मधुबाला! भारतीय रजतपट की वीनस! वीनस यानी शुक्र। आकाश का सबसे अद्वितीय सितारा। ज्योतिष शास्त्र कहता है कि शुक्र कलात्मक गतिविधियों, सौंदर्य और भौतिक सुख-समृद्धि का प्रतीक है। रूप की यह अनुपम रोशनी इतनी प्रखर और पवित्र बनकर चमकी कि उसे भारतीय सिनेमा का शुक्र-तारा कहा गया। मधुबाला की शहदीया सौंदर्य, कच्चे दूध जैसी शुभ्र धवल मुस्कान, बिना काजल की कोरी आँखें और नर्म मधुर चेहरे ने सुंदरता का अपूर्व प्रतिमान गढ़ा है। एक ऐसा परिपूर्ण सौंदर्य, जो परिभाषाओं से परे हैं, मिसालों से जुदा। आज वह नहीं है। कहीं नहीं है, किंतु फिर भी है, असंख्य धड़कनों में से एक मीठा अहसास और कई जोड़ी आँखों का सबसे प्रिय सपना। सौंदर्य के समस्त मानदंड जिसकी सुंदरता और सादगी से ही आरंभ होते हैं, उस अभिराम अप्रतिम अमर तारिका को समर्पित।
रुपहले परदे पर रूपवती अभिनेत्रियों की कमी कभी नहीं रही किंतु संगमरमर पर तराशे शफ्फाफ ताजमहल सी मधुबाला की बराबरी कोई नहीं कर सकी।
संगमरमर का तराशा शफ्फा़फ बदन
देखने वाले तुझे ताजमहल कहते हैं।
मधुबाला के गुजरने के सालों बाद भी उनका सौंदर्य निर्विवाद रूप से अतुलनीय माना गया है। बीच के वर्षों में जब कोई भी अभिनेत्री अपने रंग-रूप से दर्शकों पर छाई तब उसकी तुलना मधुबाला के सौंदर्य को मानकर रखकर की गई।
संपूर्णता में इस देश के सिनेमा को दूसरी मधुबाला कभी नहीं मिल सकती इसलिए कभी किसी अभिनेत्री का रंग-रूप उससे मिलाया गया, कभी आँखें, कभी मुस्कान और कभी सुघड़ नाक। मधुबाला के समकालीन कलाकारों, निर्देशकों ने हमेशा कहा है कि वास्तव में जितनी खूबसूरत थीं, कैमरा उसका दो प्रतिशत ही पकड़ सका है। एक अनस्पर्शित सुकोमल फूल जैसी मधुबाला के चाहने वालों में निरंतर वृद्धि हुई है, जबकि समय बीतने के साथ फिल्म कलाकारों के प्रति क्रेज घटता है। मधुबाला इस संबंध में अपवाद कही जा सकती हैं।
मधुबाला से पूर्व भी कई रूपसियाँ आईं और उसके बाद भी, लेकिन अनिंद्य सुंदरी मधुबाला की खिली ताजगी, चपल थरथराते नेत्र, सुगठित रेशमी स्निग्ध देह और कोमल पाँखुरी से लरजते होंठ की स्मृति मात्र से दर्शक आज भी सुगंध से भर उठते हैं।
संदल से महकती हुई पुरकैफ हवा का/झोंका कोई टकराए तो लगता है कि तुम हो। नरगिस, सुरैया, नूरजहाँ से लेकर हेमा, रेखा, श्रीदेवी, माधुरी और ऐश्वर्या तक सबकी तुलना मधुबाला से की गई, लेकिन संपूर्ण सौंदर्य और कुशल अभिनय के संयोजन के साथ एक बेहद पवित्र सादगी का जो मिश्रण मधुबाला में था, वह इनमें कहीं दिखाई नहीं दिया।
दरअसल, संपूर्ण सौंदर्य जन्म नहीं लेता, अवतरित होता है, घटित होता है। मधुबाला एक महकती अव्यक्त कविता है जिसके विषय में लिखना हो, तो खुद एक कविता बनना पड़ता है। मधुबाला भारतीय मानस के अत्यंत निकट आई लेकिन हम उनके कितने निकट जा सके यह प्रश्न जटिल है। अलौकिक सौंदर्या ने जिन त्रासदियों को झेलकर स्वार्थी दुनिया को विदा कहा, उससे जाहिर है कि रिमझिम फुहारों जैसी तिर्यक मुस्कान वाली मधुबाला को कोई नहीं समझ सका।
जब शाख कोई हाथ लगाते ही चमन में
शर्माए, लचक जाए, तो लगता है कि तुम हो
ओढ़े हुए तारों की चमकती हुई चादर
नदी कोई बल खाए, तो लगता है कि तुम हो।
किसी शोख श्वेत वनहंसिनी-सी मधुबाला के दैदीप्य व्यक्तित्व का ही जादू था कि पर्दे पर उनकी पहली झलक के साथ थियेटर केसर की महक से सराबोर हो जाता था। मधुबाला का मुस्कुराना गुलाल होता था और शर्माना गुलाब।
अभिनेत्रियों के सुकुमार पुष्पों में चंपा, केतकी, कचनार, पलाश और चमेली तो आसानी से मिल जाए,गे लेकिन नहीं मिलेगा वह फूल जो अलभ्य है, दुर्लभ है। वह ब्रह्मकमल है। उसकी स्मृति मात्र मानस में सैकड़ों मयूरपंख लहलहा उठे, वह मधुबाला ही ब्रह्मकमल है। क्या अब भी यह प्रश्न शेष है कि सबसे सुंदर कौन?
