहीं मिला, पर उन्होंने उनकी याद में उनकी अँगूठी अपने पास जरूर सहेज कर रखी।
अपने पिता की मौत के बाद परिवार का खर्च चलाने के लिए पहले फिल्मों में अभिनय किया। गाने की मिठास अपनी नानी के लोकगीतों से मिली तथा सफलता का श्रेय ईश्वर के बाद अपने पिता को ही देती रहीं। उनका नाम 'लता' रखे जाने के पीछे भी एक कहानी है। यह नाम पहले उनकी बड़ी वहन का था, जो शैशव काल में चल बसी थी।
28 सितंबर 1929 को मध्यप्रदेश के इन्दौर में जन्मी और देश के करोड़ों लोगों के दिल में अपनी आवाज के जादू से घर बना चुकीं लता मंगेशकर के जीवन के कई जाने-अनजाने और अनछुए पहलू मुंबई के प्रसिद्ध पत्रकार हरीश भीमानी ने अपनी पुस्तक में कैद किए हैं।
वाणी प्रकाशन ने लता के 80वें जन्मदिन पर यह पुस्तक हिन्दी में प्रकाशित की थी। पुस्तक के अनुसार छह साल की उम्र में लता ने सहगल की पहली फिल्म जो देखी थी, वह थी चंडीदास (1934)। घर आकर उन्होंने ऐलान किया कि मैं बड़ी होकर सहगल से शादी करूँगी। सहगल से वे कभी नहीं मिल पाईं, पर उनकी मृत्यु के बाद लता उनके घर से उनकी एक अँगूठी माँग लाईं और उसे संजोकर रखे रहीं।
हृदया और हेमा था नाम
लता मंगेशकर का बचपन का राशि नाम 'हृदया' था, पर पालने का नाम 'हेमा' था, लेकिन उनकी माँ दीनानाथ मंगेश्कर की दूसरी पत्नी ने कहा कि जब उन्हें लड़का होगा तो उसका नाम 'हृदयनाथ' रख लेंगे और इसे तो मैं लता ही कहूँगी।
पुस्तक के अनुसार लता मंगेशकर दीनानाथ मंगेशकर की पहली पुत्री नहीं थीं। दीनानाथ की पहली पुत्री प्रथम पत्नी मंगेशकर से हुई, जो शैशव काल में ही चल बसी। उसका नाम लता था। लता मंगेशकर का बचपन का राशि नाम 'हृदया' था, पर पालने का नाम 'हेमा' था, लेकिन उनकी माँ दीनानाथ मंगेश्कर की दूसरी पत्नी ने कहा कि जब उन्हें लड़का होगा तो उसका नाम 'हृदयनाथ' रख लेंगे और इसे तो मैं लता ही कहूँगी।
दीनानाथ के कुल देवता 'मंगेश' थे और वे गोवा के मंगेशी गाँव के थे, इसलिए मंगेशकर नाम पड़ा।
लता ने पहला हिन्दी गीत 1944 में मराठी फिल्म 'गजाभाऊ' में गाया था। इसमें उन्होंने अभिनय भी किया था। यह एक देशभक्ति गीत था-माता एक सपूत की दुनिया बदल दे तू... हिन्दी फिल्म के लिए पहला गीत 'आपकी सेवा में' नामक फिल्म में गाया था। इसके निर्माता वसंत जोगलेकर थे, जिन्होंने 'गजाभाऊ' बनाई थी।
पुस्तक के अनुसार लता के जन्म के समय मास्टर दीनानाथ मंगेशकर सफलता के शिखर पर थे। वे मराठी रंगमंच के सबसे लोकप्रिय गायक अभिनेता माने जाते थे। उनका बनवाया तेरह कमरों और विशाल बरामदे वाला दोमंजिला मकान सांगली के जिस रास्ते पर था, आज उसका नाम 'दीनानाथ रास्ता' है।
उन दिनों उनके एक नाटक के निर्माण पर कई हजार रुपए खर्च होते थे, जो आज के हिसाब से दो-ढाई लाख रुपए से अधिक बनते हैं और नाटकों के टिकट की कीमत पाँच रुपए थी। लता जब चार वर्ष की थीं तो इन्दौर राज्य के शासक के महल में शहनाई बजने की आवाज सुनकर पिता से शहनाई की हठ करने लगीं, पर पिता ने शहनाई लाने की बजाय उन्हें बंदिश सुनाई। यहीं से उनके भीतर संगीत जा बसा।
लता के शब्दों में ''मेरी पहली यादें गुजरात के थालनेर नाम के छोटे से गाँव की हैं। वहाँ मेरी नानी का छोटा सा घर था, जो मुझे बहुत अच्छा लगता था। वहाँ मुझे ज्यादा रहने को तो मिला नहीं, लेकिन जब कभी जाती तो मुझे नानी माँ से गाने सुनने में बहुत मजा आता था।नानी माँ रात को कहानियाँ भी सुनाती थीं, जिनमें बीच-बीच में गीत आते थे।''
खुद को मानती हैं आधी गुजरातन
लताजी आज भी खुद को आधी गुजरातन मानती हैं। उन्होंने सात साल की उम्र में 'सौभद्र' नामक नाटक में नारद की भूमिका निभाई थी, क्योंकि नारद की भूमिका निभाने वाला अभिनेता बीमार हो गया। उसमें लता ने एक गाना भी गाया था, जिसे दर्शकों ने काफी सराहा था।
पिता दीनानाथ की मृत्यु के बाद नवयुग कंपनी की मराठी फिल्म 'पहली मंगलागौर' में लता ने पहली बार फिल्म में अभिनय किया और एक मराठी गाना भी गाया था।
लता के बारे में महान शास्त्रीय गायक उस्ताद बड़े गुलाम अमीर खान ने कहा था-ससुरी कभी बेसुरी नहीं होती, यह अल्लाह की देन है। विश्व प्रसिद्ध वायलिन वादक येहूदी मेन्युहीन ने कभी कहा था-शायद मेरी वायलिन लता की ही तरह बन सके।