गोरी इस संसार में मुझको
ऐसा तेरा रूप लगे,
जैसे कोई दीप जला हो,
घोर अँधेरे जंगल में।
बेबी मुमताज
वह प्रेम दिवस था। 14 फरवरी 1933। दिल्ली में पठान अताउल्लाह खाँ के यहाँ तीसरी बेटी ने जन्म लिया। सुकोमल, कच्चे फूल-सी दुग्धवर्णी बिटिया का नाम रखा मुमताज जहाँ।
पेशावर (पाकिस्तान) के रहने वाले गर्ममिजाज पठान अताउल्लाह खाँ सरकारी तनख्वाह तीन बच्चियों के पिता को पर्याप्त नहीं लग रही थी। एक दिन किसी काम से मुंबई आए तो नन्ही मुमताज भी साथ थी। 6 वर्षीय मुमताज को वे पुराना सागर स्टूडियो दिखाने ले गए। स्टूडियो का रंगबिरंगा वातावरण नन्ही आँखों का आकर्षण बन गया। दिल्ली आकर नृत्य और संगीत को आत्मसात करने का मन बनाया। इस कौशल का आरंभिक सुफल यह रहा कि दिल्ली आकाशवाणी में अवसर मिल गया। उस समय आकाशवाणी में बच्चों के कार्यक्रम संगीतकार खुर्शीद अनवर ('निशाना' और 'सिंगार') प्रस्तुत करते थे। किसी काम से संगीतकार मदनमोहन के पिता रायबहादुर चुन्नीलाल भी दिल्ली आए। बच्चों के कार्यक्रम में दमकती अप्सरा-सी मुमताज ने उन्हें प्रभावित किया।
वे बॉम्बे टॉकीज के जनरल मैनेजर थे और तब बॉम्बे टॉकीज में 'बसंत' फिल्म की तैयारी चल रही थी। अभिनेता उल्हास और मुमताज शांति अभिनीत इस फिल्म के लिए एक छोटी-सी लड़की की तलाश थी। उन्होंने मुमताज को मालकिन देविका रानी से मिलवाया। पहली नजर में ही देविका रानी ने मुमताज का चयन कर लिया। एक सौ पचास रुपए महीने पर मुमताज ने फिल्म 'बसंत' में एक ऐसी बालिका का किरदार निभाया, जो अपने अलग हुए माता-पिता को करीब लाने का काम करती है।
फिल्म का गाना 'मेरे छोटे से मन में छोटी-सी दुनिया' उन दिनों खासा लोकप्रिय हुआ। फिल्म मुमताज फिर दिल्ली लौट आई। तीन वर्ष बाद बॉम्बे टॉकीज से फिर बुलावा आया फिल्म 'ज्वार भाटा' के लिए। तीन सौ रुपए महीने पर इस फिल्म के साथ कुछ परेशानियाँ भी चली आईं। अताउल्लाह खान की नौकरी जाती रही। अपनी चाँद-सी बिटिया से उनकी उम्मीदें जागीं और वे सपरिवार मुंबई आ गए। घीमंडई में एक छोटी-सी जगह रहने को मिली। एक दिन अताउल्लाह खान सपरिवार फिल्म देखने गए। लौटकर देखा तो उनके मोहल्ले में विस्फोट हो गया। वे सड़क पर आ गए। बॉम्बे टॉकीज ने हाथ खड़े कर दिए। इस बीच 'ज्वार भाटा' भी हाथ से निकल गई।
अब अताउल्लाह खान पूरी तरह मुमताज पर आश्रित हो गए। वे उसे लेकर निर्देशकों-निर्माताओं के दरवाजे पहुँचे। रणजीत स्टूडियो के लकी हीरो मोतीलाल से परिचय काम आया। यहाँ बेबी मुमताज से पूछा गया - 'गाना आता है?' प्रखर आत्मविश्वास से जवाब आया - 'हाँ, आता है।' गाना शुरू हुआ। मुमताज ने अचानक गाना बंद कर दिया। संगीत साथियों को लगा, वाद्यवृंद देखकर घबरा गई है। मुमताज घबराई नहीं थी। असल में तबला और मुमताज की ताल नहीं मिल रही थी। तबलची परेशान था। मुमताज ने उसे डपट कर कहा - 'मैं जैसा गाती हूँ, वैसी ताल मिलानी पड़ेगी। तुम्हारे तबले के साथ मैं थोड़े ही ताल बैठाऊँगी।' मुमताज की बेबाकी से सब हैरान रह गए।
तीन सौ रुपए महीने पर रंजीत स्टूडियो में काम मिल गया। फिर तो धन्ना जगत/पुजारी/फुलवारी/मुमताज महल उर्फ मुमताज/ राजपुतानी फिल्मों में बेबी मुमताज ने अभिनय कौशल प्रस्तुत किया। फिल्म 'धन्ना जगत' और 'पुजारी' के लिए उन्होंने गाया भी। इस तरह बेबी मुमताज के रूप में मधुबाला के अभिनय की पहली पारी की शुरू हुई।
मुमताज हुई अनारकली!
प्रेम और सौंदर्य की देवी वीनस के नाम से जानी जाने वाली मधुबाला कच्ची उम्र में ही नायिका बन गईं। न्यू ओरियेंटल फिल्म कंपनी अपनी पहली फिल्म 'नीलकमल' की तैयारी कर रही थी। इस फिल्म की मुख्य भूमिका अभिनेत्री बेगम पारा और कमल चटर्जी निभाने वाली थी। कमला चटर्जी और केदार शर्मा ने गुपचुप शादी रचा ली थी।
बीमारी के कारण जब कमला चटर्जी का अभिनय करना संभव नहीं हुआ, तब मृत्यु पूर्व उन्होंने केदार शर्मा से वचन लिया कि 'नीलकमल' में उनकी भूमिका बेबी मुमताज करेगी। इस बीच चंदूलाल शाह ने केदार शर्मा से पूछा कि फिल्म के कलाकार कौन हैं? उन्होंने जवाब दिया - राजकपूर, बेगम पारा और मुमताज।'
चंदूलाल शाह समझे उस जमाने की मशहूर मुमताज शांति को फिल्म में लिया गया है। बाद में जब सचाई सामने आई तो आगबबूला हो उठे। बोले - 'केदार तुम्हारा दिमाग खराब है। बच्ची को अभिनेत्री बनाओगे? तुमने मुझे धोखा दिया है।' केदार शर्मा ने कहा - 'मेरा विश्वास करो, वह यह भूमिका निभा लेगी।' 'तुम्हारा विश्वास गया भाड़ में, तुम अभी मुझे पचहत्तर हजार रुपए वापस करो' चंदूलाल चीखे।
केदार शर्मा ने गहने और कीमती वस्तुएँ गिरवी रखकर पैसा चुकाया और कंपनी से हमेशा के लिए अलग हो गए। उन्होंने अपने दम पर 'नीलकमल' बनाई। बेबी मुमताज का नायिका के रूप में अभिनय सराहा गया। मधुबाला बनने के बाद उनकी पहचान बनी फिल्म 'महल' से। 'महल' और 'नीलकमल' के बीच यानी 1946 से 1949 तक वे मेरे भगवान, इम्तिहान, चित्तौड़ विजय, दिल की रानी, अमर प्रेम अर्थात राधाकृष्ण, पराई आग, अपराधी, लाल दुपट्टा, सिंगार, पारस तथा नेकी और बदी फिल्मों में नायिका बनकर आई थीं।
मुमताज से मधुबाला होने के पीछे भी मतभेद हैं। कुछ लोगों का मानना है कि फिल्म 'इम्तिहान' के मोहन सिन्हा ने उन्हें यह नाम दिया, जबकि कुछ के अनुसार इंदौर के कवि हरिकृष्ण प्रेमी ने उन्हें इस नाम से नवाजा। 'महल' में अभिनेता अशोक कुमार के साथ वे एक माली की खूबसूरत बेटी के रूप में आईं जो प्रेतात्मा बनकर नायक को डराती है। रहस्य, रोमांच और कर्णप्रिय संगीत से सजी यह फिल्म सुपरहिट रही। फिल्म का गाना- 'आएगा.. आने वाला' खासा लोकप्रिय हुआ। लता मंगेशकर की पसंद के दस गानों में यह शुमार है।
इसके बाद मधुबाला ने अपने अभिनय और सौंदर्य के ऐसे-ऐसे करिश्मे पेश किए कि केदार शर्मा से नकद 75 हजार रुपए वापस माँगने वाले चंदूलाल शाह भी मजबूर हो गए उनका लोहा मानने के लिए। यहाँ तक कि उन्होंने 'मधुबाला' के नाम से फिल्म ही बना डाली।
'फागुन' में जब मधुबाला थिरकीं 'इक परदेसी मेरा दिल ले गया, जाते-जाते मीठा-मीठा गम दे गया' तो थियेटर में दर्शक झूम उठे। 'मिस्टर एंड मिसेज 55' में जब उन्होंने परदे पर गाया - 'ठंडी हवा काली घटा आ ही गई झूम के' तो भारतीय दर्शक एक मीठी बयार के नशे में होश खो बैठे।
जब देवआनंद को परदे पर रिझाया - 'अच्छा जी, मैं हारी चलो मान जाओ ना' तो कहीं से भी वे हारी हुई नहीं बल्कि अभिनय के सारे गढ़ जीती हुई प्रतीत हुईं। 'चलती का नाम गाड़ी' में किशोर कुमार ने उन पर गाया - 'एक लड़की भीगी भागी-सी', तब उस नटखट और उत्तेजक गीत के साथ मधुबाला का अंग-प्रत्यंग मुस्कुराता नजर आया। 'मुगले आजम' की अनारकली बनकर शायद लौट भी आए लेकिन मधुबाला कभी लौट सकेंगी, इस पर कोई विश्वास नहीं करेगा।
प्यार किया तो डरना क्या...
स्मृतियाँ जिसकी इतनी सुगंधित हैं, वह स्वयं कितना मलयानील होगी, अंदाजा लगाया जा सकता है। जिन नायकों ने उस तराशी हुई चंदन प्रतिमा के संग अभिनय किया, वे फिर कभी उस सम्मोहन से बाहर नहीं आ सके। नीली आँखों वाले, भोले-भाले राज कपूर के साथ 'नीलकमल' से शुरुआत की।
चित्तौड़ विजय/दिल की रानी/अमर प्रेम और दो उस्ताद फिल्मों में यह जोड़ी आई। उस समय के हॉट हीरो अशोक कुमार के साथ आई 'महल' से मधुबाला के करियर में आकर्षक उठाव आया। फिल्म 'निशाना', 'एक साल', और 'हावड़ा ब्रिज' में इस जोड़ी का अभिनय खासा सराहा गया। सदाबहार देव आनंद और ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार के साथ उन्हें दर्शकों ने खूब पसंद किया।
दरअसल, यह मधुबाला का रेशमी व्यक्तित्व था कि वे हर हीरो के साथ अपना अभिनय इस सुघड़ता से बुनती थीं कि ताना-बाना अलग करना मुश्किल हो जाता। दिलीप कुमार के साथ उनके प्रेम-प्रसंग और बाद में आई कड़वाहट की वजह से यह जोड़ी अपेक्षित संख्या में दोहराई नहीं जा सकी। फिर भी फिल्म तराना/संगदिल/अमर और क्लासिक 'मुगल-ए-आजम' में उन्हें साथ देखना रोमांचकारी अनुभव रहा। नटखट देव के साथ मधुबाला की शरारतों ने दर्शकों का भरपूर प्यार पाया।
फिल्म - मधुबाला/ निराला/ आराम/ नादान/ अरमान/ कालापानी/ जाली नोट और शराबी में इस जोड़ी की चंचलता और रोमांटिक गानों ने उस समय के युवाओं पर जादुई असर छोड़ा।
फिल्म 'बादल' से अभिनेता प्रेमनाथ उनकी जिंदगी में आए और 'साकी' से लौट गए। दिलीप-प्रेम-मधु का प्रेम त्रिकोण किसी फिल्म की कहानी की तरह रोमांस, त्याग और बिछोह के मेलोड्रामा का उदाहरण है।
अभिनेता प्रदीप कुमार के साथ राजहठ/ शीरी फरहाद/ यहूदी की लड़की/ पुलिस/ महलों के ख्वाब और पासपोर्ट में तथा भारतभूषण के साथ गेटवे ऑफ इंडिया/ फागुन/ कल हमारा है/ बरसात की रात में मधुबाला अत्यंत आकर्षक लगीं। अभिनेता नासिर खान और शम्मी कपूर के साथ क्रमश: खजाना/ नाजनीन और रेल का डिब्बा/ नकाब तथा ब्वाय फ्रेंड में मधुबाला पूरी शोखी और शान के साथ पर्दे पर नजर आई।
अपने जीवन के आखिरी दिनों में हँसी और मस्ती के खजाने किशोर कुमार के साथ फिल्म ढाके की मलमल/ चलती का नाम गाड़ी/ झुमरू और हाफ टिकट ने दर्शकों को खूब ठहाके लगवाए। चंचल-चपल गरिमा का परिचय दिया, वह अनुकरणीय है। फिल्म इतिहास में ऐसा दूसरा उदाहरण सुनील दत्त-नरगिस का दिया जा सकता है। उनके जीवन की अंतिम फिल्म 'ज्वाला' सुनील दत्त के साथ थी, जिनके साथ 'इंसान जाग उठा' फिल्म वे पहले कर चुकी थीं।
मधुबाला ने अपने करियर के आरंभ में हर बड़े हीरो के साथ अभिनय किया, जिनमें वास्ती/ उल्लास/ महिपाल/ सुरेंद्र/ जयराज/ रहमान/ मोतीलाल/ करण दीवान/ सुरेश/ अजीत/ गुरुदत्त और रंजन के नाम प्रमुखता से गिनाए जा सकते हैं।
सितारों की भीड़ में खिला चाँद
तेरी जुल्फें, तेरी आँखें, तेरे अब्रू, तेरे लब
अब भी मशहूर हैं, दुनिया में मिसालों की तरह।
बरसों पहले, जैसे शायर ने ये पंक्तियाँ मधुबाला के लिए ही लिखी थीं।
मधुबाला यानी एक ऐसी कोमल कस्तूरी हिरणी, जिसके नटखट नेत्रों की एक भाषा है। लरजते लबों की एक भाषा है। वह समुद्र नहीं है किंतु समुद्र की तरह एक आकुल उद्दाम लहर जरूर है जिसमें क्षण भर के लिए शीर्ष पर जाकर ठहराव आ जाता है। समुद्र की वह लहर नीचे उतरने पर भी मन को एक आकर्षण में बाँध लेती है।
मधुबाला मन में हमेशा के लिए बस जाने वाले उसी आकर्षण का नाम हैं। वे चाँद का टुकड़ा या चाँद जैसी नहीं थीं, वे उज्ज्वल चमकीला पूर्णिमा का संपूर्ण चाँद ही थीं। उस दौर का चाँद, जब फिल्माकाश में दमकते नक्षत्रों की कोई कमी नहीं थी। एक से एक अदाकारा अपने सौंदर्य, रूप-रंग और अभिनय के जलवे बिखेर रही थीं।
नूरजहाँ जैसी खूबसूरत और दिलकश आवाज की मल्लिका पाकिस्तानी जाने की तैयारी कर चुकी थीं। सुरैया पहली ग्लैमर गर्ल होने के साथ दर्शकों का बेहिसाब प्यार बटोर रही थीं। मधुबाला सजी-धजी, नाजोअंदाज वाली, ठसकदार अभिनेत्रियों के बीच एक ऐसी अभिनेत्री के रूप में उभरीं जिनके पारदर्शी सौंदर्य को किसी मेकअप, किसी अदा की जरूरत नहीं थी। वे सहज भाव से जो करतीं, वही अदा हो जाती थी। मधुबाला की एक और खासियत उन्हें समकालीन अभिनेत्रियों से जुदा करती है।
वह है, उनकी खनकती खुली खिलखिलाहट। एक बिंदास और बेबाक हँसी। जो भारत के खेत-खलिहान में किसी भी अल्हड़ किशोरी के सिवा अन्य के पास नहीं मिल सकती। नूतन, नरगिस के पास यदि उस हँसी का एक अंश था भी तो सौंदर्य में वे मधुबाला से पिछड़ गईं। मीना कुमारी ट्रेजडी क्वीन की छवि में बँधती जा रही थीं। मधुबाला और मीना कुमारी के जीवन और अभिनय का तुलनात्मक अध्ययन उनके बचपन से मृत्यु तक आसानी से किया जा सकता है। दोनों ने अपने करियर की शुरुआत बेबी मुमताज के रूप में की और दोनों ही सच्चे प्यार के लिए तरसती रहीं। मधुबाला को अंतिम दिनों में किशोर कुमार से वह मिला लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। निम्मी, गीताबाली और नलिनी जयवंत से मधुबाला की प्रतिस्पर्धी नहीं रही क्योंकि दर्शक उन्हें एक अलग छवि में पसंद कर चुके थे। यह वह दौर था जब नंबर वन की चुहिया दौड़ आरंभ नहीं हुई थी। यही वजह है कि मधुबाला के होते हुए भी उनकी समकालनी अभिनेत्रियों को कमतर नहीं आँका जा सकता।
नरगिस की शोखी, गीता बाली का अल्हड़पन, नूतन की नमकीनियत, मीना कुमारी की नजाकत, सुरैया की नफासत, साधना की मासूमियत, वहीदा की सादगी और वैजयंतीमाला की थिरकन-सबका अपना अस्तित्व था।
दर्शकों का अपना विस्तार था। इन जगमगाती तारिकाओं के बीच भी मधुबाला यदि वीनस की उपाधि से सम्मानित होती हैं तो मानना होगा कि मधुबाला के मादक मोहक सौंदर्य ने भारतीय दर्शकों की मीठी नींद चुराकर उन्हें मधुर सपनों की सौगातें दी हैं। सिर्फ आकर्षक देहयष्टि ही मधुबाला को शीर्ष पर ले गई यह सोचना उस अनुपम सुंदरी और अनूठी अदाकारा के साथ अन्याय होगा। वे नख-शिख सुंदर होने के साथ सहजता, सादगी और सलोनेपन की सर्वोत्तम मिसाल थीं।
तू दूर है हमसे और पास भी है
तेरी कमी का कहीं अहसास भी है
लोग लाखों हैं जहाँ में खूबसूरत
पर तू प्यारा भी है और खास भी है।
इश्क का नूर नूर है, हुस्न की चाँदनी न देख
तू खुद तो आफताब है, जर्रे में रोशनी न देख।
जर्रों में रोशनी देखने की कोशिश ने मधुबाला की चमक को बार-बार प्रभावित किया। प्रेमनाथ, रहमान, कमाल अमरोही और दिलीप कुमार से लेकर पति किशोर कुमार तक उनका प्यार छल-कपट का शिकार होता रहा। यही वजह है कि बचपन की दिल की बीमारी और आघातों को सहन करते हुए वे बढ़ती रहीं। मधुबाला का पहली बार दिल धड़का अभिनेता प्रेमनाथ के लिए।
प्रेमनाथ से उन्होंने टूटकर प्यार किया। इस कदर प्यार था उनमें कि निर्माता-निर्देशक प्रेमनाथ को नायक के रूप में लेना चाहते थे, तो मधुबाला से सिफारिश करते और मधुबाला प्रेमनाथ की तरफ से वचन भी दे देती थीं। इस प्रेम को ग्रहण लगा दिलीप कुमार के बीच में आने से। दिलीप कुमार प्रेमनाथ के परम मित्र थे। जब दिलीप मधुबाला की ओर आकर्षित होने लगे, तब प्रेमनाथ ने दोनों के बीच से हट जाने की ठानी। यहाँ तक कि उन्होंने उस वक्त की मशहूर अभिनेत्र बीना रॉय से शादी कर ली। इस शादी से मधुबाला को गहरा सदमा पहुँचा।
उन्होंने मंडप में जलती आँखों और सुलगते बदन से प्रेमनाथ से कहा था, 'मेरे प्यार की उपेक्षा कर तुम प्रेम विवाह कर रहे हो, याद रखना इस विवाह से तुम कभी सुखी नहीं हो सकोगे।'
हुआ भी ऐसा ही। प्रेमनाथ-बीना में कभी पटरी नहीं बैठी। प्रेमनाथ अक्सर कहते कि यह मधुबाला का सच्चा शाप है, इसलिए मेरा वैवाहिक जीवन नर्क हो गया है।
प्रेमनाथ जब मधुबाला के वियोग में बहुत शराब पीने लगे तब एक दिन मधुबाला धड़धड़ाती हुई पहुँची और कहा, 'प्रेम, आज के बाद यदि तुमने शराब पी तो मेरा खून पियोगे।'
प्रेमनाथ ने चौदह वर्ष तक शराब को हाथ नहीं लगाया। दुखी मधुबाला के जीवन में आए दिलीपकुमार।
दिलीपकुमार मधुबाला को लेकर कभी उतने भावुक नहीं हुए। उनके लिए व्यवसाय और प्यार दो अलग चीजें थीं। मधुबाला उन्हें शिद्दत से चाहने लगी थीं। पिता अताउल्लाह खान की नजर दिलीप को खूब पहचानती थी। वे नहीं चाहते थे कि उनकी फूल-सी बिटिया दिलीप के परिवार वालों की नौकरानी बनकर रह जाए।
लिहाजा उनका इस संबंध में पुरजोर विरोध रहा। फिल्म 'नया दौर' की शूटिंग के लिए मधुबाला और दिलीप को भोपाल जाना था। अताउल्लाह खान ने मना कर दिया। फलस्वरूप 'नया दौर' से मधुबाला को निकाल दिया गया और वैजयंती माला का चयन हुआ।
'नया दौर' के संबंध में चले मुकदमे में कोर्ट में दिलीप ने स्वीकार किया कि 'वह मधुबाला से प्रेम करता है और जब तक जिंदा है, करता रहेगा।' लेकिन बकौल प्रेमनाथ, 'यह सिर्फ एक डायलॉग से ज्यादा कुछ नहीं है। असल में दिलीप ने अपने स्वार्थ के लिए मधुबाला का इस्तेमाल किया और बाद में ऐसे ही झटका जैसे कोई शरीर पर चढ़े कॉकरोच को झटकता है। मेरी दोस्ती के लिए किया गया त्याग व्यर्थ गया। मैं उस वक्त भावुक नहीं होता तो आज मधुबाला मेरी पत्नी के रूप में जानी जाती।'
दिलीप से धोखा खाई मधुबाला इस कदर बिखरी कि उन्हें दिल की बीमारी ने घेर लिया। अपनी इस बीमारी से अवगत होते ही मधुबाला ने अपनी एक रिश्तेदार से कहा था - 'भाभी, मैं शादीशुदा मरना चाहती हूँ।'
डॉक्टरों का कहना था कि उसे अपने दिल पर कोई बोझ नहीं रखना चाहिए और जितना हो सके खुश रहना चाहिए। जालिम जमाना उन्हें खुश होने नहीं दे रहा था।
फिल्म मुगल-ए-आजम में अकबर का संवाद है - 'अनारकली, सलीम तुझे मरने नहीं देगा और हम तुझे जीने नहीं देंगे।' उसी सलीम ने उन्हें ऐसी सौगातें दी कि वे मौत की तरफ बढ़ने लगीं।
ऐसी विकट परिस्थिति में उन्हें शरारती, मस्तीखोर किशोर कुमार मिले। किशोर उन दिनों रूमादेवी से तलाके के कारण अवसादग्रस्त थे। मधुबाला ने किशोर कुमार को अपने विषय में बताया और शादी के लिए पूछा। किशोर कुमार जानते थे कि वे मधुबाला उन्हें पत्नी का सुख नहीं दे सकती। नि:स्वार्थ आत्मिक प्यार के रूप में उन्होंने मधुबाला से विवाह रचाया। आमतौर पर किशोर को लोग प्रोफेशनल पर्सन के रूप में जानते हैं। किशोर ने अपनी खूबसूरत पत्नी के इलाज और सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्हें डॉक्टर को प्रतिदिन दस हजार रुपए देने पड़ते थे। मधुबाला धीरे-धीरे मौत की तरफ जा रही थीं। वे फोन कर अपने परिचितों को बुलातीं।
एक बार जब शक्ति सामंत उनसे मिलने पहुँचे तो मधुबाला मेकअप में बैठी थीं। शक्ति ने पूछा - 'तुम्हें मेकअप की क्या जरूरत थी।' मधुबाला ने लरजते स्वर में कहा - शक्ति, आपने मुझे अपने जीवन के सबसे खूबसूरत रूप में देखा है। क्या आप देख सकते हैं कि अब मैं कैसी लगने लगी हूँ।'
शक्ति सामंत की आँखें बरसने लगीं और वे उठकर बाहर चले आए। सौंदर्य की देवी को निराशा, कुंठा और अवसाद ने इस कदर घेर लिया था कि किशोर का प्यार भी उसके चेहरे पर मुस्कान नहीं ला सका। शक्ति सामंत की आर्थिक स्थिति जब कमजोर थी तब मधुबाला ने उनकी फिल्म 'हावड़ा ब्रिज' के लिए कोई पैसा नहीं लिया था। ऐसी सहृदया सहज अभिनेत्री को अपने अंतिम जन्मदिन पर सिर्फ एक गुलदस्ता मिला।
मधुबाला के जीवन में सिर्फ प्रेमनाथ, दिलीप और किशोर ही नहीं बल्कि रहमान और कमाल अमरोही के आने के भी किस्से मिलते हैं। कमाल ने अपना प्रणय निवेदन तब किया जब दिलीप-मधु का प्रेम प्रकरण शीर्ष पर था। मधु के इंकार करने पर कमाल ने उसे धमकी दी थी कि एक दिन तुमसे बड़ी अभिनेत्री से शादी करके दिखाऊँगा। कमाल की मीना कुमारी से शादी सफल नहीं रही, क्योंकि यह उस चैलेंज का परिणाम थी। रहमान ने सुरैया से टूटने के बाद मधुबाला से जुड़ने की कोशिश की थी पर असफल रहे।
नृत्य सम्राट गोपीकृष्ण जैसे कट्टर ब्राह्मण भी मधुबाला के हुस्न की चपेट में आए बगैर नहीं रहे। हालाँकि वह प्रेम संबंध नहीं था। दरअसल फिल्म 'साकी' के सेट पर वे मधुबाला को डांस स्टेप्स सिखा रहे थे। ब्रेक में मधुबाला ने उन्हें नाश्ते का ऑफर किया तो वे अभिभूत-से गोपीकृष्ण चिकन/मटन टोस्ट जैसे नॉनवेज उदरस्थ कर गए। जब सेट पर उपस्थित लोगों ने मधुबाला से पूछा - 'इन्हें क्या खिला दिया?' मधु ने मासूमियत से कहा - 'जो मैंने खाया वही मैंने खिलाया।'
जब नॉनवेज का पता चला तो गोपीकृष्ण बेचैन हो गए। मधुबाला रो पड़ीं - 'मैंने जानबूझकर नहीं किया है।' मधुबाला वक्त की पाबंद तो थीं हीँ, स्वाभिमानी भी बहुत थीं। एक बार छायाकार धरम चोपड़ा मधुबाला के 12 फोटो खींचकर उन्हें भेंट देने के लिए लाए। मधुबाला ने मुफ्त में लेने से इंकार कर दिया। कीमत पूछी, धरम ने मजाक में कहा - 'देना ही है तो हर फोटो के सौ रुपए देने होंगे।' मजाक अभी पूरा भी नहीं हुआ था कि मधुबाला ने तत्काल 1200 रुपए धरम चोपड़ा को थमा दिए।
मृत्यु से पूर्व मधुबाला ने अपनी बहन से कहा था कि जब जरा काम की समझ आई तो ऊपर वाले ने कहा - बस! मधुबाला के दिल पर विमानों की आवाज ने दबाव बनाया तब वह अपने पिता के घर आ गईं।
यही भोर का तारा 'वीनस' अपनी संपूर्ण चमक के साथ अस्त हो गया। 23 फरवरी 1969 को मधुबाला छोड़ गईं इस बेदर्द, बेरहम जमाने को और छोड़ गईं वे ढेर सारी महकती, मचलती यादें। फिजाओं में गूँजता रहा गाना - हाफिज खुदा तुम्हारा...।
कहीं आँखें, कहीं चेहरा, कहीं लब
हमेशा एक मिलता है, कई में
चमकती है अँधेरों में खामोशी
सितारे टूटते हैं, रात ही में।